कुछ लाइन्स (पता नहीं कोई अर्थ निकलता भी है या नहीं ) यूं ही मन मे आईं तो अचानक लिख गयीं --
मन के ठंडे मौसम मे, लू चलती है यादों कीकुछ खुद के अरमानों की , कुछ किसी के वादों की
मैं सोच रहा पल पल क्यूँ ,धूल भी रोने लगती है
बिखरा कर अपने हर ज़र्रे को ,बेनूर सी होने लगती है
है यही प्रीत की रीत, बीत रही कुछ बातों की
सपनीली बहारों की, कुछ अधूरी मुलाकातों की
मन के ठंडे मौसम मे, अब लू चलती है यादों की
मन के ठंडे मौसम मे, अब लू चलती है यादों की