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01 September 2011

मुक्त होना चाहता हूँ --

 (1)
बदन को छू कर
निकल जाने वाली हवा से
गर्मी की लू से
जाड़ों की शीत लहर से
मन भावन बसंत से,
बरसते सावन से
हर कहीं दिखने वाली
रोल चोल से
चहल पहल से
खामोशी से
तनहाई से
खुशी से -गम से
खुद से ,खुद की परछाई से
इस कमजोर दिल  से
मुक्त होना चाहता हूँ। 


(2)
ये मुक्त होने की चाह
सिर्फ चाह रहेगी
पत्थरों की बारिश मे
सिर्फ एक आह रहेगी
आह रहेगी;
मन की बेगानी महफिलों मे
रहेगा जिसमे संगीत
यादों का
कुछ कही-अनकही बातों का 
इस सुर लय ताल पर
हिलता डुलता सा
थिरकता सा
तुम्हारा अक्स
मुझे फिर कुलबुलाएगा
मुक्त हो जाने को ।

32 comments:

  1. बहुत सुन्दर।
    गणशोत्सव की शुभकामनाएँ।

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  2. ये मुक्त होने की चाह
    सिर्फ चाह रहेगी
    पत्थरों की बारिश मे
    सिर्फ एक आह रहेगी
    आह रहेगी;....बहुत ही खुबसूरत और भावमयी रचना....

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  3. गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ... हार्दिक बधाई.

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  4. खुद से ,खुद की परछाई से
    इस कमजोर दिल से
    मुक्त होना चाहता हूँ। ..बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति....

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  5. बहुत सार्थक अभिव्यक्ति .मुक्ति की चाह सभी को रहती है .आभार

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  6. बहुत बढ़िया!
    माँ सरस्वती आपकी लेखनी में विराजमान है।
    गणेशोत्सव की शुभकामनाएँ!

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  7. ये मुक्त होने की चाह
    सिर्फ चाह रहेगी
    पत्थरों की बारिश मे
    सिर्फ एक आह रहेगी

    सुन्दर अभिव्यक्ति .

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  8. अत्यंत हृदयस्पर्शी...

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  9. यह मुक्त होने की चाह ... मन की कश्मकश को कह रही है ..गहन वेदना महसूस हुयी पढते हुए ...

    निराशा में भी आगे बढने की चाह भी दिखी ...अच्छी प्रस्तुति

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  10. बहुत खूब.... बेहतरीन प्रस्तुति...

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  11. इस सुर लय ताल पर
    हिलता डुलता सा
    थिरकता सा
    तुम्हारा अक्स
    मुझे फिर कुलबुलाएगा
    मुक्त हो जाने को ।
    भावात्मक अभिव्यक्ति.
    फांसी और वैधानिक स्थिति

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  12. bahut achchi kavitayen.ganeshchaturthi ki badhaaiyan.

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  13. सुंदर कवितायें प्रस्तुत करने के लिए बधाई

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  14. wow that was so subtle and emotional...
    very well written !!

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  15. कितनी सहजता है इस चाह में ... कोई बनावट नहीं , वाह

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  16. तनहाई से
    खुशी से -गम से
    खुद से ,खुद की परछाई से
    इस कमजोर दिल से
    मुक्त होना चाहता हूँ।

    ये मुक्त होने की चाह
    सिर्फ चाह रहेगी ...
    अति सुन्दर जीवन के दोनों पहलु को दर्शाती रचना... गणेश उत्सव की हार्दिक शुभकामनायें...

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  17. मन की कशमकश की सुन्दर प्रस्तुति।

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  18. मुक्त होने की स्वाभाविक सी चाह को सुन्दर अभिव्यक्ति मिली है!

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  19. Mukti ki chah har baar poori kahaan hi hoti h... sundar rachna :)

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  20. आपकी किसी पोस्ट की चर्चा शनिवार ३-०९-११ को नयी-पुरानी हलचल पर है ...कृपया आयें और अपने विचार दें......

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  21. मुक्त हो जाना ही अंतिम अवस्था है.........अनुभवों के लम्बे दौर से गुज़र कर ही कोई मुक्त हो सकता है|

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  22. खुबसूरत रचना ,बहुत सुन्दर।

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  23. अत्यंत हृदयस्पर्शी..
    सुन्दर अभिव्यक्ति

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  24. मुक्ति की यह कामना दिल की वेदना को अनजाने ही मुखरित कर जाती है ! बहुत ही सुन्दर रचना ! बधाई तथा गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें !

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  25. बहुत बढ़िया....
    सादर...

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  26. खुशी से -गम से
    खुद से ,खुद की परछाई से
    इस कमजोर दिल से
    मुक्त होना चाहता हूँ।
    जिसके भीतर यह मुक्ति की चाह उठी वह मंजिल की ओर कदम बढा ही चुका है... बधाई!

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  27. ये मुक्त होने की चाह
    सिर्फ चाह रहेगी ...

    खुबसूरत रचना

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  28. बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति..

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  29. बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति ...... शुभकामनायें !

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  30. चाह तो होती है पर काश मुक्त होना आसान होता ...

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