20 February 2012

मजबूरी है....

देख रहा हूँ
फिर उस ओर
पीछे मुड़ कर
की थी जिधर से शुरुआत
चलने की

बहुत पीछे कहीं
गुमनाम हो कर
खो चुके हैं अस्तित्व
शुरुआती कदमों के निशान
मगर फिर भी
मन हो रहा है
फिर से उस ओर जाने को
ढूंढ लाने को
बीता कल
प्रकट रूप मे
जो संभव नहीं
चाहने से

बस उस ओर
देखते रहना है
रह रह कर
ताकना है
उस जमीं को
बुला रही है
खींच कर
अपनी ओर 

अफसोस
मजबूरी है
आज मे जी कर
बुनते रहना है
आने वाले 
कल के ख्वाब
बीते कल की
तड़प से
बेखबर
हो कर  ।



30 comments:

  1. देख रहा हूँ
    फिर उस ओर
    पीछे मुड़ कर
    की थी जिधर से शुरुआत
    चलने की.....

    और आज भी देख रहे हैं उधर ही.....

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    1. उस जमीं को
      बुला रही है
      खींच कर
      अपनी ओर very nice.

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  2. समय के तानेबाने और जीवन की जद्दोज़हद की बात ...सुंदर लिखा है....

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  3. कल आज और कल का सफ़र तो कहते ही रहना है!
    सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  4. बहुत अच्छी प्रस्तुति,.....

    शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
    MY NEW POST ...सम्बोधन...

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  5. सच ही कहा है यशवंत जी, यह बीता कल बरबस ही हमें अपनी ओर खींचता रहता है ओर हम कुछ क्षण के लिए फिर उन्ही लम्हों को पुनः जीना चाहते है....... बहुत गहन अभिव्यक्ति.

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  6. यही तो वर्तमान का दुखडा है...
    भूत और भविष्य के बीच पिसता है...
    अच्छी रचना
    सस्नेह.

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  7. मजबूरी है
    आने वाले कल के ख्वाब बुनना ही होता है अतीत की तड़प से बेखबर होकर...
    गहन अभिव्यक्ति....

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  8. पीछे मूड कर देख तो सकते हैं ॥पर बढ्न तो आगे ही है ... सुंदर प्रस्तुति

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  9. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच
    पर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......

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  10. बुनते रहना है
    आने वाले
    कल के ख्वाब

    सही कहा, यूँही करते रहते हैं हम
    http://www.poeticprakash.com/

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  11. बीते कल की तड़प से बेखबर होकर ...
    आज कल का खवाब बुन लिया ...

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  12. सुन्दर रचना .बधाई .

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  13. Yashwant ji
    sabse pehle is khubsurat rachna ke liye
    aapko badhai.
    insaan vartmaan main reh kar,
    bhavishy ki aur dekhta hain
    jo beet gaye hain pal jeevan ke,
    use yaadon main sanjo kar rakhta hain.
    vaapis beete lamho main chah kar bhi
    lauta nahi jaa sakya.

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  14. अतीत का मोह और भविष्य की कल्पना दोनों ही स्वप्न हैं..जीना तो वर्तमान में ही है...

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  15. अत्यंत सुंदर रचना....
    सादर.

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  16. गहन अभिव्यक्ति.....अतीत से मुक्त होना बहुत कठिन है ।

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  17. वाह ..बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  18. इन ख्याबो की दुनिया की बात ही अलग हैं ...

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  19. sach apni majboori khud hi behatar dhang se jaanta hai majboori mein jeeta insan....
    bahut sundar yatharthparak rachna..

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  20. कल को भुला कर ख्वाब सजाते रहना ही तो जिन्दगी है..... बहुत ही सुन्दर रचना.....

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  21. bahut hi sundr rachna hai ,man chhu gaee

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  22. अफसोस
    मजबूरी है
    आज मे जी कर
    बुनते रहना है
    आने वाले
    कल के ख्वाब
    बीते कल की
    तड़प से
    बेखबर
    हो कर ।...बहुत गहन अभिव्यक्ति.

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  23. बहुत सुन्दर रचना |
    दो लाइन कहना चाहूंगी .......
    बीते कल कि यादों को याद करके रोता है |
    देखो न अब भी ये बालपन रह रहकर मचलता है |

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  24. अफसोस
    मजबूरी है
    आज मे जी कर
    बुनते रहना है
    आने वाले
    कल के ख्वाब
    बीते कल की
    तड़प से
    बेखबर
    हो कर ।
    shayad yahi jeevan hai
    sunder
    rachana

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  25. बहुत पीछे कहीं
    गुमनाम हो कर
    खो चुके हैं अस्तित्व
    शुरुआती कदमों के निशान
    मगर फिर भी
    मन हो रहा है
    फिर से उस ओर जाने को
    ढूंढ लाने को
    बीता कल
    प्रकट रूप मे
    जो संभव नहीं
    चाहने से
    मन के देहरी पर दस्तक देते आपके मनमोहक भाव अति सुन्दर हैं...
    सादर..!

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  26. बहुत ही सुन्दर , गहन भावाभिव्यक्ति है
    एक गीत याद आ गया,,,
    ये जीवन है इस जीवन का यही है यही है रंग रूप
    थोड़े गम ,थोड़ी खुशिया,,,,
    बहुत ही बेहतरीन रचना है....

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  27. सुंदर लिखा है..

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