जब चलना सीखा था
बचपन मे
दादा दादी की
मम्मी की पापा की
उँगलियों को थाम कर
ज़मीन पर खड़े होना
और फिर चलना
कभी दीवार का सहारा लेकर
चलने की कोशिश
अक्सर गिरना
गिर कर रोना
उठना, संभलना और चलना
डगमगाते कदमों को
प्रेरणा मिल ही जाती थी
तालियों की
मुस्कुराहटों की
बल मिल ही जाता था
ज़मीन पर स्थिर करने को
नन्हें नन्हें कदमों को
वो बचपन का दौर था
ये जवानी का दौर है
बीतते जाते हर पल की
नयी कहानी का दौर है
कदम अब भी लड़खड़ाते हैं
डगमगाते हैं
चोटिल होते हैं संभलते हैं
चलते जाते हैं
डगमगाना ज़रूरी है
गिरना ज़रूरी है
गुरूर और सुरूर को
ज़मीन पर लाने के लिये
आत्ममंथन के लिये
परिवर्तन के लिये
ज़रूरी हैं
ये डगमगाते हुए से कदम!
बचपन मे
दादा दादी की
मम्मी की पापा की
उँगलियों को थाम कर
ज़मीन पर खड़े होना
और फिर चलना
कभी दीवार का सहारा लेकर
चलने की कोशिश
अक्सर गिरना
गिर कर रोना
उठना, संभलना और चलना
डगमगाते कदमों को
प्रेरणा मिल ही जाती थी
तालियों की
मुस्कुराहटों की
बल मिल ही जाता था
ज़मीन पर स्थिर करने को
नन्हें नन्हें कदमों को
वो बचपन का दौर था
ये जवानी का दौर है
बीतते जाते हर पल की
नयी कहानी का दौर है
कदम अब भी लड़खड़ाते हैं
डगमगाते हैं
चोटिल होते हैं संभलते हैं
चलते जाते हैं
डगमगाना ज़रूरी है
गिरना ज़रूरी है
गुरूर और सुरूर को
ज़मीन पर लाने के लिये
आत्ममंथन के लिये
परिवर्तन के लिये
ज़रूरी हैं
ये डगमगाते हुए से कदम!
सुंदर प्रस्तुति |
ReplyDeleteबधाई |।
waah waah...
ReplyDeletewakai bahut hi jaroori hai girna aur sambhlkar uthna... har baar girne par ham kuch naya seekhte hain...
"girte hain sahsavaar hi madaan-e-jung mei..."
parantu wo bachpan ka girna to yaad nahi haam dadi k munh se bahut si baatein suni thi tab kee...
इसी का नाम ज़िंदगी ... आत्ममंथन ।
ReplyDeleteडगमगाना ज़रूरी है
ReplyDeleteगिरना ज़रूरी है
गुरूर और सुरूर को
ज़मीन पर लाने के लिये
आत्ममंथन के लिये
परिवर्तन के लिये
... कितना गहन अध्ययन किया है - उम्र के इस मोड़ पर यदि यह हौसला और स्वीकृति है तो मंजिल बेख़ौफ़ होगी
गुरूर और सुरूर को
ReplyDeleteज़मीन पर लाने के लिये
आत्ममंथन के लिये
परिवर्तन के लिये
गिरना ज़रूरी है...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति... गिरकर उठना, उठकर संभलना यही तो रीत है जिंदगी की...
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteज़िन्दगी है तो डगमगाएगी
कभी पुकारेगी
कभी गुनगुनायेगी
कभी रोयेगी
कभी मुस्कराएगी
मौत नहीं है जो खामोश हो जायेगी.
कविता की अंतिम पंक्तियाँ बेहद प्रभावशाली...और पीछे बजता संगीत मन मोहता है...
ReplyDeleteसुन्दर प्रतीक ... संवेदनशील रचना ...
ReplyDeleteआपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है। शुभकामनायें।
बहुत गहरी बात ...डगमगाने के बाद संभलने के सही मायने समझ आते हैं...
ReplyDeleteडगमगाना ज़रूरी है
ReplyDeleteगिरना ज़रूरी है
गुरूर और सुरूर को
ज़मीन पर लाने के लिये
आत्ममंथन के लिये
परिवर्तन के लिये
ज़रूरी हैं
ये डगमगाते हुए से कदम! ...सही कहा यशवंत..बहुत गहन भाव लिये सुन्दर अभिव्य्क्ति..शुभकामनायं..
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteअधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
डगमगाना जरुरी है....
ReplyDeleteवाह! सार्थक चिंतन... सक्षम अभिव्यक्ति....
सुन्दर रचना पर बधाई के साथ
एक सुमधुर गीत सुनवाने के लिये सादर आभार
डगमगा कर ही संतुलित हुआ जाता है..अतिसुन्दर.
ReplyDeleteबहुत गहरी बात कह दी………………गहन चिन्तन्।
ReplyDeleteबहुत ही बढि़या .. आभार ।
ReplyDeleteगहन चिंतन वाकई डगमगाना ज़रूरी है संभालने के लिए बहुत खूब ....
ReplyDeleteसमय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
जीवन के टेढ़े-मेढे रास्तों पर चलने के लिये प्रेरित करती पंक्तियाँ !
ReplyDeleteचिन्तन लिये सुंदर अभिव्यक्ति जो पाठक को बाँधे रखती है ! बधाई !
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteडगमगाने से ही सीखेंगे ....
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
आत्ममंथन के लिए परिवर्तन ज़रूरी है.....
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना..
saarth...parents are real teacher
ReplyDeleteडगमगाते कदम ही आगे चल कर सुदृढ़ता का मार्ग प्रशस्त करते हैं!
ReplyDeleteसुन्दर चिंतन!
बहुत अच्छा लिखा है .... अभिव्यक्ति सशक्त होती जा रही है ....शुभकामनायें !
ReplyDeleteइस सोच को स्वीकार्य किया है कविता के माध्यम से यानि स्वयं ने भी स्वीकारा .....बहुत उम्दा सोच .
ReplyDeleteइसी लिए कहते है - जब तक ठोकर न लगे , जिंदगी के मायने समझ में नहीं आते ! बहुत सुन्दर , बधाई !
ReplyDeleteडगमगाना ज़रूरी है आत्ममंथन के लिये...परिवर्तन के लिये...!
ReplyDeleteसुन्दर भावों को दर्शाती एक सुन्दर पोस्ट|
ReplyDeleteपरिवर्तन के लिये
ReplyDeleteज़रूरी हैं
ये डगमगाते हुए से कदम
सटीक
aachee prastuti hai yashwant ji
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteडगमगाना ज़रूरी है
ReplyDeleteगिरना ज़रूरी है
ye panktiyan jeevan ka marm keh jaati hai
bahut badhiya likhte hain aap...
www.poeticprakash.com
सच कहा है गिरने की बाद ही उत्जने का स्वाद आता है ...
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