कभी कभी लगता है हम इन्सानों को क्या हो गया है। इंसान होते हुए भी क्या इंसान कहलाने लायक हम रह गए हैं? कनुप्रिया जी की फेसबुक वॉल पर शेयर किये गए इस चित्र को देख कर तो यही लगता है। क्या हम इतने पत्थर दिल हो गए हैं कि एक नन्ही सी जान को कूड़े के ढेर मे चीटियों के खाने के लिए छोड़ दें?
हम कामना करते हैं अगला जन्म इंसान का मिले और कहीं अगले जन्म मे खुद हमारे साथ भी ऐसा हुआ तो?
खैर इस ह्र्द्यविदारक चित्र को देख कर कुछ और जो मन मे आया वह यहाँ प्रस्तुत है-
मैं कौन हूँ
मुझे नहीं पता
ये क्या हो रहा है
नहीं पता
चोट मुझ को लगी
जख्म कहाँ कहाँ बने
नहीं पता
क्या होगा मेरा
नहीं पता
नहीं पता मुझको
किसे कहूँगा माँ
नहीं पता मुझको
पिता कौन मेरा
हर पल है शामों जैसा
न जाने कब होगा सवेरा
घड़ी की टिक टिक के साथ
साँसों के चलते जाने की उम्मीद
अगर कुछ कह सका तो
कहूँगा यही
मुझे नहीं बनना इंसान
इंसान
जिसने फेंक दिया मुझ को
खरपतवार के बीच
ह्रदयहीन पशुओं के चरने को
नहीं बनना मुझे इंसान
क्योंकि
इंसान ने समझा नहीं
मुझ को भी
अपने जैसा
पल पल बीतता पल
और हर पल मुझको है
खुद की तलाश
इन इन्सानों के बीच
मुझे नहीं पता
मैं कौन हूँ?
आपने बहुत अच्छी पंक्तियाँ लिखी हैं.....आभार जल्दी ही एसी एक पोस्ट आप मेरे ब्लॉग पर भी देखेंगे.समझ नहीं आता क्या किया जाए.में एक बेटी हू और अपने माता पिता की शुक्रगुजार हू की में जिन्दा हू और उनकी लाडली भी हू.इश्वर से दुआ करती हू या तो अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो और बिटिया कीजो तो यही माता पिता दीजो और अगर ना कर सको जनम ही ना दीजो......काश लोग समझे की बेटियां तितलियाँ होती है ,पंखुडियां होती है और जो भी हो बेटियां बड़ी प्यारी होती है.....
ReplyDeleteइस तस्वीर को देखर आपका भी मन किया इस सब के खिलाफ कुछ लिखने का, मेरा भी मन हो रहा है कि इस ही अस्वीर को देखते हुए मैं भी कुछ लिखूँ। सच ही तो है,ऐसे घ्राणित कार्य को देखकर, पढ़कर,सुनकर, कौन चाहेगा इंसान बनाना कम से कम मैं तो ऐसे इन्सानों की भीड़ में दुबारा शामिल नहीं होना चाहती। जहां इंसानियत मर चुकी हो....
ReplyDeleteबहुत ही नायाब पोस्ट है ये...इसे पढ़ के शायद हम एक बार अपने अन्दर झांकने की कोशिश करे...
ReplyDeleteहृदयविदारक!
ReplyDeleteआत्ममंथन से निकली पंक्तियाँ सोचने को विवश करती हैं!
आप के ह्रदय से निकली ये पंक्तियाँ सोचने को विवश कररही हैं...क्या थे हम क्या होगये.
ReplyDeleteईश्वर ने तो इंसान बनाया था
हम तो हैवान बन रहे हैं!....
heart,soul,mind stirring picture and creation.
ReplyDeletewaah Yahswant ji... aaj to jhajhor hi diya aapne... wakai ham khushkismat hain ki ham aaj is duniya mei sahi slamat hai... parantu kya aise log insaano kee shreni mei aate hain???
ReplyDeleteयशवन्त ,
ReplyDeleteतुम्हारी आज की रचना सोते हुए तथाकथित मानव मन को झकझोर कर जगाने वाली हैं .... बहुत-बहुत शुभकामनायें!
ह्रदय दहलाने वाली बात है ये,
ReplyDeleteऐसा नहीं होना चाहिए..पर कुछ लोग शायद इस बात को नहीं समझते है..इसलिए ये घटनाये होती चली आ रही है...
समय चाहिए आज आप से,
ReplyDeleteपाई फुर्सत बाढ़ - ताप से |
परिचय पढ़िए, प्रस्तुति प्रतिपल,
शुक्रवार के इस प्रभात से ||
टिप्पणियों से धन्य कीजिए,
अपने दिल की प्रेम-माप से |
चर्चा मंच
की बाढ़े शोभा ,
भाई-भगिनी, चरण-चाप से ||
बेहतरीन पंक्तियाँ...... और ऐसी वीभत्स घटना के लिए तो क्या कहा जाये..... ?
ReplyDeleteबहुत शर्मनाक हरकत....
ReplyDeleteऐसा करने वालों को इंसान कैसे कहा जा सकता है....???
दिल को छूती आपकी प्रस्तुति.......
कभी वक्त मिला तो मेरे ब्लाग में भी पधारिएगा.....
पल पल बीतता पल
ReplyDeleteऔर हर पल मुझको है
खुद की तलाश
इन इन्सानों के बीच
मुझे नहीं पता
मैं कौन हूँ?काश! इस सवाल का जाब हम सबको मिल जाता... बहुत ही प्रभावशाली अभिवयक्ति....
उफ़,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
gahan chintan karwaati rachna....
ReplyDeleteबहुत मार्मिक चित्र .....अपनी कहानी आप कहता.........और आपकी लिखी पोस्ट भी बहुत मार्मिक है.........शुभकामनायें|
ReplyDeleteसोचने को विवश करती प्रस्तुति... इंसानियत का वीभत्स रूप...
ReplyDeleteकविता दिल को छुं गई भैया !
ReplyDeleteआहात हुआ मन.. आह!
ReplyDeleteextremely emotional n very touch !!
ReplyDeleteबहुत ही उत्कृष्ट रचना......इंसानियत के बहुत से वीभत्स रूप हैं उनमे से यह भी एक है
ReplyDeleteयशवंत एक काम करोगे?उस बच्चे के लिए कोशिश करो कि क्या पुलिस इस बच्चे को ज्यादा क़ानूनी पचड़े में फंसे किसी परिवार को देने को तैयार है?यदि हाँ तो मेरे मेल बॉक्स में अपना मोबाइल नम्बर दो.शेष बात में वही करूंगी.मेरे पास ऐसे कई कपल्स की लिस्ट है जिनके बच्चे नही है और वे तैयार है जरा सि कोशिश करो तो यह बच्चा भी माँ बाप के प्यार से वंचित नही रहेगा.प्लीज़.
ReplyDeleteलाहौल वीला कुव्वत
ReplyDeleteहैवानियत की पराकाष्ठा है यह तो
ईश्वर इन दुर्बुद्धियों को सद्बुद्धि दे
इस दुर्घटना को जीते हुए आप ने जो रचना प्रस्तुत की है, उस के लिए आप का अभिनंदन। कवि जब किसी पल को जी लेता है, तब ही ऐसी रचनाएँ आती हैं।
गुजर गया एक साल
@ इन्दु आंटी जी --मैंने आपकी यह टिप्पणी कनुप्रिया जी को फॉरवर्ड कर दी है। जैसे ही उनसे इस बच्चे के बारे मे अधिक जानकारी प्राप्त होती है मैं उसे आपको प्रेषित कर दूंगा।
ReplyDeletehriday-vidarak.......
ReplyDeletevicharneey...dil ko choo gai...
ReplyDeleteह्र्दय-द्रावक कविता !
ReplyDelete"इंसान
जिसने फेंक दिया मुझ को
खरपतवार के बीच
ह्रदयहीन पशुओं के चरने को"
एसी मानवता पर मन शर्मसार है ! अत्यंत भावपूर्ण रचना । बधाई !
वाकई देखकर मन अजीब सा हो गया...
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण और विचारणीय रचना,बधाई!
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत ही संवेदनशील पंक्तियाँ ... हिला गई अंदर तक ... कौन है ऐसे लोग ...
ReplyDelete