[कल पापा के साथ किसी काम से शहर की ओर निकलना हुआ। टेम्पो मे बैठे हुए लखनऊ के आई टी चौराहे के पास जो नज़ारा देखा उस पर पेश हैं मेरे कुछ विचार --]
चलती जा रही थी
एक राह पर
फोर्ड गाड़ी
जिसे मैं
अफोर्ड
नहीं कर सकता
गुजरती जा रही थी
चौराहे चौराहे हो कर
अपनी मंज़िल की ओर
एक मेम
कान में मोबाइल
हाथ मे
स्टीयरिंग थामे
साब के साथ
जा रही थीं कहीं
तेज़ रफ्तार
तेज़ तर्रार
देख कर जिन्हें
सहम कर
थम जाए कोई
मैंने सोचा
होंगी कोई
मुझे क्या
न नाता
न रिश्ता
न जान
न पहचान
उनका जीवन
वो जानें
मगर
कार की खिड़की से
बीच सड़क का
श्रंगार करते
संतरे और
केले के छिलके
कर रहे थे मजबूर
दर्शन करने को
सभ्यता
शिष्टता और
शालीनता के
जीवंत प्रतीक (?) का
दे रहे थे शिक्षा
साहब बन कर
यूं ही
अपनी शान
दिखाने की
पर
न जाने क्यों
मुझे हो रहा था
गर्व
खुद के
सड़क छाप
होने पर ।
चलती जा रही थी
एक राह पर
फोर्ड गाड़ी
जिसे मैं
अफोर्ड
नहीं कर सकता
गुजरती जा रही थी
चौराहे चौराहे हो कर
अपनी मंज़िल की ओर
एक मेम
कान में मोबाइल
हाथ मे
स्टीयरिंग थामे
साब के साथ
जा रही थीं कहीं
तेज़ रफ्तार
तेज़ तर्रार
देख कर जिन्हें
सहम कर
थम जाए कोई
मैंने सोचा
होंगी कोई
मुझे क्या
न नाता
न रिश्ता
न जान
न पहचान
उनका जीवन
वो जानें
मगर
कार की खिड़की से
बीच सड़क का
श्रंगार करते
संतरे और
केले के छिलके
कर रहे थे मजबूर
दर्शन करने को
सभ्यता
शिष्टता और
शालीनता के
जीवंत प्रतीक (?) का
दे रहे थे शिक्षा
साहब बन कर
यूं ही
अपनी शान
दिखाने की
पर
न जाने क्यों
मुझे हो रहा था
गर्व
खुद के
सड़क छाप
होने पर ।
आज कल लोग झूठी शान दिखाने में ही अपना बडप्पन समझते है,.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया,बेहतरीन,अच्छी प्रस्तुति,.....
MY NEW POST...काव्यान्जलि...आज के नेता...
हम तो अपने आस पास ही लिए फिरते हैं ऐसे लोग कई बार..
ReplyDeleteअरे बहुत गुस्सा आता है...
मगर गुस्से में कभी ऐसी रचना नहीं कर पाए..
:-)
बहुत खूब ...
ऐसी सभ्यता से सड़क छाप होना बेहतर है...
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना...
: ( क्या कहा जाये.....
ReplyDeleteसही कहा।
ReplyDeleteऐसे ही लोग देश की तरक्की में बाधक होते हैं ... पढे लिखे असभ्य ...
ReplyDeleteबहुत खूब कही!
ReplyDeleteसादर
अच्छी सोच... अच्छी रचना...
ReplyDeleteहार्दिक बधाईयां..
ग़रीब की ज़िंदगी कुछ भी नहीं...
ReplyDeleteआपने तो बहुत अच्छा वर्णन किया..ऐसा कई बार देखने को मिलता है.
ReplyDelete________
'पाखी की दुनिया' में देखिएगा मिल्की टूथ की बातें..
आपने तो बहुत अच्छा वर्णन किया..ऐसा कई बार देखने को मिलता है.
ReplyDelete________
'पाखी की दुनिया' में देखिएगा मिल्की टूथ की बातें..
सार्थक व सटीक लेखन ...।
ReplyDelete,लगातार बहुत खूब यशवंत जी .इन नव रेसों को एक बार विदेशों की सैर करवानी चाहिए तब इन्हें इल्म होगा जो जितना रायीस होता है उतना ही शालीन भी होता है .निअप्त गंवार नहीं नियमों कानूनों की धज्जियां उडाता हुआ ,बेशुमार ,लगातार निशिबाषर .
ReplyDeleteबहुत खूब यशवंत जी .इन नव रईसों को एक बार विदेशों की सैर करवानी चाहिए तब इन्हें इल्म होगा जो जितना रईस होता है उतना ही शालीन भी होता है . ,निपट गंवार नहीं नियमों कानूनों की धज्जियां उडाता हुआ ,बेशुमार ,लगातार निशिबाषर .
ReplyDeleteहर घटना हृदय को बाँध लेती हैं.बहुत ही सुन्दर ढंग से आपने इस स्थिति को बयां किया है.या कविता कम चलचित्र अधिक लग रहा है.लाजबाब..
ReplyDeleteसादर....!
एक घटना जो हमें सोचने में मजबूर करती है.....
ReplyDeleteजाने अनजाने हम भी ऐसी गुस्ताखी कर बैठते हैं कभी......आगे से ख्याल रखेंगे आखिर सभ्यता का सवाल है ......फोर्ड - अफोर्ड :-))
ReplyDeleteसड़क पर ऐसी घटनाये तो अक्सर देखने को मिल
ReplyDeleteजाती है , पर फिर भी इनकी आंखे नहीं खुलती अब क्या करे ऐसे लोगो का ..सार्थक व सटीक लेखन ....
कल शनिवार , 25/02/2012 को आपकी पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
सुन्दर शब्दों में गर्वीले अहसासों में भिंगोती रचना..
ReplyDeleteekdm jiwant prastuti... sarthak
ReplyDeletesahi likha hai aesa hi kuchh najara hota hai .dekha hai hamne bhi bahut sunder likha hai
ReplyDeleterachana
ज़बरदस्त आलेख ........शुभकामनाएं !
ReplyDeleteतथाकथित सभ्य लोगों को सच्चाई का आइना दिखाती रचना .... प्रभावपूर्ण प्रस्तुति!
ReplyDeleteजीवंत कविता लिखी है यशवंत जी बधाई
ReplyDeleteकितने सीधे सच्चे शब्दों में ..कितनी सहजता से अपनी बात कह दी ..बहुत ही प्रभापूर्ण ...आभार !
ReplyDeleteprabhavi rachna....sarthak sandesh deti :)
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