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23 September 2011

परिंदों का मन

कितना मुक्त होता है
परिंदों का मन
पल मे यहाँ
पल मे वहाँ
पल मे ज़मीं पर
पल मे गगनचुंबी उड़ान
निश्छल ,निष्कपट
सीमाओं के अवरोध से रहित
पूर्ण स्वतंत्र
जीते हैं खुलकर जीवन। 

परिंदों का मन
बस कुछ सोच ही तो नहीं सकता
मानव मन की तरह
कर नहीं सकता
संवेदनाओं का चीरहरण
घबराता तो नहीं है
भूकंपों से,सुनामियों से
विनाश और विकास से
बंटा तो नहीं होता
भाषा और धर्म मे।

परिंदों का मन
बंधनों से
कितना मुक्त होता है
कितना स्वतंत्र होता है
किसी भी डाल को
आशियाना बनाने को
हरियाली के नजदीक
प्रकृति के नजदीक
परिंदों का मन
कुछ भी गा सकता है
मुक्त कंठ से !

36 comments:

  1. परिंदों का मन
    कुछ भी गा सकता है
    मुक्त कंठ से !

    बहुत ही अच्‍छी अभिव्‍यक्ति ।

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  2. आज 23- 09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


    ...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
    ____________________________________

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  3. बहुत ही खुबसूरत कविता ....

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  4. परिंदो का मन जैसा काश मानव का मन भी होता ……………बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति।

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  5. बहुत सुंदर.
    परिंदो का मन बंधनों से वाकई मुक्त होता है।
    सुंदर अभिव्यक्ति

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  6. हरियाली के नजदीक
    प्रकृति के नजदीक
    परिंदों का मन
    कुछ भी गा सकता है
    मुक्त कंठ से !
    वाकई उन्मुक्त गगन में परिंदों को उड़न भरते देख कर ऐसा ही महसूस होता है...काश हम भी पंछी होते..सुंदर भावपूर्ण कविता !

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  7. परिंदों का मन
    बस कुछ सोच ही तो नहीं सकता
    मानव मन की तरह
    कर नहीं सकता
    संवेदनाओं का चीरहरण
    घबराता तो नहीं है
    भूकंपों से,सुनामियों से
    विनाश और विकास से
    बंटा तो नहीं होता
    भाषा और धर्म मे।

    बहुत सुन्दर भाव हैं इन पंक्तियों के ... सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति

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  8. काश ,हम भी परिंदे ही होते ......

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  9. छोट परिंदे हैं बड़े, चौकन्ने फनकार |
    जोखिम झटसे भांपते, कर देते हुशियार ||

    सुन्दर प्रस्तुति |
    बधाई ||

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  10. मुक्त कंठ से बधाई स्वीकार करें.

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  11. मुक्त कंठ से बधाई स्वीकार करें.

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  12. बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......
    आसमां की किस हद को छू पायेगा तू....
    आदमी के जाल से कब तक बच पायेगा तू.....
    बोल रे परिंदे....कहाँ जाएगा तू....


    तेरे घर तो अब दूर होने लगे हैं तुझसे
    शहर के बसेरे तो खोने लगे हैं तुझसे
    अब तो लोगों की जूठन भर ही खा पायेगा तू
    बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......


    दिन भर चिचियाने की आवाजें आती थी सबको
    मीठी-मीठी बोली हर क्षण लुभाती थी सबको
    आदमी का संग-साथ कब भूल पायेगा तू....
    बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......


    बस थोड़े से दिन हैं तेरे,अब वो भी गिन ले तू
    चंद साँसे बस बची हैं,जी भरके उनको चुन ले तू.
    फिर वापस इस धरती पर नहीं आ पायेगा तू....
    बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......

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  13. परिंदों का मन
    कुछ भी गा सकता है
    मुक्त कंठ से !........ बहुत ही खुबसूरत भावमयी कविता ....

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  14. परिंदों का मन
    बंधनों से
    कितना मुक्त होता है
    कितना स्वतंत्र होता है
    किसी भी डाल को
    आशियाना बनाने को
    हरियाली के नजदीक
    प्रकृति के नजदीक
    परिंदों का मन
    कुछ भी गा सकता है
    मुक्त कंठ से !.... गहरे ख्याल

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  15. भावपूर्ण अभिव्यक्ति॥सच कितना अच्छा बंधनो से मुक्त होता है न परिंदों का मन
    मानव मन की तरह
    कर नहीं सकता
    संवेदनाओं का चीरहरण
    घबराता तो नहीं है
    भूकंपों से,सुनामियों से
    विनाश और विकास से
    बंटा तो नहीं होता
    भाषा और धर्म मे।
    काश हमारा मन भी वैसा ही होता....

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  16. संग्रह करने की प्रवृति नही है।
    इसिलिये मुक्त है परिन्दों का मन
    बहुत अच्छी रचना।

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  17. आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी-पुरानी हलचल पर 24-9-11 शनिवार को ...कृपया अनुग्रह स्वीकारें ... ज़रूर पधारें और अपने विचारों से हमें अवगत कराएं ...!!

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  18. बहुत ही सुन्दर पोस्ट...........परिंदों की जिंदगी जीने की कोशिश में ही तो मुक्ति मिल सकती है .............लाजवाब |

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  19. परिंदों का मन
    कुछ भी गा सकता है
    मुक्त कंठ से !
    बहुत सही कहा आपने.... सुंदर पंक्तियाँ

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  20. bahut sundar rachna...
    isiliye mera man bhi parinda ban gaya hai...

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  21. सुंदर रचना , बधाई

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  22. वाह परिंदों की तरह मुक्ताकाश में भ्रमण. सुंदर विचार और उतनी ही खूबसूरत प्रस्तुति.

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  23. beautiful n so much peaceful n serene !!
    Loved it..

    In a way every one of us wants to relate to the birds.... their flight n freedom induce a kind of positivity !!!

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  24. कठिन है जानना परिंदो का मन
    प्यास से चीखते हैं तो भी सामान्य जन समझते हैं कि चहक रहे हैं।

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  25. बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...

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  26. यही आज़ादी जो इंसान को मिलती है वो इसे भूल जाता है।

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  27. वाह! बहुत सुन्दर.
    ईश्वर ने परिंदों को पंख दिए
    तो वे उड़ सकते हैं.पर मानव
    ने उन्हें कितना लाचार कर दिया है.

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  28. परिंदों का मन
    कुछ भी गा सकता है
    kitna saral hai ye... kaash hum bhi itnae hi saral hotae..khul ker apni baat keh dete...khul ker jee lete...
    iske saath hi rajiv thepda ji ki rachna bhi sunder lagi...

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  29. बहुत सुन्दर भाव...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  30. bahut sundar..kash in parindon ki tarah gagan me ud pate ham bhi...

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  31. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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  32. परिंदों की तरह आपका मन भी अभिव्यक्ति के आकाश पर निरंतर यूँ ही विचरण करे!
    शुभकामनाएं!

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  33. काश! मैं परिंदा होता....उम्दा भाव!

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