कुछ धूप निकली पर धुंध अभी बाकी है ।
बादलों के पर्दे को हटना अभी बाकी है। ।
बाकी है निशां इक जख्म का जो गहरा था ।
अक्स ने दिया दगा हर शख्स पे पहरा था । ।
खानी हैं ठोकरें पथरीली राह अभी बाकी है।
आहों की है कसम कि चलने की चाह अभी बाकी है। ।
बादलों के पर्दे को हटना अभी बाकी है। ।
बाकी है निशां इक जख्म का जो गहरा था ।
अक्स ने दिया दगा हर शख्स पे पहरा था । ।
खानी हैं ठोकरें पथरीली राह अभी बाकी है।
आहों की है कसम कि चलने की चाह अभी बाकी है। ।
कुछ धूप निकली पर धुंध अभी बाकी है ।
ReplyDeleteबादलों के पर्दे को हटना अभी बाकी है। । sach me abhi baki hai.............
bilkul baaki hai.... sir
ReplyDeleteखानी हैं ठोकरें पथरीली राह अभी बाकी है।
ReplyDeleteआहों की है कसम कि चलने की चाह अभी बाकी है। ।
खानी हैं ठोकरें पथरीली राह अभी बाकी है।
आहों की है कसम कि चलने की चाह अभी बाकी है। ।
ये चाह मंजिल का रास्ता है... सुन्दर भाव... शुभकामनाएं
अभी बहुत कुछ बाकि हैं ....
ReplyDeletelikhte rahiye yu hi kyonki,
ReplyDeleteaur padhne ki chah abhi baaki hai :)
bahut sundar rachna.
कुछ धूप निकली पर धुंध अभी बाकी है ।
ReplyDeleteबादलों के पर्दे को हटना अभी बाकी है। ।
...बहुत खूब! यह पर्दा भी जल्दी ही हटेगा...
शानदार प्रस्तुती है | जीवन में सदा ही कुछ बाकी रहता है
ReplyDeleteअन्यथा निष्क्रियता वयाप्त हो जाएगी |
जितने भी ख्याल अभी अन्दर रुके हैं , उन्हें पन्नों पर लाना बाकी है
ReplyDeleteबहुत खूब..आहों की है कसम कि चलने की चाह अभी बाकी है। ।सुन्दर...
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति बहुत बढ़िया रचना,....
ReplyDelete--"काव्यान्जलि"--
बहुत बढ़िया ..
ReplyDelete:
:
:
सादर.
खानी हैं ठोकरें पथरीली राह अभी बाकी है।
ReplyDeleteआहों की है कसम कि चलने की चाह अभी बाकी है।
और हमेशा ये चाह बनाये रखना
आगे बढ़ते जाना...
ए अभी खत्म नहीं हुआ picthure अभी बाकी है मेरे दोस्त :)....
ReplyDeletebehtareen likh rahe ho yashwant shubhkaamnaye
ReplyDeleteचाह बाकी रहेगी तभी तो आगे बढ़ेंगे ..बढ़िया ..
ReplyDelete....आहों की है कसम कि चलने की चाह अभी बाकी है
ReplyDeleteये ही उम्मीदें हैं जो जिंदगी को आसान कर देती हैं।
सुंदर सारगर्भित रचना।
खानी हैं ठोकरें पथरीली राह अभी बाकी है।
ReplyDeleteआहों की है कसम कि चलने की चाह अभी बाकी है |
ये हौसला काबिले तारीफ है.... :)
ठोकरें खा-खा कर जो पहुँचता है , मंजिल ,
मंजिल तक पहुँचने का आन्नद पाता है अनोखा..... :):)
तुम्हारे लिये.....
ReplyDeleteउमर ज्यों-ज्यों बढ़ने लगी
परिपक्वता की पर्त चढ़ने लगी.
लिखती थी जो कलम A,B,C,D कल तक
वो ज़िंदगी की किताब पढ़ने लगी.
जख्म,आह,ठोकर से आशना हुई
अब जवानी अफसाने गढ़ने लगी.
बहुत बेहतरीन नर्म और नाजुक भाव.....
बहुत ही बढि़या
ReplyDeleteकुछ धूप निकली पर धुंध अभी बाकी है ।
ReplyDeleteबादलों के पर्दे को हटना अभी बाकी है ।।
और भी बहुत कुछ बाकी है जो धुंध के साथ छंट जायेगा....!!
सुन्दर रचना...!!
बहुत खूब......उम्दा शेर|
ReplyDeleteयूँ ही चलते रहना ,रुकना नहीं कभी
ReplyDeleteक्यूँ कि जिंदगी की लंबी राहें अभी बाकि हैं
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..!
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.com
bahut umda sher, badhaai.
ReplyDeletesuper lines
ReplyDeleteबाकी है निशां इक जख्म का जो गहरा था ।
अक्स ने दिया दगा हर शख्स पे पहरा था । ।
सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता।
ReplyDeleteकुछ धूप निकली पर धुंध अभी बाकी है
ReplyDeleteबादलों के पर्दे को हटना अभी बाकी है ...
वाह गज़ब का शेर है ... बादलों के परदे हटने पर ही धूप आती है ...
बहुत सुंदर.
ReplyDeletewaah kya likha hai aapne...bahut sundar...!
ReplyDeleteaabhaar !
bahut shandar likha hai yashwant Ji..
ReplyDeleteयह ज़रा सा "बाकी" ही तो जीवन को खूबसूरत बनाता है...
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ हैं!
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteखानी हैं ठोकरें पथरीली राह अभी बाकी है।
ReplyDeleteआहों की है कसम कि चलने की चाह अभी बाकी है। ।
bahut khood kaha hai.
shubhkamnayen
कुछ धूप निकली पर धुंध अभी बाकी है ।
ReplyDeleteगहन विचार...
वाह,,,,,,,बहुत खूब लिखा आपने ...
ReplyDeleteबहूत कुछ सीख लिया जीवन में .. लेकिन फिर भी बहूत कुछ सीखना अभी बाकि है !
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