अब गिद्ध नहीं हैं आसमां में
तो सोच रहा हूँ
बेखौफ परिंदों की तरह
भर लूँ उड़ान
नीले आसमां में
और जो उड़ूँ
तो उड़ता रहूँ
अनंत ऊंचाइयों तक
जहां वजूद हो
सिर्फ मेरा
जहां सिर्फ
मेरी ही आवाज़ हो
मेरा ही नीरस गीत हो
और मेरा ही साज हो
उस निर्जन मे भी
मैं जानता हूँ
अदृश्य रूप में
कोई तो होगा साथ
जो थामेगा
रोकेगा
रहने देगा
गतिमान
ऊपर की ही ओर
बहुत
डरता हूँ
नीचे गिरने से
क्योंकि
गुरुत्वाकर्षण का रूप
धर कर
भूखा काल
नीचे
कर रहा है
मेरी प्रतीक्षा।
तो सोच रहा हूँ
बेखौफ परिंदों की तरह
भर लूँ उड़ान
नीले आसमां में
और जो उड़ूँ
तो उड़ता रहूँ
अनंत ऊंचाइयों तक
जहां वजूद हो
सिर्फ मेरा
जहां सिर्फ
मेरी ही आवाज़ हो
मेरा ही नीरस गीत हो
और मेरा ही साज हो
उस निर्जन मे भी
मैं जानता हूँ
अदृश्य रूप में
कोई तो होगा साथ
जो थामेगा
रोकेगा
रहने देगा
गतिमान
ऊपर की ही ओर
बहुत
डरता हूँ
नीचे गिरने से
क्योंकि
गुरुत्वाकर्षण का रूप
धर कर
भूखा काल
नीचे
कर रहा है
मेरी प्रतीक्षा।
वाह... बेहद प्रभावशाली भावों को व्यक्त किया है
ReplyDeleteभर लो उड़ान
ReplyDeleteछू लो अनंत ऊंचाइयों को
हौसलों से उड़ान होती है.... शुभकामनाएं
भर लो उड़ान, छू लो आसमान..हमारी शुभकामनाएँ तुम्हारे साथ है...
ReplyDeleteus anant udan ke liye hardik shubheccha ... bahut hi sundar vichar!!
ReplyDeleteअच्छी रचना।
ReplyDeleteयशवंत को पढना वाकई सुखद लगता है।
Vyang se shuru kar ant viyan ke niyam se kiya...
ReplyDeletebahut khub...
बहुत खूब यशवंत जी उड़ते रहिये और हमेशा गतिमान रहिये ऊपर की ओर...
ReplyDeleteशुभकामनाए..
Bahut khoob likha h :)
ReplyDeleteexcellent!!!!
ReplyDeletesuperb thoughts!!!
बेहतरीन भाव ... बहुत सुंदर रचना प्रभावशाली प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहद गहन और सार्थक रचना।
ReplyDeleteअच्छी रचना।
ReplyDeletebahut gehre bhav ki rachna.............
ReplyDeletejab udaan bharna hi hai to fir dar kaisa...
ReplyDeleteaakhir wajood to har jagah hai, chahe aasman ho ya dharatal...
प्रभावशाली भावों की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बढ़िया रचना,....
ReplyDeletegahan aur gambheer bhav....
ReplyDeleteलाल पर ग्रे... में नहीं पढ़ पाया ¿
ReplyDeleteक्या खूब लिखा है ....प्रभावशाली
ReplyDeleteसुन्दर बिम्बों का प्रयोग खूबसूरत रचना बधाई
ReplyDeleteबहुत खूब यशवंत जी...
ReplyDeleteबहुत खूब यशवंत जी...
ReplyDeleteगहन भाव ... सारे गिद्ध ज़मीन पर आ गए हैं और नोच रहे हैं जिंदा इंसानों की लाशों को ..
ReplyDeleteगहन प्रस्तुति...
ReplyDeletebahut gahree soch se saji prabhavshali rachna...
ReplyDeleteप्रेरक रचना।
ReplyDeleteनीरस गीत...? हर गीत रसमय हो जाता है जब विश्वास भरा हो...
ReplyDeleteकोई तो होगा साथ
जो थामेगा
रोकेगा
रहने देगा
गतिमान
ऊपर की ही ओर
बहुत
डरता हूँ
नीचे गिरने से
...और हर डर हवा हो जाता है जब विश्वास भीतर हो...सुंदर कविता!
भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गहरे अर्थ लिए ये पोस्ट बहुत पसंद आई |
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही अच्छा लिखा है ।
ReplyDeleteबहुत
ReplyDeleteडरता हूँ
नीचे गिरने से
क्योंकि
गुरुत्वाकर्षण का रूप
धर कर
भूखा काल
नीचे
कर रहा है
मेरी प्रतीक्षा। ...............................मन का वाजिब हैं ...सत्य को धारण किये
बेहद प्रभावशाली पोस्ट है आपकी |
ReplyDeletebahut achchi abhivyakti!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव !
ReplyDeleteआभार !
उम्दा रचना | बहुत खूब लिखा है |
ReplyDeleteसादर |
अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति,बेहतरीन पोस्ट
ReplyDeletewelcome to new post...वाह रे मंहगाई
ऊँचा उड़ने की तमन्ना और काल की ओर खींचता गरुत्वाकर्षण. इन दोनों में से ऊँचा उड़ने की इच्छा महान है. सुंदर कविता.
ReplyDeleteबेहतरीन और प्रशंसनीय कविता .
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
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