कितनी जल्दी
बदल जाते हैं दिन
कितनी जल्दी
बदल जाते हैं सपने
अपेक्षाएँ ,कसमें ,वादे
चित्र भी, चरित्र भी
कभी ये मजबूरी होती है
और कभी छलावा
चेहरे के भीतर के
चेहरे का दिखावा
सूरज उगता है
दिन चढ़ता है
और ढलने के समय
रंग बदलता है
गहरी रात और फिर
बदलते रंग की तरह
श्वेत सुबह
चक्र तो प्रकृतिक ही है
फिर इस बदलाव से
मैं क्यों परेशान ?
क्यों हूँ हैरान ?
सिर्फ इसलिये कि
चुकानी पड़ती है
कुछ तो कीमत
जज्बाती होने की ।
बदल जाते हैं दिन
कितनी जल्दी
बदल जाते हैं सपने
अपेक्षाएँ ,कसमें ,वादे
चित्र भी, चरित्र भी
कभी ये मजबूरी होती है
और कभी छलावा
चेहरे के भीतर के
चेहरे का दिखावा
सूरज उगता है
दिन चढ़ता है
और ढलने के समय
रंग बदलता है
गहरी रात और फिर
बदलते रंग की तरह
श्वेत सुबह
चक्र तो प्रकृतिक ही है
फिर इस बदलाव से
मैं क्यों परेशान ?
क्यों हूँ हैरान ?
सिर्फ इसलिये कि
चुकानी पड़ती है
कुछ तो कीमत
जज्बाती होने की ।
कभी ये मजबूरी होती है
ReplyDeleteऔर कभी छलावा
चेहरे के भीतर के
चेहरे का दिखावा...
बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन सटीक रचना,......
MY RESENT POST... फुहार....: रिश्वत लिए वगैर....
बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteसच है जज्बाती होना खुद के लिए भारी पड़ता है अकसर....
भावपूर्ण लेखन.
सस्नेह.
यूँ तो बदलाव जरूरी है , या जीवन चक्र की मजबूरी है , कभी ये खुशियां दे जाता, कभी ले आता कुछ दूरी है ...........
ReplyDeletebahut sundar kavita
ReplyDeleteजज़्बात तो रहेंगे लेकिन अति जज़्बाती होने की कीमत अदा करनी पड़ती है. सुंदर रचना.
ReplyDelete...सिर्फ इसलिये कि
ReplyDeleteचुकानी पड़ती है
कुछ तो कीमत
जज्बाती होने की ।
सुन्दर अभिव्यक्ति,
सादर
jajbati hone me koi burayi nahi hai...
ReplyDeletepar jada jajbati honge par taklif hona swabhavik hai...
isliye balance hona jaruri hai.
sundar,gahan rachana:-)
बदलाव भी जरुरी हैं... बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeletebahut khoob.यह चिंगारी मज़हब की."
ReplyDeletebahut umda..
ReplyDeleteवाह ☺
ReplyDeleteपरिवर्तन सृष्टि का नियम है -लेकिन मन का जुड़ाव हो जाने पर यह खटकने लगता है.
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति ||
ReplyDeleteबधाई ||
बहुत सुन्दर....बधाई .
ReplyDeleteचक्र तो प्रकृतिक ही है
ReplyDeleteफिर इस बदलाव से
मैं क्यों परेशान ?
क्यों हूँ हैरान ?
समझ का फेर है !!
बदलाव एक शाश्वत सच है.बदलना मजबूरी नही जरूरी है.. बहुत सुन्दर मनोभाव...
ReplyDeletefew changes can b painful..
ReplyDeletebut, still its part of life !!
बदलाव सृष्टि का नियम है...जज्बाती होने से तकलीफ़ होती है...सुंदर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteसिर्फ इसलिये कि
ReplyDeleteचुकानी पड़ती है
कुछ तो कीमत
जज्बाती होने की ।
Sach Hai..... Bahut Sunder
एक अनकही हकिकत और सामयिक जज्बातों की सुन्दर शब्दों से सजी एक बेहतरीन अभिवक्ति...
ReplyDeletebilkul sach kaha aapne....jajbati hone ka nuksan to uthana padta hai.....dil ko chu gayi aapki rachna.....1 of your best creation :)
ReplyDeleteआज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ. अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
ReplyDeleteबेहतरीन लेखन ..बधाई स्वीकारें
नीरज
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
ReplyDeleteचर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
अभिभूत करती रचना सार्थक प्रयास बधाईयाँ जी
ReplyDeleteकितनी जल्दी
ReplyDeleteबदल जाते हैं दिन
कितनी जल्दी
बदल जाते हैं सपने
अपेक्षाएँ ,कसमें ,वादे
चित्र भी, चरित्र भी
कभी ये मजबूरी होती है
और कभी छलावा
चेहरे के भीतर के
चेहरे का दिखावा
इन शब्दों के मर्म बड़े गहरे हैं...
सादर..!!
चक्र तो प्रकृतिक ही है
ReplyDeleteफिर इस बदलाव से
मैं क्यों परेशान ?
क्यों हूँ हैरान ?
सिर्फ इसलिये कि
चुकानी पड़ती है
कुछ तो कीमत
जज्बाती होने की ।
मन को गहरे तक छू गई एक-एक पंक्ति...
एक-एक शब्द.... सुन्दर बिम्ब प्रयोग....
सार्थक रचना....बधाई...
जो आपका मन कहता है उसकी अभिव्यक्ति बहुत सुन्दर है..
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteचक्र तो प्रकृतिक ही है yah jante to hain lekin mante nahin. shayad yahi pareshan hone ki vajh
ReplyDeletewww.parchhayin.blogspot.com
वाह !!! बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteसिर्फ इसलिये कि
ReplyDeleteचुकानी पड़ती है
कुछ तो कीमत
जज्बाती होने की ।
बिकुल सहमत हूँ.....एक बार नहीं लगभग हमेशा ही चुकानी पड़ती है ।
"चक्र तो प्रकृतिक ही है
ReplyDeleteफिर इस बदलाव से
मैं क्यों परेशान ?
क्यों हूँ हैरान ?"
परिवर्तन प्रकृति का नियम है | सावन, पतझर, धूप, बरखा कुछ भी तो स्थायी नहीं!
सहना है हर दुःख सुख के आगमन के लिए: यही सिखाती है प्रकृति |
सुन्दर अभिव्यक्ति |
पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
ReplyDeleteइस रचना के लिए बधाई स्वीकारें
नीरज
बदलाव ही जीवन हैं
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति । धन्यवाद ।
ReplyDeleteआपकी आज बहुत सी रचनाएँ पढ़ी सब भावपूर्ण सार्थक और मार्मिक ..ये रचना कुछ ज्यादा ही दिलके करीब लगी ..बंधाई स्वीकारें
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