विदेश में प्रवास कर रहीं अपनी एक फेसबुक और ब्लॉगर मित्र से चैट पर बात करने के बाद लिखी गयी यह पंक्तियाँ उनको और सभी प्रवासी भारतियों को समर्पित कर रहा हूँ---
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अपनी माटी की
सोंधी सी महक से
मीलों दूर
अपने सपनों की धरती पर
उड़न खटोले से
आ उतरने के बाद
मैंने कोशिश तो बहुत की
कि भूल जाऊं
उन तंग गलियों को
छुटपन मे भाग भाग कर
जिनमे खेला करता था
कोशिश तो बहुत की
कि भूल जाऊं
गली के उस पार
काका की
कोने वाली दुकान को
जहाँ मैं लेता था स्वाद
गरम गरम जलेबी का
और अक्सर
झगड़ता था उनसे
100 ग्राम तौलने के बाद भी
एक जलेबी और
बढ़ा कर देने को
कोशिश तो बहुत की
कि भूल जाऊं
उस स्कूल को
जिसने दिया एक आधार
इस मुकाम तक आने का
कोशिश तो बहुत की
कि भूल जाऊं
घर घर मे खिलने वाले
देसी लाल गुलाब की
मादक खुशबू को
मगर न चाह कर भी
बे इंतिहा
आ रही है याद
अपनी उसी माटी की
जहां अब भी
मेरे अपनों के बीच
कहीं छुपा बैठा है
मेरा दिल
भीगती आँखों से
गिरते आंसुओं मे
तैर रहा है अक्स
'काबुलीवाला' का
मजबूरी के पिंजरे मे
कैद हो कर
गुनगुना रहा है
मेरा तन और मन-
'ऐ मेरे प्यारे वतन
ए मेरे बिछुड़े चमन
तुझ पे दिल कुर्बान !'
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अपनी माटी की
सोंधी सी महक से
मीलों दूर
अपने सपनों की धरती पर
उड़न खटोले से
आ उतरने के बाद
मैंने कोशिश तो बहुत की
कि भूल जाऊं
उन तंग गलियों को
छुटपन मे भाग भाग कर
जिनमे खेला करता था
कोशिश तो बहुत की
कि भूल जाऊं
गली के उस पार
काका की
कोने वाली दुकान को
जहाँ मैं लेता था स्वाद
गरम गरम जलेबी का
और अक्सर
झगड़ता था उनसे
100 ग्राम तौलने के बाद भी
एक जलेबी और
बढ़ा कर देने को
कोशिश तो बहुत की
कि भूल जाऊं
उस स्कूल को
जिसने दिया एक आधार
इस मुकाम तक आने का
कोशिश तो बहुत की
कि भूल जाऊं
घर घर मे खिलने वाले
देसी लाल गुलाब की
मादक खुशबू को
मगर न चाह कर भी
बे इंतिहा
आ रही है याद
अपनी उसी माटी की
जहां अब भी
मेरे अपनों के बीच
कहीं छुपा बैठा है
मेरा दिल
भीगती आँखों से
गिरते आंसुओं मे
तैर रहा है अक्स
'काबुलीवाला' का
मजबूरी के पिंजरे मे
कैद हो कर
गुनगुना रहा है
मेरा तन और मन-
'ऐ मेरे प्यारे वतन
ए मेरे बिछुड़े चमन
तुझ पे दिल कुर्बान !'
गहन भाव मन के ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ...
अपने वतन की सोंधी मिट्टी की खुशबू को भुला पाना नामुमकिन है !वतन से दूर जाने पर ही इसका महत्व मालूम होता है !
ReplyDeleteआभार !
hum to hai pardesh me desh me nikla hoga chand...ye mati ki yaad kabhi jati hi nahi balki aur bhi badhti jati hai....
ReplyDeleteबतन की याद दिलाती बहुत सुन्दर रचना.... ! बाहर जाने के बाद , बतन की कीमत पता चलता है.... !!
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट
ReplyDeleteसुंदर रचना
अपने वतन की सोंधी और सच्ची मिट्टी की खुशबू को कौन भूला पाता है. सच कहा...भाव मयी दिल को छूने वाली सुन्दर रचना..शुभकामनाएँ....
ReplyDeleteवाह, बेहतरीन रचना है... वतन से दूर ऐसा ही होता है... अपने भी बीते दिन याद आ गए...
ReplyDelete'छोटी बात' पर:
कोलकाता जैसे हादसों के ज़िम्मेदार हम हैं!
अपना घर, अपनी मिटटी ... भूलना कहाँ संभव है !
ReplyDeleteyashwant ji
ReplyDeleteaapki ye racha acchi lagi.
मजबूरी के पिंजरे मे
ReplyDeleteकैद हो कर
गुनगुना रहा है
मेरा तन और मन-
'ऐ मेरे प्यारे वतन
ए मेरे बिछुड़े चमन
तुझ पे दिल कुर्बान !'
aapne to mere dil ki baaten kahdali abhaar... :-)
Bahut khub yashwantji....
ReplyDeletehriday ko chuti bahut hi sundar rachna :)
ReplyDeleteसशक्त और प्रभावशाली रचना.....
ReplyDeleteकुछ अपनी सी बात लगी...बहुत बढ़िया.
ReplyDeleteहर पंक्ति ....मन को छू गई ...बेहद गंभीर लेखनी
ReplyDeleteप्रवासी भारतीय ही क्यूँ... ये यादें तो हर व्यक्ति से जुड़ी है जो अपने बचपन की गलियों से दूर पढ़ाई या आजीविका की खातिर अन्य शहरों में बस गए हैं...!
ReplyDeleteसुन्दर रचना!
apne vatan ka muly batati
ReplyDeleteapne desh ki rah dikhati
mati ki yad dilati
ati sundar rachana hai..
waah ji waah...
ReplyDeletesaara kissa-e-aam kar diya...
यशवंत भाई अपने तो आखिर अपने ही होते है.
ReplyDeleteबिलकुल यही लगता है यशवंत ..... बहुत ही सुंदर कविता
ReplyDeleteVery True :(
ReplyDeleteaaj apne vatan ki yaad dila di....man ko chu gayi aapki kavita..
ReplyDeleteभावुक कर देने वाली रचना।
ReplyDeleteawesome again ...
ReplyDeletesome very very strong lines above :)
Enjoyed as ever !!!!
कोशिश तो बहुत की
ReplyDeleteकि भूल जाऊं
गली के उस पार.bahut mushkil hai yadon ko bhulana.heart touching poem.
विदेशों में रहने वाले भारतीयों के मन की बात लिख दी है ..सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDelete... यहां तो घर की मुर्गी दाल बराबर होती है
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति अच्छी लगी .
ReplyDeleteबहुत अच्छी बात कही आपने...शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों का संगम ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत.......पलकों को भीगा देने वाली यादें.....हमने सिर्फ शहर छोड़ा था अपना तो भी यादें नहीं छूटती......मुल्क छोड़ने वालो को क्या हाल होता होगा इससे पता चलता है..........बहुत सुन्दर पोस्ट...........हैट्स ऑफ इसके लिए|
ReplyDeleteदेश के प्रति सुंदर भावनाओं की प्रस्तुति,.बहुत अच्छी ..
ReplyDeleteमेरी नई रचना-
नेता,चोर,और तनखैया, सियासती भगवांन हो गए
अमरशहीद मात्रभूमि के, गुमनामी में आज खो गए,
भूलसे हमने शासन देडाला, सरे आम दु:शाशन को
हर चौराहा चीर हरन है, व्याकुल जनता राशन को,
अपने वतन की मिट्टी की खुशबू को कैसे भूला जा सकता है. सच कहा है आपने...सुन्दर रचना...शुभकामनाएँ....
ReplyDeleteकहाँ बचपन में खींच के ले गए आप ... बहुत ही गहरे जज्बात जगा गई आपकी या रचना यशवंत जी ... लाजवाब ...
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी और भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteWah kya likha aapne. bahut hi achchha hai
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
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