कभी धूप
कभी छाँव
कभी गर्मी
कभी ठंड
कभी बरसात
कभी बसंत
बदलता है मौसम
पल पल रंग।
मन भी तो ऐसा ही है
बिलकुल मौसम जैसा
पल पल बदलता हुआ
कभी अनुराग रखता है
प्रेम मे पिघलता है
और कभी
जलता है
द्वेष की गर्मी मे।
ठंड मे ठिठुरता है
किटकिटाता है
क्या हो रहा है-
सही या गलत
समझ नहीं पाता है
जम सा जाता है मन
पानी के ऊपर तैरती
बरफ की सिल्ली की तरह ।
मन!
जब बरसता है
बेहिसाब बरसता ही
चला जाता है
बे परवाह हो कर
अपनी सोच मे
अपने विचारों मे
खुद तो भीगता ही है
सबको भिगोता भी है
जैसे पहले से ही
निश्चय कर के निकला हो
बिना छाते के घर से बाहर ।
बसंत जैसा मन !
हर पल खुशनुमा सा
एक अलग ही एहसास लिये
कुछ कहता है
अपने मन की बातें करता है
मंद हवा मे झूमता है
इठलाता है
खेतों मे मुसकुराते
सरसों के फूलों मे
जैसे देख रहा हो
अपना अक्स।
मौसम और मन
कितनी समानता है
एकरूपता है
भूकंप के जैसी
सुनामियों के जैसी
ज्वालामुखियों के जैसी
और कभी
बिलकुल शांत
आराम की मुद्रा मे
लेटी हुई धरती के जैसी।
~यशवन्त माथुर©
कभी छाँव
कभी गर्मी
कभी ठंड
कभी बरसात
कभी बसंत
बदलता है मौसम
पल पल रंग।
मन भी तो ऐसा ही है
बिलकुल मौसम जैसा
पल पल बदलता हुआ
कभी अनुराग रखता है
प्रेम मे पिघलता है
और कभी
जलता है
द्वेष की गर्मी मे।
ठंड मे ठिठुरता है
किटकिटाता है
क्या हो रहा है-
सही या गलत
समझ नहीं पाता है
जम सा जाता है मन
पानी के ऊपर तैरती
बरफ की सिल्ली की तरह ।
मन!
जब बरसता है
बेहिसाब बरसता ही
चला जाता है
बे परवाह हो कर
अपनी सोच मे
अपने विचारों मे
खुद तो भीगता ही है
सबको भिगोता भी है
जैसे पहले से ही
निश्चय कर के निकला हो
बिना छाते के घर से बाहर ।
बसंत जैसा मन !
हर पल खुशनुमा सा
एक अलग ही एहसास लिये
कुछ कहता है
अपने मन की बातें करता है
मंद हवा मे झूमता है
इठलाता है
खेतों मे मुसकुराते
सरसों के फूलों मे
जैसे देख रहा हो
अपना अक्स।
मौसम और मन
कितनी समानता है
एकरूपता है
भूकंप के जैसी
सुनामियों के जैसी
ज्वालामुखियों के जैसी
और कभी
बिलकुल शांत
आराम की मुद्रा मे
लेटी हुई धरती के जैसी।
~यशवन्त माथुर©
सुंदर भाव, अच्छी रचना
ReplyDeleteअपने मन की बातें करता है
मंद हवा मे झूमता है
इठलाता है
खेतों मे मुसकुराते
सरसों के फूलों मे
जैसे देख रहा हो
अपना अक्स।
मौसम और मन
ReplyDeleteकितनी समानता है
एकरूपता है
भूकंप के जैसी
सुनामियों के जैसी
ज्वालामुखियों के जैसी
और कभी
बिलकुल शांत
आराम की मुद्रा मे
लेटी हुई धरती के जैसी।
अन्तर्मन का जानदार सच !
बहुत ही सुन्दर भाव संयोजन ।
ReplyDeleteइस अद्भुत कविता के लिए बधाई स्वीकारें...मौसम और मन का कमाल विश्लेषण किया है...वाह.
ReplyDeleteनीरज
Bahut sundar jodi milayi hai Mann aur Mausam ki
ReplyDeleteमन ... बदलने का स्वांग रचता है, जब अकेला होता है तो अपने सच को आंसुओं से नहलाता है
ReplyDeleteसच है मन मौसम की तरह ही रंग बदलता है........बहुत सुन्दर पोस्ट|
ReplyDeleteमौसम जैसा मन ... बहुत खूबसूरत रचना ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर ! मौसम और मन दोनों एक जैसे हैं... दोनों पर अपना वश नहीं, लेकिन विपरीत मौसम की मार से बचने के लिये तो मानव ने घर बना लिया है पर मन के मौसम से बचने के लिये....
ReplyDeleteमन भी तो ऐसा ही है
ReplyDeleteबिलकुल मौसम जैसा
पल पल बदलता हुआ
कभी अनुराग रखता है
प्रेम मे पिघलता है
और कभी
जलता है
द्वेष की गर्मी मे।
बहुत सुन्दर
आप मुझसे जुड़े इस उत्साह वर्धन हेतु हार्दिक धन्यवाद ...
अद्भुत विश्लेषण, मन तो मन है कभी रूठे मौषम की तरह, कभी बाढ़ की विभीषिका की तरह. मिजाज़ पकड़ने की बधाई जी
ReplyDeleteवाह ..बहुत ही बढि़या ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.. आभार...
ReplyDeleteवाह !!! मन के भावों को मौसम से जोड़कर आपने बहुत ही खूबसूरती से शब्दों में पिरोते हुए उकेरा है। बहुत ही बढ़िया और खूबसूरत प्रस्तुति के लिए आभार....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteमन भी तो ऐसा ही है
ReplyDeleteबिलकुल मौसम जैसा
पल पल बदलता हुआ
कभी अनुराग रखता है
प्रेम मे पिघलता है
और कभी
जलता है
द्वेष की गर्मी मे
मौसम और मन का बेहतरीन तुलनात्मक अभिवयक्ति.... !लेकिन एक बात लिखूं , मौसम पर तो हमारा अंकुश नहीं चल सकता और मन पर.... ??
सच, मन और मौसम में बहुत समानता है
ReplyDeleteमौसम और मन क्या बात है दोनो ही शहंशाह है ...... शुभकामनायें !
ReplyDeleteखेतों मे मुसकुराते
ReplyDeleteसरसों के फूलों मे
जैसे देख रहा हो
अपना अक्स।
खूबसूरत रचना |
मन भी मौसम की तरह कई रंग समाये है..... सुंदर रचना
ReplyDeleteSABHI ehsaaso ko sunder shabdo me samaita hai.
ReplyDeleteकई बार एक मौसम नहीं बदलता ..!बहुत सुंदर रचना , आभार ..
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
आपकी उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
मौसम और मन
ReplyDeleteकितनी समानता है
सचमुच..
सुन्दर चिंतन.... बढ़िया रचना...
सादर बधाई...
सुंदर कविता। बधाई यशवंत भाई।
ReplyDeleteसचमुच मन और मौसम में बहुत समानता है...सुन्दर रचना...
ReplyDeleteबहुत अच्छे भावों को सजोया है आपने,सुन्दर रचना !
ReplyDeleteमन और मौसम का मिजाज़ बखूबी पकड़ा है..बहुत सुन्दर लिखा है.बधाई.
ReplyDeleteमन का मौसम से प्रभावित होना स्वाभाविक है. सुंदर रचना.
ReplyDeleteबधाई.
मन भी तो ऐसा ही है
ReplyDeleteबिलकुल मौसम जैसा
सुंदर!
सुंदर तुलना,मन और मौसम की.
ReplyDeletebahut sundar vishleshan .
ReplyDeleteमौसम और मन
ReplyDeleteकितनी समानता है
एकरूपता है
भूकंप के जैसी
सुनामियों के जैसी
ज्वालामुखियों के जैसी
और कभी
बिलकुल शांत
आराम की मुद्रा मे
लेटी हुई धरती के जैसी।
...बहुत सटीक सत्य...दोनों पर ही आदमी का कोई वश नहीं होता..बहुत सुंदर
आज एक और काव्य-प्रतिभा से मुलाकात हुई ,अच्छा लगा. शुभकामनाएं..
ReplyDeletesahi kha yashwat ..mann aur mausam ek se hain..
ReplyDeleteयशवंतजी ,मौसम और मन की सुंदर समीक्षा करती रचना..अच्छी लगी
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट में स्वागत है ...
बहुत बढ़िया लिखा है.
ReplyDeleteमौसम इंसान के मन के साथ सजीव हो उठता है और बदल जाता इंसानी मन की तरह ... सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
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