बन रहा है
एक मकान
मेरे घर के सामने
ईंट ईंट जोड़कर
दो नहीं
तीन मंज़िला
सुंदर सा मकान
जिसके तीखे नयन नक्श पर
फिदा हो जाए
देखते ही कोई भी
मगर मौका नहीं किसी को
कि भीतर झांक भी ले
सूरज की किरणें हों
या चाँद की चाँदनी
कंक्रीट की छत
कर रही है
हर ओर पहरेदारी
मुख्य द्वार से
भीतर तक
मुझे पता है
आने वाले हैं
कुछ दिन में
ए सी
करने वाले हैं
स्थायी गठबंधन
दीवारों से
मंद मंद हवा के साथ
रूम फ्रेशनर की
भीनी भीनी खुशबू
भीतर से बाहर तक महकेगी
क्योंकि
घर के बाहर लगा
हरसिंगार का पेड़
हो गया है
अतीत की बात
आज उस मकान पर
टंग गया है
काला सा डरावना मुखौटा
ठीक वैसे ही
जैसे शिशु के माथे पर
काला काजल
लगाया जाता है
मेरे जैसी
बुरी नज़रों से बचने को !
(कल्पना पर आधारित )
एक मकान
मेरे घर के सामने
ईंट ईंट जोड़कर
दो नहीं
तीन मंज़िला
सुंदर सा मकान
जिसके तीखे नयन नक्श पर
फिदा हो जाए
देखते ही कोई भी
मगर मौका नहीं किसी को
कि भीतर झांक भी ले
सूरज की किरणें हों
या चाँद की चाँदनी
कंक्रीट की छत
कर रही है
हर ओर पहरेदारी
मुख्य द्वार से
भीतर तक
मुझे पता है
आने वाले हैं
कुछ दिन में
ए सी
करने वाले हैं
स्थायी गठबंधन
दीवारों से
मंद मंद हवा के साथ
रूम फ्रेशनर की
भीनी भीनी खुशबू
भीतर से बाहर तक महकेगी
क्योंकि
घर के बाहर लगा
हरसिंगार का पेड़
हो गया है
अतीत की बात
आज उस मकान पर
टंग गया है
काला सा डरावना मुखौटा
ठीक वैसे ही
जैसे शिशु के माथे पर
काला काजल
लगाया जाता है
मेरे जैसी
बुरी नज़रों से बचने को !
(कल्पना पर आधारित )
काला काजल
ReplyDeleteलगाया जाता है
मेरे जैसी
बुरी नज़रों से बचने को !
......वाह बहुत सही कहा आपने यशवन्त जी
' क्योंकि
ReplyDeleteघर के बाहर लगा
हारसिंगार का पेड़
हो गया है
अतीत की बात '
सत्य कहा..!
आज कल के मकानों से खुला आसमां भी नहीं दिखता ... बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..
ReplyDeletewaah kya baat hai.. bahut khoob ... :)
ReplyDeletebaap re baap... aisi kalpna... aur khud ki hi kalpana mei khud ki nazar itni paiani...
ReplyDeletegazab...
सीधी सच्ची बात बधाई यशवंत
ReplyDeleteमगर मौका नहीं किसी को
ReplyDeleteकि भीतर झांक भी ले
सूरज की किरणें हों
या चाँद की चाँदनी
कंक्रीट की छत
कर रही है
हर ओर पहरेदारी
मुख्य द्वार से
भीतर तक
Bahut Khoob :)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति .....
ReplyDeletebahut sundar rachna naye ghar ki aadhunik tasveer dikha di.
ReplyDeleteगजब की प्रस्तुति
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों का संगम...
ReplyDeleteexcellent...बहुत बहुत बढ़िया रचना...
ReplyDeleteपढ़ कर दिल खुश हो गया...खास तौर पर आखरी पंक्ति....
बिलकुल सही कह रही है रचना अब न तो आसमान ही दिखता है और न ही रह गए हैं हरसिंगार... सच्ची कल्पना
ReplyDeleteसुन्दर और सत्य ..
ReplyDeleteबहुत कुछ कहती रचना ...सुंदर
ReplyDeleteघर के बाहर लगा ,हरसिंगार का पेड़ ,
ReplyDeleteहो गया है ,अतीत की बात.... !
कंक्रीट के शहर की सच्चाई झलकाती अच्छी रचना.... !
लेकिन मेरे अपार्टमेन्ट के सामने हरसिंगार का पेड़ लगा है....:)
बहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
अब मकान ही बनते प्यारे, घर अब कहाँ बना करता है ?
ReplyDeleteपहन मुखौटे, गिरता इंसां,धन-बल लिए तना करता है.
सुंदर रचना....
(कल्पना पर आधारित )
ReplyDeleteकल्पना जरुर है ...पर ये ही आज का सच हैं .....
Great creation...waah badhai Yash.
ReplyDelete' क्योंकि
ReplyDeleteघर के बाहर लगा
हारसिंगार का पेड़
हो गया है
अतीत की बात '
बहुत खूब ।
धेरे धीरे सब कुछ खत्म होता जा रहा है .... पता नहीं आने वाला समय क्या गुल खिलाने वाला है ..
ReplyDeletedil ko chhu gai kavita...
ReplyDeleteरूम फ्रेशनर की
ReplyDeleteभीनी भीनी खुशबू
भीतर से बाहर तक महकेगी
क्योंकि
घर के बाहर लगा
हरसिंगार का पेड़
हो गया है
अतीत की बात very nice.
अच्छी लगी रचना.. ....
ReplyDeleteयह कविता कल्पनाओं के सशक्त शब्दांकन का एक अप्रतिम उदाहरण है।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया .......
ReplyDeleteमयंक अवस्थी जी का मेल पर प्राप्त कमेन्ट ---
ReplyDeleteआपकी कविता पर यह कमेण्ट तकनीकी कारणों से पोस्ट नहीं हो सका --फिर प्रयास करूँगा --मयंक
महो-अंजुम को तूने कर दिया बेदख़्ल ऐ सूरज !!
ये दुनिया मुफलिसों की थी तेरी जागीर होने तक
यांत्रिकी और अहमान्यता ने जीवन मूल्यों के साथ -साथ सौन्दर्य भी खा लिया है --कंक्रीट -हरसिंगार -स्थायी गठबन्धन और डरावना मुखौटा -सभी शब्द चित्र में भरपूर रंग भर रहे हैं --बधाई !!
कल्पना और यतार्थ एक जैसे ही हो गए है.....एक शेर अर्ज़ है -
ReplyDeleteपहले रहते थे मकान में लोग
अब लोगो के ज़ेहन में मकान रहते हैं
सब कुछ बदलता जा रहा है...बहुत सुंदर प्रस्तुति..
ReplyDeleteआज की मानसिकता को दर्शाती सुन्दर व सटीक रचना।
ReplyDeleteसूरज की किरणें हों
ReplyDeleteया चाँद की चाँदनी
कंक्रीट की छत
कर रही है
हर ओर पहरेदारी .....
सार्थक रचना....
सादर...
बेहतरीन भावपूर्ण प्रस्तुति ...!
ReplyDeleteआभार !
bhaut hi behtreen rachna.... sir...
ReplyDeleteआप सभी का तहे दिल से शुक्रिया ।
ReplyDeletebahut hi acchi rachana hai..
ReplyDeleteसारगर्भित काव्य है निसंदेह आप बधाई के अधिकारी हैं| Happy birth day 2 u.
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