नये साल पर
दीवारों से उतर जाते हैं
पुराने कैलेंडर
और टंग जाते हैं
नये
जिन पर बने होते हैं
कुछ चित्र
मन भावन
कुछ चित्र
जो जुड़े होते हैं
आस्था से
विश्वास से
कुछ चित्र
जिन पर
ठहर सी जाती हैं
नज़रें
सुकून की तलाश मे
कुछ चित्र
जो मूक हो कर भी
बोलते हैं
जिनकी आवाज़ को
कान नहीं
दिल सुनता है
और तन
महसूस करता है
दीवारों पर टंगे
कैलेंडर सिर्फ
कैलेंडर नहीं होते
जीवन होते हैं
तारीख के
बदलने पर भी
मूड के बदलने पर भी
उत्साह और गुस्से मे
खुशी और गम मे
कैलेंडर
रहता है साथ
भूत,वर्तमान
और भविष्य मे
एक अभिन्न
मित्र की तरह।
Wah Yashwantji bahut sundar likha hai aapne sach much ek calendar bada kalandar hota hai nahi...jaaaane kitni aashaye ummede inme basi hoti hai tabhi to dino ko mark kar te hai ek parivaar ke sadasya ki tarah sab maloom hota hai ise
ReplyDeleteकैलेंडर
ReplyDeleteरहता है साथ
भूत,वर्तमान
और भविष्य मे
एक अभिन्न
मित्र की तरह।
वाह ...बहुत खूब लिखा है
जो विचलित न कर दे वह स्त्री नहीं है
ReplyDeleteऔर जो विचलित हो जाए वह पुरूष नहीं है
लिखते जाओ और लिखते ही चले जाओ
नया वर्ष यही कहता है मुझसे और आपसे
बहुत सुंदर। कैलेंडर जीवन का एक अभिन्न और महत्वपूर्ण हिस्सा है।
ReplyDeletecalendar ke sath man ke bhavo ko bakhubi joda hai..bahut khoob :)
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ..........एक नयी परिभाषा |
ReplyDeletesundar shirshak..chuna hai aapne...lekhan ati sundar..
ReplyDeleteदीवारों पर टंगे
ReplyDeleteकैलेंडर सिर्फ
कैलेंडर नहीं होते
जीवन होते हैं
.....बहुत सच कहा है...सुन्दर प्रस्तुति..
कैलेंडर
ReplyDeleteमित्र की तरह। waah bhai
केलेंडर के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है......
ReplyDeleteअच्छा लिखा है ..वाह .
ReplyDeleteकल 04/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, 2011 बीता नहीं है ... !
ReplyDeletecalender ko lekar aapne bahut hi khubsurat rachna likhi hain...
ReplyDeletecalender to sabhi ke ghar main hote hain...lekin wo nazar nahi hoti jis nazar se aapne calender ko dekha hain...aur khubsurat abhivyakti ki hain.
bahut hi sundar rachna.
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - मुस्कराते - हँसते बीते २०१२ - ब्लॉग बुलेटिन
ReplyDeleteवाह क्या बात है बेहतरीन अभिव्यक्ति ....
ReplyDeletebahut shandaar..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...नव वर्ष की शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteहमारे सामने आते दिन हैं कैलेंडर ,बीते हुये उतर जाते हैं खूँटी से -हाँ उनके साथ हम कुछ चित्र जोड़ लेते हैं पर वे भी धूमिल हो जाते हैं समय की अविराम यात्रा में !
ReplyDeletebahut sundar .....
ReplyDeleteकुछ चित्र
ReplyDeleteजो मूक हो कर भी
बोलते हैं
जिनकी आवाज़ को
कान नहीं
दिल सुनता है
और तन
महसूस करता है
दीवारों पर टंगे
कैलेंडर सिर्फ
कैलेंडर नहीं होते
जीवन होते हैं
sahi kaha...
बहुत बढ़िया...
ReplyDeleteमैं तो एक साल पुराना केलेंडर भी सहेजे रखती हूँ...पिछले हिसाब-किताब को देखने के लिए :-)
बदलती तारीख और बदलते कैलेंडर प्रगति का सूचक हैं।
ReplyDeleteजी हाँ कैलेन्डर आज जीवन के अभिन्न अंग बन गए हैं | बहुत सुंदर प्रभावी रचना,..
ReplyDeleteएक अभिन्न
ReplyDeleteमित्र की तरह।
एक यथार्थ,
bahut sundar मूड के बदलने पर भी
ReplyDeleteउत्साह और गुस्से मे
खुशी और गम मे
कैलेंड ....jo mera man kahe ....sarthak
नए साल में ....प्रस्तुति अच्छी लगी.
ReplyDeleteनए वर्ष की याद गार प्रस्तुति,...
ReplyDelete"काव्यान्जलि":
,
कैलेंडर हमारे अभिन्न मित्र हैं हर काल में...सच है जब तक श्वास है तब तक समय का भान है और तब तक आज और कल है तो कैलेंडर हमारे साथ पल पल है..सुंदर कविता!
ReplyDelete'कुछ चित्र
ReplyDeleteजो मूक हो कर भी
बोलते हैं
जिनकी आवाज़ को
कान नहीं
दिल सुनता है
और तन
महसूस करता है' bahut sunder abhivyati hai.
कैलेंडरों की तरह दिन भी बदलते लोगों के तो कोइ बात होती!!
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना!!
सुन्दर!
ReplyDeleteकॅलेंडर पर बहूत हि उमदा सोच के साथ बेहतरीन रचना है....
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति है आपकी.
ReplyDeleteआपकी आवाज और बोलने का अंदाज
बहुत सुन्दर हैं.
मेरे ब्लॉग पर आपके न आने को मैं
क्या कहूँ?
बहुत सुन्दर ....आभार
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteNav varsh ke liye aapko va aapke pariwarjano, mitron ko shubhkamnayen.
ReplyDeletebahut hi achha likha hai calender par, sach vibhinn anubhutiyan de jaate hain.
shubhkamnayen
मेरी नज़र में कलेंडर की परिभाषा .....कल ...आज और कल
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