जाना तो होगा ही
आज नहीं तो कल
एक दिन
एक हल्की सी आहट
बुलावे की
और फिर
दीवार पर टंगी
किसी तस्वीर की जगह
पाना खुद को होगा ही
जाना तो होगा ही
जाना तो होगा ही
मैं चाहूँ न चाहूँ
तुम चाहो न चाहो
शायद पहले मैं
या मुझ से पहले तुम
कितनी ही क्यों न हो अंतरंगता
एक दिन
टूट कर
बिखरना तो होगा ही
जाना तो होगा ही ।
जीवन का सत्य यही है....
ReplyDeleteजाना तो होगा ही....सुन्दर और सच्चाई को बयां करती रचना ....
यही शाश्वत सत्य है।
ReplyDeleteबिल्कुल सच
ReplyDeleteफिर भी माया मोह
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteगहन ...उदास ..किन्तु अटल सत्य ....
ReplyDeleteमृत्यु से बुरा कुछ भी नहीं और ..
मृत्यु से सच्चा कुछ भी नहीं ....
कटु सत्य ...
जाना तो होगा ही...
ReplyDeleteबस पूरी जिंदगी जी कर जाएँ तो संतोष रहता है!
अनुपमा जी, मृत्यु से अच्छा भी कोई नहीं...कल्पना कीजिये कि मृत्यु नहीं है तोजिवं कितना भयावह हो जायेगा...बस करना इतना है कि वह मृत्यु आये उससे पहले ही मरना सीख लें...यशवंत जी, बहुत सुंदर कविता...जीवन के करीब.
ReplyDeleteगीता यही है, बुद्धत्व यही तो है, - जाना है
ReplyDeleteयही शाश्वत सत्य है ..जाना तो है ही ... फिर क्यों इतनी आपा धापी है
ReplyDeleteजीवन का कटु सत्य है.... भावो की बेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteजाना तो होगा ही.
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा है आपने यशवंत भाई. पर यही तो मुश्किल है जो परम सत्य है हम उसी को समझ नही पाते.
सुंदर रचना.
जाना है,हाँ बिलकुल .पर जब तक इस पड़ाव पर हैं तब तक का विचारने और करने का काम हमारा है.अगले पड़ाव की बात वहाँ जाने पर.
ReplyDeleteयही सत्य है!
ReplyDeleteअटल सत्य
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ||
बधाई ||
http://terahsatrah.blogspot.com
one and only "TRUTH".
ReplyDeleteजीवन का एक यही सत्य..भावो की सुन्दर अभिवयक्ति...
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteजीवन और मृत्यु के चक्र को दर्शाती बहुत ही सुन्दर रचना है..
ReplyDeleteआपकी यह रचना बहुत ही बेहतरीन है..
मन तो कह रहा है जीतनी बार पढू उतनी बार comment दू ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है....
सच है ... सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteसुंदर विचार।
ReplyDeleteजीवन का अंतिम सच ....खूबसूरत कविता के माध्यम से ......
ReplyDeleteजाना तो होगा ही
ReplyDeleteमैं चाहूँ न चाहूँ
तुम चाहो न चाहो
शायद पहले मैं
या मुझ से पहले तुम
कितनी ही क्यों न हो अंतरंगता
एक दिन
टूट कर
बिखरना तो होगा ही
हर शब्द व्यथित सा ... सशक्त अभिव्यक्ति ।
हां,नाम कुछ भी दे लीजिए-जाना,बिखराव या कि यात्रा!
ReplyDeleteहाँ जाना तो होगा ही...
ReplyDeleteशाश्वत की सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसादर...
कितनी ही क्यों न हो अंतरंगता
ReplyDeleteएक दिन
टूट कर
बिखरना तो होगा ही
जाना तो होगा ही ।
.yahi shaswat sach hai... baaki sab bhram hai..
bahut badiya bhavabhvykti.............
jivan ki kadwi sachchai ko darshati hui apki kawita bahut achchhi ban padi hai....umda prastuti
ReplyDeletebahut accha likha aapne
ReplyDeletejeevan ki sacchai hain...
यही परम सत्य है|
ReplyDeleteBahut sundarta se aapne ek is jeevan ke ek sachchai ko darshaaaya hai...hum jis din is duniya mei aankhen kholte hai usi din se jaane ki tayyari ho jati hai shuru aur yah satya jaante huye bhi kitne bawaal kitna ghamand kitna laalach
ReplyDeleteahh the bitter truth... too hard to digest
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteमृत्यु तो अवश्यम्भावी है.....
ReplyDeleteबहुत सार्थक रचना,
शुभकामनाएं.