सड़क से गुजरते हुए
किनारे बसी
मजदूरों की झोपड़ियों के बाहर
मैंने देखा उसे
बड़े ही ध्यान से
वो तल्लीन था
उस किताब मे
और दोहराता जा रहा था
एक कविता -
'ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार'
शायद
उस गुदड़ी के लाल को
एहसास नहीं था
खुद के सुपर स्टार होने का।
किनारे बसी
मजदूरों की झोपड़ियों के बाहर
मैंने देखा उसे
बड़े ही ध्यान से
वो तल्लीन था
उस किताब मे
और दोहराता जा रहा था
एक कविता -
'ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार'
शायद
उस गुदड़ी के लाल को
एहसास नहीं था
खुद के सुपर स्टार होने का।
क्या बात है, बहुत सुंदर
ReplyDeleteकौन था वो महानायक :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत खूब!!!
ReplyDeleteसुन्दर है आपकी कविता और सोच, बधाई
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी भावनिक रचना
ReplyDeleteye poem to mai bhi padhti thi,
ReplyDeletekal hi apni pyaari si bhanji ko sikha rahi thi
matla, ek super-star mai bhi bana rahi thi...
:)
{socha,koi tareef na kare to khud hi kar leti hu}
bahut badhiya rachna...
बेहद सुन्दर भाव से सजी, बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteअभावों से ही जन्मते हैं बहुत आगे जाने के भाव..... बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteवाह ...भावमय करते शब्दों का संगम .।
ReplyDeleteअब सोने को कौन सा पता होता है सोना होने का?
ReplyDeleteजौहरी ही पहचानता है :)
कविता में 'उसके' द्वारा दुहरायी जा रही कविता से सब का स्नेहिल नाता है!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सार्थक सकारात्मक प्रस्तुति
ReplyDeleteकुछ नहीं पता कौन गुदड़ी का लाल कल का सुपर स्टार बन जाए ...बहुत अच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआपका पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । ।धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण कविता...गागर में सागर!
ReplyDeleteवह ,क्या बात है ,अच्छा लिखते हो आप.हिम्मत मत चोदिये ,सफ़लता का कोई समय नहीं होता ,देर हो सकती है अंधेर नहीं होता /सस्नेह,
ReplyDeleteडॉ.भूपेन्द्र
रीवा एम् पी
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteकुछ अलग कुछ नया सा.........शुभकामनायें|
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