07 September 2011

बदलती सुबह

सुबह सुबह
सूरज के निकलने तक 
कभी सुनाई देती थी
पास की मस्जिद से आती
अज़ान की आवाज़
मंदिर मे बजते घंटों की आवाज़
चिड़ियों की चहचहाहट
जिसके सुर मे सुर मिला रहे हों
हवा के ताज़े झोंके ।

मैं आज भी सुबह उठा
मगर वह सुबह नदारद थी
कान मे  हेड फोन लगाए
कुछ लोग सुन रहे थे
मुन्नी के बदनाम गीत
एग्झास्ट फैन से टकराते
हवा के सुस्त झोंके
वापस लौट जा रहे थे
सेठ जी के ए सी पर
नो एंट्री का बोर्ड देख कर

कितना फर्क हो गया है
बचपन की वह उच्छृंखल
वह बिंदास सुबह
अब सकुचती हुई
दबे पाँव आती है
और लौट जाती है
सूरज की किरणों के
गरम मिजाज को देख कर।

32 comments:

  1. बिल्कुल सच कहा कहाँ रहे वो दिन वो रातें।

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  2. वह बिंदास सुबह
    अब सकुचती हुई
    दबे पाँव आती है
    और लौट जाती है
    सूरज की किरणों के
    गरम मिजाज को देख कर.......बहुत सही लिखा . अल्साई सुबह आज के गर्म माहोल को देख शायद घब्ररा जाती है डरी हुई उदास लगती है.....

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  3. वाह कितनी भीनी मदमस्त कर देने वाली है रचना…………………शानदार दिल को छू गया।

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  4. चिड़ियों की चहचहाहट
    जैसे सुर मे सुर मिला रहे हों
    हवा के ताज़े झोंके ।
    बहुत ही सुन्दर पंक्ति लगी साथ ही आपकी कविता भी बेहतरीन लगी......आभार

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  5. बहुत सुंदर कविता ! सुबह तो सुबह ही है मन ही है जो इसमें नए नए रंग भरता है...

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  6. सच कहा यशवंत भाई .. अब सब कुछ बदल सा गया है ,, जिंदगी बहुत ज्यादा fast forward हो गयी है .. बहुत अच्छी नज़्म के लिये दिल से बधाई !!
    आभार
    विजय
    -----------
    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

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  7. बहुत खूब लिओखा है ...
    सच है वो सुबह कभी तो आयगी ...

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  8. Change is the only constant thing in dis world... thoughtful lines

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  9. सही कहा ....अब सुबह उतनी हसीन. नहीं लगती........

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  10. बदलाव स्पष्ट दृश्यमान है!

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  11. जाने कहाँ गए वो दिन ...सुन्दर पोस्ट...

    नीरज

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  12. सच्चाई से कही गयी बात अब किसको दोष दें वक्त या खुद को ....

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  13. बहुत सुंदर कविता.....समय के बहुत कुछ बदल जाता है....

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  14. waah... isiliye to bachpan khas hota hai... madmast pawan ki tarah udta hua aur sooraj kee roshni sa ujjwal...
    na jane ham bade q ho gaye???

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  15. खुबसूरत सुबह.... जिसका सभी को इंतजार है....

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  16. कितना फर्क हो गया है
    बचपन की वह उच्छृंखल
    वह बिंदास सुबह
    अब सकुचती हुई
    दबे पाँव आती है
    और लौट जाती है
    सूरज की किरणों के
    गरम मिजाज को देख कर।
    ..... और सरे दिन थका हारा मन यही सोचता है - सुबह कहाँ से लौटाई जाये

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  17. Bahut dinon baad kuchh achchha padha. Shubhkamnayen...

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  18. वाह......बहुत खूब..........सच सब कुछ ही बदल गया है.........नहीं बदले तो हमारे जैसे कुछ गिने-चुने लोग......कभी लगता है जैसे वक़्त हम जैसों को कहीं पीछे न छोड़ जाये|

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  19. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच-631,चर्चाकार --- दिलबाग विर्क

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  20. वह बिंदास सुबह
    अब सकुचती हुई
    दबे पाँव आती है
    और लौट जाती है
    सूरज की किरणों के
    गरम मिजाज को देख कर.....
    वास्तव में भूलते जा रहे हैं लोग सुहानी सुबह का सुख

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  21. बदल देता है जमाना रेशमी ढंग
    फ़ैल जाते है बदरंग, रंग

    बधाई यशवंत जी

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  22. बहुत ही बढि़या ... ।

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  23. बहुत सुंदर रचना...

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  24. शनिवार (१०-९-११) को आपकी कोई पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर है ...कृपया आमंत्रण स्वीकार करें ....और अपने अमूल्य विचार भी दें ..आभार.

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  25. सच है आज कल सुबह भी बदल गयी है ..यही नज़ारा होता है सब जगह ..यथार्थ को कहती अच्छी रचना

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  26. bilkul sahi..samay sab kuchh badal deta hai...

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  27. यशवंत..सच कोई लौटा दे मेरे वो बीते हुए दिन

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  28. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद।

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  29. सुबह सुबह
    सूरज के निकालने तक
    कभी सुनाई देती थी
    पास की मस्जिद से आती
    अज़ान की आवाज़
    मंदिर मे बजते घंटों की आवाज़
    चिड़ियों की चहचहाहट
    जिसके सुर मे सुर मिला रहे हों
    हवा के ताज़े झोंके ।
    इसमें थोडा सा ठीक करो दोस्त ......सूरज के निकालने तक ....इस लाइन में ..निकलने होगा न ?
    बहुत सुन्दर रचना |

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  30. एग्झास्ट फैन से टकराते
    हवा के सुस्त झोंके
    वापस लौट जा रहे थे
    सेठ जी के ए सी पर

    विविधता को सहज ही nirupit karti sundar panktiyaan

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  31. वो सुबह भी आयेगी...अच्छी रचना,.

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