13 October 2011

मैं कौन हूँ ?

कभी कभी लगता है हम इन्सानों को क्या हो गया है। इंसान होते हुए भी क्या इंसान कहलाने लायक हम रह गए हैं? कनुप्रिया जी की फेसबुक वॉल पर शेयर किये गए इस चित्र को देख कर तो यही लगता है। क्या हम इतने पत्थर दिल हो गए हैं कि एक नन्ही सी जान को कूड़े के ढेर  मे चीटियों के खाने के लिए छोड़ दें?
हम कामना करते हैं अगला जन्म इंसान का मिले और कहीं अगले जन्म मे खुद हमारे साथ भी ऐसा हुआ तो?



खैर इस ह्र्द्यविदारक चित्र को देख कर कुछ और जो मन मे आया वह यहाँ प्रस्तुत है-


मैं कौन हूँ
मुझे नहीं पता
ये क्या हो रहा है
नहीं पता
चोट मुझ को लगी
जख्म कहाँ कहाँ बने
नहीं पता
क्या होगा मेरा
नहीं पता

नहीं पता मुझको
किसे कहूँगा माँ
नहीं पता मुझको
पिता कौन मेरा
हर पल है शामों जैसा
न जाने कब होगा सवेरा

घड़ी की टिक टिक के साथ
साँसों के चलते जाने की उम्मीद
अगर कुछ कह सका तो
कहूँगा यही
मुझे नहीं बनना इंसान

इंसान
जिसने फेंक दिया मुझ को
खरपतवार के बीच
ह्रदयहीन पशुओं के चरने को

नहीं बनना मुझे इंसान
क्योंकि
इंसान ने समझा नहीं
मुझ को भी
अपने जैसा

पल पल बीतता पल
और हर पल मुझको है
खुद की तलाश
इन इन्सानों के  बीच
मुझे नहीं पता
मैं कौन हूँ?

31 comments:

  1. आपने बहुत अच्छी पंक्तियाँ लिखी हैं.....आभार जल्दी ही एसी एक पोस्ट आप मेरे ब्लॉग पर भी देखेंगे.समझ नहीं आता क्या किया जाए.में एक बेटी हू और अपने माता पिता की शुक्रगुजार हू की में जिन्दा हू और उनकी लाडली भी हू.इश्वर से दुआ करती हू या तो अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो और बिटिया कीजो तो यही माता पिता दीजो और अगर ना कर सको जनम ही ना दीजो......काश लोग समझे की बेटियां तितलियाँ होती है ,पंखुडियां होती है और जो भी हो बेटियां बड़ी प्यारी होती है.....

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  2. इस तस्वीर को देखर आपका भी मन किया इस सब के खिलाफ कुछ लिखने का, मेरा भी मन हो रहा है कि इस ही अस्वीर को देखते हुए मैं भी कुछ लिखूँ। सच ही तो है,ऐसे घ्राणित कार्य को देखकर, पढ़कर,सुनकर, कौन चाहेगा इंसान बनाना कम से कम मैं तो ऐसे इन्सानों की भीड़ में दुबारा शामिल नहीं होना चाहती। जहां इंसानियत मर चुकी हो....

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  3. बहुत ही नायाब पोस्ट है ये...इसे पढ़ के शायद हम एक बार अपने अन्दर झांकने की कोशिश करे...

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  4. हृदयविदारक!
    आत्ममंथन से निकली पंक्तियाँ सोचने को विवश करती हैं!

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  5. आप के ह्रदय से निकली ये पंक्तियाँ सोचने को विवश कररही हैं...क्या थे हम क्या होगये.
    ईश्वर ने तो इंसान बनाया था
    हम तो हैवान बन रहे हैं!....

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  6. heart,soul,mind stirring picture and creation.

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  7. waah Yahswant ji... aaj to jhajhor hi diya aapne... wakai ham khushkismat hain ki ham aaj is duniya mei sahi slamat hai... parantu kya aise log insaano kee shreni mei aate hain???

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  8. यशवन्त ,
    तुम्हारी आज की रचना सोते हुए तथाकथित मानव मन को झकझोर कर जगाने वाली हैं .... बहुत-बहुत शुभकामनायें!

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  9. ह्रदय दहलाने वाली बात है ये,
    ऐसा नहीं होना चाहिए..पर कुछ लोग शायद इस बात को नहीं समझते है..इसलिए ये घटनाये होती चली आ रही है...

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  10. समय चाहिए आज आप से,
    पाई फुर्सत बाढ़ - ताप से |
    परिचय पढ़िए, प्रस्तुति प्रतिपल,
    शुक्रवार के इस प्रभात से ||
    टिप्पणियों से धन्य कीजिए,
    अपने दिल की प्रेम-माप से |
    चर्चा मंच

    की बाढ़े शोभा ,
    भाई-भगिनी, चरण-चाप से ||

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  11. बेहतरीन पंक्तियाँ...... और ऐसी वीभत्स घटना के लिए तो क्या कहा जाये..... ?

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  12. बहुत शर्मनाक हरकत....
    ऐसा करने वालों को इंसान कैसे कहा जा सकता है....???
    दिल को छूती आपकी प्रस्‍तुति.......
    कभी वक्‍त मिला तो मेरे ब्‍लाग में भी पधारिएगा.....

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  13. पल पल बीतता पल
    और हर पल मुझको है
    खुद की तलाश
    इन इन्सानों के बीच
    मुझे नहीं पता
    मैं कौन हूँ?काश! इस सवाल का जाब हम सबको मिल जाता... बहुत ही प्रभावशाली अभिवयक्ति....

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  14. gahan chintan karwaati rachna....

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  15. बहुत मार्मिक चित्र .....अपनी कहानी आप कहता.........और आपकी लिखी पोस्ट भी बहुत मार्मिक है.........शुभकामनायें|

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  16. सोचने को विवश करती प्रस्तुति... इंसानियत का वीभत्स रूप...

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  17. कविता दिल को छुं गई भैया !

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  18. आहात हुआ मन.. आह!

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  19. extremely emotional n very touch !!

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  20. बहुत ही उत्कृष्ट रचना......इंसानियत के बहुत से वीभत्स रूप हैं उनमे से यह भी एक है

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  21. यशवंत एक काम करोगे?उस बच्चे के लिए कोशिश करो कि क्या पुलिस इस बच्चे को ज्यादा क़ानूनी पचड़े में फंसे किसी परिवार को देने को तैयार है?यदि हाँ तो मेरे मेल बॉक्स में अपना मोबाइल नम्बर दो.शेष बात में वही करूंगी.मेरे पास ऐसे कई कपल्स की लिस्ट है जिनके बच्चे नही है और वे तैयार है जरा सि कोशिश करो तो यह बच्चा भी माँ बाप के प्यार से वंचित नही रहेगा.प्लीज़.

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  22. लाहौल वीला कुव्वत
    हैवानियत की पराकाष्ठा है यह तो
    ईश्वर इन दुर्बुद्धियों को सद्बुद्धि दे

    इस दुर्घटना को जीते हुए आप ने जो रचना प्रस्तुत की है, उस के लिए आप का अभिनंदन। कवि जब किसी पल को जी लेता है, तब ही ऐसी रचनाएँ आती हैं।


    गुजर गया एक साल

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  23. @ इन्दु आंटी जी --मैंने आपकी यह टिप्पणी कनुप्रिया जी को फॉरवर्ड कर दी है। जैसे ही उनसे इस बच्चे के बारे मे अधिक जानकारी प्राप्त होती है मैं उसे आपको प्रेषित कर दूंगा।

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  24. ह्र्दय-द्रावक कविता !

    "इंसान
    जिसने फेंक दिया मुझ को
    खरपतवार के बीच
    ह्रदयहीन पशुओं के चरने को"

    एसी मानवता पर मन शर्मसार है ! अत्यंत भावपूर्ण रचना । बधाई !

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  25. वाकई देखकर मन अजीब सा हो गया...

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  26. बहुत ही भावपूर्ण और विचारणीय रचना,बधाई!

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  27. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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  28. बहुत ही संवेदनशील पंक्तियाँ ... हिला गई अंदर तक ... कौन है ऐसे लोग ...

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