08 November 2011

सुपर स्टार

सड़क से गुजरते हुए
किनारे बसी
मजदूरों की झोपड़ियों के बाहर
मैंने देखा उसे
बड़े ही ध्यान से
वो तल्लीन था
उस किताब मे
और दोहराता जा रहा था
एक कविता -
'ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार'
शायद
उस गुदड़ी के लाल को
एहसास नहीं था
खुद के सुपर स्टार होने का।

20 comments:

  1. कौन था वो महानायक :)

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

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  3. सुन्दर है आपकी कविता और सोच, बधाई

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  4. बहुत ही अच्छी भावनिक रचना

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  5. ye poem to mai bhi padhti thi,
    kal hi apni pyaari si bhanji ko sikha rahi thi
    matla, ek super-star mai bhi bana rahi thi...
    :)
    {socha,koi tareef na kare to khud hi kar leti hu}
    bahut badhiya rachna...

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  6. बेहद सुन्दर भाव से सजी, बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

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  7. अभावों से ही जन्मते हैं बहुत आगे जाने के भाव..... बहुत सुंदर रचना

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  8. वाह ...भावमय करते शब्‍दों का संगम .।

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  9. अब सोने को कौन सा पता होता है सोना होने का?
    जौहरी ही पहचानता है :)

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  10. कविता में 'उसके' द्वारा दुहरायी जा रही कविता से सब का स्नेहिल नाता है!

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  11. बहुत सुन्दर सार्थक सकारात्मक प्रस्तुति

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  12. कुछ नहीं पता कौन गुदड़ी का लाल कल का सुपर स्टार बन जाए ...बहुत अच्छी अभिव्यक्ति

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  13. आपका पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । ।धन्यवाद ।

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  14. बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता...गागर में सागर!

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  15. वह ,क्या बात है ,अच्छा लिखते हो आप.हिम्मत मत चोदिये ,सफ़लता का कोई समय नहीं होता ,देर हो सकती है अंधेर नहीं होता /सस्नेह,
    डॉ.भूपेन्द्र
    रीवा एम् पी

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  16. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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  17. कुछ अलग कुछ नया सा.........शुभकामनायें|

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