[कभी कभी कुछ चित्रों को देख कर बहुत कुछ मन मे आता है इस चित्र को देख कर जो मन मे आया वह प्रस्तुत है। यह चित्र अनुमति लेकर सुषमा आहुति जी की फेसबुक वॉल से लिया है]
(1)
किसी आज़ाद पंछी की तरह
पंखों को फैला कर
मैं उड़ना चाहती हूँ
मुक्त आकाश मे।
(2)
समुंदर की लहरों की तरह
उछृंखल हो कर
वक़्त के प्रतिबिंब को
खुद मे समेट कर
जीवन की नाव पर
हो कर सवार
मैं बढ़ना चाहती हूँ
खुद की तलाश मे।
kab kahan se bhawnaaon ke jwaar uthen shabdon kee ungli thaam len ...kaun janta hai , bahut sundar
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteमैं बढना चाहती हूं
खुद की तलाश में
बहुत ही सुन्दर ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ........ बेहतर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत चित्र के उतनी ही सुन्दर पंक्तिया....
ReplyDeleteभावनाओं को शब्दों में बखूबी पिरोया है आपने....
ReplyDeleteमैं बढना चाहती हूं
ReplyDeleteखुद की तलाश में..खूबसूरत मनोभावो की सुन्दर प्रस्तुति....
मन भवन प्रस्तुति ...कभी समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeletehttp://mhare-anubhav.blogspot.com/
मैं बढ़ना चाहती हूँ
ReplyDeleteखुद की तलाश मे।
बहुत सुन्दर.....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...
ReplyDeletepankho ko faila sakun, mile khula aakaash |
ReplyDeletejivan - nouka me simat, khud ki karun talaash ||
HINDI TYPE me JUST kuchh PROB hai
मैं बढ़ना चाहती हूँ
ReplyDeleteखुद की तलाश मे।
....बहुत खूब !
खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति....
ReplyDeleteमैं बढ़ना चाहती हूँ
ReplyDeleteखुद की तलाश मे।
सरल लेकिन प्रभावी अभिव्यक्ति.....
खूबसूरत ख्वाहिश!
ReplyDeleteआशीष
--
मैंगो शेक!!!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
सुन्दर उड़ान काव्य की
ReplyDeleteबहुत खूब यशवंत भाई....
ReplyDelete------
क्यों डराती है पुलिस ?
घर जाने को सूर्पनखा जी, माँग रहा हूँ भिक्षा।
आज 11- 09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
समुंदर की लहरों की तरह
ReplyDeleteउछृंखल हो कर
वक़्त के प्रतिबिंब को
खुद मे समेट कर
जीवन की नाव पर
हो कर सवार
मैं बढना चाहती हूं
खुद की तलाश में.....चित्र को खूबसूरती से शब्दों में अभिव्यक्त किया आपने
खुद की तलाश ......खूबसूरत प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत सुंदर.चित्र को शब्द चित्र में कुशलता से ढाला है.
ReplyDeleteखुद की तलाश....
ReplyDeleteवाह! सुन्दर अभिव्यक्ति...
सादर...
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना सर |
ReplyDeleteमेरे भी ब्लॉग में पधारें |
मेरी कविता
चित्र को देख बहुत सुन्दर भाव मन में आए हैं ..खूबसूरत क्षणिकाएँ
ReplyDeletesahi vicharon se avgat karati prstuti ...
ReplyDeleteअच्छा है...........काफी बदलाव सा लगा आपके ब्लॉग पर .............परिवर्तन का स्वागत है|
ReplyDeleteबेहतरीन रचना.....चित्र चयन उम्दा है...
ReplyDeleteनदी थी में
ReplyDeleteबहती थी चुपचाप
सिर्फ बहने को
जीवन मन बैठी थी
शांत लहरों को
तुमने छेड़ा जब
कल कल करती
आठ्खेलिया करने लगी
जीवन्तता का आभास पा...
चंचल हो गई,
किनारे तोड़
सभी कुछ भिगोने की जिद में
उमड़-गुमड हिलारे लेने लगी
पता नही कौन सा संगीत था ...
थिरकने लगी
बहुत सुन्दर ....
ReplyDeleteकाश सच में पंख मिल जाते
तो कितना अच्छा होता...
:-)