कितना मुक्त होता है
परिंदों का मन
पल मे यहाँ
पल मे वहाँ
पल मे ज़मीं पर
पल मे गगनचुंबी उड़ान
निश्छल ,निष्कपट
सीमाओं के अवरोध से रहित
पूर्ण स्वतंत्र
जीते हैं खुलकर जीवन।
परिंदों का मन
बस कुछ सोच ही तो नहीं सकता
मानव मन की तरह
कर नहीं सकता
संवेदनाओं का चीरहरण
घबराता तो नहीं है
भूकंपों से,सुनामियों से
विनाश और विकास से
बंटा तो नहीं होता
भाषा और धर्म मे।
परिंदों का मन
बंधनों से
कितना मुक्त होता है
कितना स्वतंत्र होता है
किसी भी डाल को
आशियाना बनाने को
हरियाली के नजदीक
प्रकृति के नजदीक
परिंदों का मन
कुछ भी गा सकता है
मुक्त कंठ से !
परिंदों का मन
पल मे यहाँ
पल मे वहाँ
पल मे ज़मीं पर
पल मे गगनचुंबी उड़ान
निश्छल ,निष्कपट
सीमाओं के अवरोध से रहित
पूर्ण स्वतंत्र
जीते हैं खुलकर जीवन।
परिंदों का मन
बस कुछ सोच ही तो नहीं सकता
मानव मन की तरह
कर नहीं सकता
संवेदनाओं का चीरहरण
घबराता तो नहीं है
भूकंपों से,सुनामियों से
विनाश और विकास से
बंटा तो नहीं होता
भाषा और धर्म मे।
परिंदों का मन
बंधनों से
कितना मुक्त होता है
कितना स्वतंत्र होता है
किसी भी डाल को
आशियाना बनाने को
हरियाली के नजदीक
प्रकृति के नजदीक
परिंदों का मन
कुछ भी गा सकता है
मुक्त कंठ से !
परिंदों का मन
ReplyDeleteकुछ भी गा सकता है
मुक्त कंठ से !
बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति ।
आज 23- 09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
____________________________________
बहुत ही खुबसूरत कविता ....
ReplyDeletesundar abhivaykti..
ReplyDeleteपरिंदो का मन जैसा काश मानव का मन भी होता ……………बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteपरिंदो का मन बंधनों से वाकई मुक्त होता है।
सुंदर अभिव्यक्ति
हरियाली के नजदीक
ReplyDeleteप्रकृति के नजदीक
परिंदों का मन
कुछ भी गा सकता है
मुक्त कंठ से !
वाकई उन्मुक्त गगन में परिंदों को उड़न भरते देख कर ऐसा ही महसूस होता है...काश हम भी पंछी होते..सुंदर भावपूर्ण कविता !
परिंदों का मन
ReplyDeleteबस कुछ सोच ही तो नहीं सकता
मानव मन की तरह
कर नहीं सकता
संवेदनाओं का चीरहरण
घबराता तो नहीं है
भूकंपों से,सुनामियों से
विनाश और विकास से
बंटा तो नहीं होता
भाषा और धर्म मे।
बहुत सुन्दर भाव हैं इन पंक्तियों के ... सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति
काश ,हम भी परिंदे ही होते ......
ReplyDeletevery nice poem
ReplyDeleteछोट परिंदे हैं बड़े, चौकन्ने फनकार |
ReplyDeleteजोखिम झटसे भांपते, कर देते हुशियार ||
सुन्दर प्रस्तुति |
बधाई ||
मुक्त कंठ से बधाई स्वीकार करें.
ReplyDeleteमुक्त कंठ से बधाई स्वीकार करें.
ReplyDeleteबोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......
ReplyDeleteआसमां की किस हद को छू पायेगा तू....
आदमी के जाल से कब तक बच पायेगा तू.....
बोल रे परिंदे....कहाँ जाएगा तू....
तेरे घर तो अब दूर होने लगे हैं तुझसे
शहर के बसेरे तो खोने लगे हैं तुझसे
अब तो लोगों की जूठन भर ही खा पायेगा तू
बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......
दिन भर चिचियाने की आवाजें आती थी सबको
मीठी-मीठी बोली हर क्षण लुभाती थी सबको
आदमी का संग-साथ कब भूल पायेगा तू....
बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......
बस थोड़े से दिन हैं तेरे,अब वो भी गिन ले तू
चंद साँसे बस बची हैं,जी भरके उनको चुन ले तू.
फिर वापस इस धरती पर नहीं आ पायेगा तू....
बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......
परिंदों का मन
ReplyDeleteकुछ भी गा सकता है
मुक्त कंठ से !........ बहुत ही खुबसूरत भावमयी कविता ....
परिंदों का मन
ReplyDeleteबंधनों से
कितना मुक्त होता है
कितना स्वतंत्र होता है
किसी भी डाल को
आशियाना बनाने को
हरियाली के नजदीक
प्रकृति के नजदीक
परिंदों का मन
कुछ भी गा सकता है
मुक्त कंठ से !.... गहरे ख्याल
भावपूर्ण अभिव्यक्ति॥सच कितना अच्छा बंधनो से मुक्त होता है न परिंदों का मन
ReplyDeleteमानव मन की तरह
कर नहीं सकता
संवेदनाओं का चीरहरण
घबराता तो नहीं है
भूकंपों से,सुनामियों से
विनाश और विकास से
बंटा तो नहीं होता
भाषा और धर्म मे।
काश हमारा मन भी वैसा ही होता....
संग्रह करने की प्रवृति नही है।
ReplyDeleteइसिलिये मुक्त है परिन्दों का मन
बहुत अच्छी रचना।
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी-पुरानी हलचल पर 24-9-11 शनिवार को ...कृपया अनुग्रह स्वीकारें ... ज़रूर पधारें और अपने विचारों से हमें अवगत कराएं ...!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर पोस्ट...........परिंदों की जिंदगी जीने की कोशिश में ही तो मुक्ति मिल सकती है .............लाजवाब |
ReplyDeleteअति सुन्दर.
ReplyDeleteपरिंदों का मन
ReplyDeleteकुछ भी गा सकता है
मुक्त कंठ से !
बहुत सही कहा आपने.... सुंदर पंक्तियाँ
bahut sundar rachna...
ReplyDeleteisiliye mera man bhi parinda ban gaya hai...
सुंदर रचना , बधाई
ReplyDeleteवाह परिंदों की तरह मुक्ताकाश में भ्रमण. सुंदर विचार और उतनी ही खूबसूरत प्रस्तुति.
ReplyDeletebeautiful n so much peaceful n serene !!
ReplyDeleteLoved it..
In a way every one of us wants to relate to the birds.... their flight n freedom induce a kind of positivity !!!
कठिन है जानना परिंदो का मन
ReplyDeleteप्यास से चीखते हैं तो भी सामान्य जन समझते हैं कि चहक रहे हैं।
बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteयही आज़ादी जो इंसान को मिलती है वो इसे भूल जाता है।
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteईश्वर ने परिंदों को पंख दिए
तो वे उड़ सकते हैं.पर मानव
ने उन्हें कितना लाचार कर दिया है.
परिंदों का मन
ReplyDeleteकुछ भी गा सकता है
kitna saral hai ye... kaash hum bhi itnae hi saral hotae..khul ker apni baat keh dete...khul ker jee lete...
iske saath hi rajiv thepda ji ki rachna bhi sunder lagi...
बहुत सुन्दर भाव...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeletebahut sundar..kash in parindon ki tarah gagan me ud pate ham bhi...
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteपरिंदों की तरह आपका मन भी अभिव्यक्ति के आकाश पर निरंतर यूँ ही विचरण करे!
ReplyDeleteशुभकामनाएं!
काश! मैं परिंदा होता....उम्दा भाव!
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