(1)
बदन को छू कर
निकल जाने वाली हवा से
गर्मी की लू से
जाड़ों की शीत लहर से
मन भावन बसंत से,
बरसते सावन से
हर कहीं दिखने वाली
रोल चोल से
चहल पहल से
खामोशी से
तनहाई से
खुशी से -गम से
खुद से ,खुद की परछाई से
इस कमजोर दिल से
मुक्त होना चाहता हूँ।
(2)
ये मुक्त होने की चाह
सिर्फ चाह रहेगी
पत्थरों की बारिश मे
सिर्फ एक आह रहेगी
आह रहेगी;
मन की बेगानी महफिलों मे
रहेगा जिसमे संगीत
यादों का
कुछ कही-अनकही बातों का
इस सुर लय ताल पर
हिलता डुलता सा
थिरकता सा
तुम्हारा अक्स
मुझे फिर कुलबुलाएगा
मुक्त हो जाने को ।
बदन को छू कर
निकल जाने वाली हवा से
गर्मी की लू से
जाड़ों की शीत लहर से
मन भावन बसंत से,
बरसते सावन से
हर कहीं दिखने वाली
रोल चोल से
चहल पहल से
खामोशी से
तनहाई से
खुशी से -गम से
खुद से ,खुद की परछाई से
इस कमजोर दिल से
मुक्त होना चाहता हूँ।
(2)
ये मुक्त होने की चाह
सिर्फ चाह रहेगी
पत्थरों की बारिश मे
सिर्फ एक आह रहेगी
आह रहेगी;
मन की बेगानी महफिलों मे
रहेगा जिसमे संगीत
यादों का
कुछ कही-अनकही बातों का
इस सुर लय ताल पर
हिलता डुलता सा
थिरकता सा
तुम्हारा अक्स
मुझे फिर कुलबुलाएगा
मुक्त हो जाने को ।
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteगणशोत्सव की शुभकामनाएँ।
ये मुक्त होने की चाह
ReplyDeleteसिर्फ चाह रहेगी
पत्थरों की बारिश मे
सिर्फ एक आह रहेगी
आह रहेगी;....बहुत ही खुबसूरत और भावमयी रचना....
गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ... हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteखुद से ,खुद की परछाई से
ReplyDeleteइस कमजोर दिल से
मुक्त होना चाहता हूँ। ..बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति....
बहुत सार्थक अभिव्यक्ति .मुक्ति की चाह सभी को रहती है .आभार
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteमाँ सरस्वती आपकी लेखनी में विराजमान है।
गणेशोत्सव की शुभकामनाएँ!
ये मुक्त होने की चाह
ReplyDeleteसिर्फ चाह रहेगी
पत्थरों की बारिश मे
सिर्फ एक आह रहेगी
सुन्दर अभिव्यक्ति .
अत्यंत हृदयस्पर्शी...
ReplyDeleteयह मुक्त होने की चाह ... मन की कश्मकश को कह रही है ..गहन वेदना महसूस हुयी पढते हुए ...
ReplyDeleteनिराशा में भी आगे बढने की चाह भी दिखी ...अच्छी प्रस्तुति
बहुत खूब.... बेहतरीन प्रस्तुति...
ReplyDeleteइस सुर लय ताल पर
ReplyDeleteहिलता डुलता सा
थिरकता सा
तुम्हारा अक्स
मुझे फिर कुलबुलाएगा
मुक्त हो जाने को ।
भावात्मक अभिव्यक्ति.
फांसी और वैधानिक स्थिति
bahut achchi kavitayen.ganeshchaturthi ki badhaaiyan.
ReplyDeleteसुंदर कवितायें प्रस्तुत करने के लिए बधाई
ReplyDeletewow that was so subtle and emotional...
ReplyDeletevery well written !!
कितनी सहजता है इस चाह में ... कोई बनावट नहीं , वाह
ReplyDeleteतनहाई से
ReplyDeleteखुशी से -गम से
खुद से ,खुद की परछाई से
इस कमजोर दिल से
मुक्त होना चाहता हूँ।
ये मुक्त होने की चाह
सिर्फ चाह रहेगी ...
अति सुन्दर जीवन के दोनों पहलु को दर्शाती रचना... गणेश उत्सव की हार्दिक शुभकामनायें...
मन की कशमकश की सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteमुक्त होने की स्वाभाविक सी चाह को सुन्दर अभिव्यक्ति मिली है!
ReplyDeleteMukti ki chah har baar poori kahaan hi hoti h... sundar rachna :)
ReplyDeleteआपकी किसी पोस्ट की चर्चा शनिवार ३-०९-११ को नयी-पुरानी हलचल पर है ...कृपया आयें और अपने विचार दें......
ReplyDeleteमुक्त हो जाना ही अंतिम अवस्था है.........अनुभवों के लम्बे दौर से गुज़र कर ही कोई मुक्त हो सकता है|
ReplyDeleteखुबसूरत रचना ,बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteअत्यंत हृदयस्पर्शी..
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
मुक्ति की यह कामना दिल की वेदना को अनजाने ही मुखरित कर जाती है ! बहुत ही सुन्दर रचना ! बधाई तथा गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया....
ReplyDeleteसादर...
खुशी से -गम से
ReplyDeleteखुद से ,खुद की परछाई से
इस कमजोर दिल से
मुक्त होना चाहता हूँ।
जिसके भीतर यह मुक्ति की चाह उठी वह मंजिल की ओर कदम बढा ही चुका है... बधाई!
ये मुक्त होने की चाह
ReplyDeleteसिर्फ चाह रहेगी ...
खुबसूरत रचना
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति..
ReplyDeletebahut sundar..mukti hi niyati hai
ReplyDeleteचर्चा में आज नई पुरानी हलचल
ReplyDeleteबहुत प्रभावी अभिव्यक्ति ...... शुभकामनायें !
ReplyDeleteचाह तो होती है पर काश मुक्त होना आसान होता ...
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