हर पल
हर कहीं
घर मे या
घर के बाहर
एकांत मे
या किसी के साथ
किसी भीड़ मे
कहीं आते हुए
कहीं को जाते हुए
किसी से बात करते हुए
खुद को समझाते हुए
कुछ लिखते हुए
कुछ पढ़ते हुए
कुछ न कुछ करते हुए
जेहन मे उठते हैं
अनेकों सवाल
न जाने क्यों?
bahut hi achchhi rachna ,janm -mritiyu hi sawal hai ,baki ki kya kahe ,ek gana yaad aa raha hai -duniya banane wale kahe ko duniya banai ,yahan to srishti ki sanranchna par hi sawal uth gaye .
यशवंत भाई विगत महीनों से आप की प्रस्तुतियों से आभास हो रहा है कि आपका कविमन किसी गंतव्य को पाने को अत्यधिक आतुर है। प्रश्नों का यह क्रम उसी संभावित गंतव्य की तरफ बढ़ता लक्षित हो रहा है।
बहुत ही सुन्दर सवाल ....
ReplyDeleteसवाल सवाल सवाल ... ये सवाल ही तो हैं जो जीने नहीं देते ... अच्छी रचना है ...
ReplyDeleteये जाने क्यों? का ही जवाब सभी तलाश रहे है... सुन्दर अभिवयक्ति....
ReplyDeleteये जवाब ना जाने कब मिलेंगें ?????
ReplyDeleteसार्थक लेखन के साथ विचारणीय प्रश्न- भी ..
ReplyDeletesawalo se ghri jindgi.... sundar rachna...
ReplyDeleteसुन्दर और बेहतरीन कविता
ReplyDeleteज़िंदगी खुद एक सवाल है..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteदुनियां करे सवाल तो हम क्या जवाब दे ? मगर अपने सवाल का जवाब दुनिया जरूर देगी पूछिए तो , शुभकामनाये
ReplyDeleteअच्छे सवाल किये हैं आपने।
ReplyDeleteये प्रश्न भी बहुत खूब है .बधाई
ReplyDeleteBHARTIY NARI
we have questions at every corners of our lives :)
ReplyDeleteur lines depict the same beautifully
Nice read !!
यथार्थ को कहती अच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteकल शनिवार २७-०८-११ को आपकी किसी पोस्ट की चर्चा नयी-पुराणी हलचल पर है ...कृपया अवश्य पधारें और अपने सुझाव भी दें |आभार.
ReplyDeleteये सुन्दर सवाल सच में लाजवाब है..
ReplyDeleteजिस दिन सारे सवाल गिर जाते हैं भीतर बुद्धत्व का जन्म होता है उससे पहले यही तो एकमात्र पूंजी हैं...
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दरता से गहरे यतार्थ को शब्द दिए हैं ..........शानदार|
ReplyDeleteइन्ही सवालों का जवाब ढूंढते ही जीवन बीत जाता है |
ReplyDeleteअरे वाह अंकल! ऐसा तो मेरे साथ भी रोज़ होता है....
ReplyDeleteये सवाल और इनके उत्तर की तलाश ही तो जीवन है ..... शुभकामनायें !
ReplyDeletebahut hi achchhi rachna ,janm -mritiyu hi sawal hai ,baki ki kya kahe ,ek gana yaad aa raha hai -duniya banane wale kahe ko duniya banai ,yahan to srishti ki sanranchna par hi sawal uth gaye .
ReplyDeleteaapke blog par aana achchha laga ,dhun bahut pyari hai lag raha tha sunti rahoon .
ReplyDeleteबहुत खूब..सुन्दर रचना, प्रभावशाली पंक्तियाँ।
ReplyDeleteयशवंत भाई विगत महीनों से आप की प्रस्तुतियों से आभास हो रहा है कि आपका कविमन किसी गंतव्य को पाने को अत्यधिक आतुर है। प्रश्नों का यह क्रम उसी संभावित गंतव्य की तरफ बढ़ता लक्षित हो रहा है।
ReplyDeleteinhi swalon ke jwab dhudhne me hi to jindagi beet jati hai...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति के लिये बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteखुबसूरत रचना,सादर .
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