रोज़ पीठ पर बोझा लादे
वो दिख जाता है
किसी दुकान पर
पसीने से तर बतर
उसके चौदह बरस के शरीर पर
बदलते वक़्त की खरोचें
अक्सर दिख जाती हैं
कभी बालू ,सीमेंट ,गिट्टी
और कभी अनाज के बोरों
से निकलने वाली धूल
उसके जिस्म से चिपकती है
जन्मों के साथ की तरह
और जब उसका हमउम्र
उस दुकानदार का बेटा
मुँह मे चांदी की चम्मच
आँखों मे रौब का
काला चश्मा लगाए
खुद को खुदा समझ कर
उसे चिढ़ाता है
मैं देखता हूँ
मंद मंद मुस्कुराती हुई
उसकी चमकती हुई सी
आँखों को
कुछ कहने को आतुर
पर शांत से होठों को
वो इसमे भी बहुत खुश है
संतुष्ट है इस जीवन से
क्योंकि
शायद यही उसका जीवन है
पर एक आशा भी है उसके साथ
एक आशा
जो रोज़ रात को टिमटिमाती है
स्ट्रीट लाइट की मंद रोशनी मे
उसकी झोपड़ी के बाहर
जब वो सीख रहा होता है
कुछ पाठ
कूड़े के ढेर मे पायी
किसी गुमनाम की किताब से।
बहुत खूब ... बहुत ही संवेदनशील रचना .. समाज की डिस्पेरीटी को प्रभावी से उजागर किया है ...
ReplyDeleteसहज रूप से भावों में उतार दिया . शक्ति-स्वरूपा माँ आपमें स्वयं अवस्थित हों .शुभकामनाएं.
ReplyDeleteऔर जब उसका हमउम्र
ReplyDeleteउस दुकानदार का बेटा
मुँह मे चांदी की चम्मच
आँखों मे रौब का
काला चश्मा लगाए
खुद को खुदा समझ कर
उसे चिढ़ाता है
मैं देखता हूँ
सुन्दर प्रस्तुति ||
माँ की कृपा बनी रहे ||
http://dcgpthravikar.blogspot.com/2011/09/blog-post_26.html
मजदुर बालक की जीवनी को बहुत ही मर्म रूप से प्रस्तुत
ReplyDeleteकिया है आपने .
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति है .
बहुत ही संवेदनशील रचना ..भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteआपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की मंगलकामनाएँ!
बहुत ही सुन्दर भाव भर दिए हैं पोस्ट में........शानदार| नवरात्रि पर्व की शुभकामनाएं.
ReplyDeleteमजदुर बालक की जीवनी को बहुत ही मर्म रूप से प्रस्तुत
ReplyDeleteकिया है आपने .
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति है .
बहुत ही खुबसूरत से इतनी गहरी बात इतने सहज शब्दों में रख दी आपने.... मार्मिक और भावपूर्ण रचना.......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्रण.
ReplyDeleteआपकी कलम को सलाम .
चर्चा-मंच पर हैं आप
ReplyDeleteपाठक-गण ही पञ्च हैं, शोभित चर्चा मंच |
आँख-मूँद के क्यूँ गए, कर भंगुर मन-कंच |
कर भंगुर मन-कंच, टिप्पणी करते जाओ |
प्रस्तोता का करम, नरम नुस्खा अपनाओ |
रविकर न्योता देत, द्वार पर सुनिए ठक-ठक |
चलिए रचनाकार, लेखकालोचक-पाठक ||
शुक्रवार
चर्चा - मंच : 653
http://charchamanch.blogspot.com/
very sentimental.. touched my heart.
ReplyDeletewell composed !!!
संवेदनशील रचना ..भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर संवेदनशील रचना !
ReplyDeleteमन को छू गई यह प्रस्तुति ।
ReplyDeleteजो जिस हांल में भी है खुदा ने रहमत की है कि वह उस हांल में भी खुश रह सकता है ...अब कोई यही ठान ले कि हमें तो रोना ही है तो महल भी उसे हंसा नहीं सकते... बहुत गहराई से इस अहसास को जगाती कविता..
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना है यशवंत जी
ReplyDeleteबहुत अच्छे से समझा है आपने बच्चों की दिक्कतों को
बहुत सुन्दर भाव ...नवरात्रि की शुभकामनाएँ
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...संवेदनशील रचना
ReplyDeleteस्थिति परिस्थिति को संवेदनशीलता के साथ उकेरा है!
ReplyDeleteबाल शरम को रौशनी में लाती अप्रतिम रचना मार्मिक कठोर यथार्थ से रु -बा -रु .
ReplyDeleteबहुत ही संवेदनशील रचना ......... शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteसर्वप्रथम नवरात्रि पर्व पर माँ आदि शक्ति नव-दुर्गा से सबकी खुशहाली की प्रार्थना करते हुए इस पावन पर्व की बहुत बहुत बधाई व हार्दिक शुभकामनायें। बाल-मजदूरी पर लिखी सुंदर रचना।
ReplyDeleteman ke dharatal ko choone vaali shreshth prastuti.
ReplyDeleteग़रीब बचपन का सशक्त चित्रण....बेमिशाल रचना.
ReplyDeleteदुर्गा-पूजा की शुभकामनाएँ.
संवेदनाओं को झकझोरती,भावुक करती...मर्मस्पर्शी रचना...
ReplyDeleteयशवंत,
ReplyDeleteउम्दा. संवेदनशील.
आशीष
--
लाईफ?!?
यशवंत माथुर जी सुन्दर भाव रचना मन को छू गयी ..ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं .....जय माता दी आप सपरिवार को ढेर सारी शुभ कामनाएं नवरात्रि पर -माँ दुर्गा असीम सुख शांति प्रदान करें
ReplyDeleteभ्रमर ५
यशवंत माथुर जी सुन्दर भाव रचना मन को छू गयी ..ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं .....जय माता दी आप सपरिवार को ढेर सारी शुभ कामनाएं नवरात्रि पर -माँ दुर्गा असीम सुख शांति प्रदान करें
ReplyDeleteभ्रमर ५
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत गहरी बात कह गये.
ReplyDelete