आज फिर उसे देखा
रोज़ की तरह
आज भी
वो खेल रही थी
अपने घर के बाहर
मैं उसे रोज़ देखता हूँ
कभी कभी छेड्ता हूँ
और वो जब दौड़ती है
'अंकल' को मारने के लिये
उन पलों का आनंद
ताज़ा रहता है
जेहन मे
काफी समय तक
उसका नटखटपन
उसकी तुतलाहट
उसकी खीझ और
खुशी
काफी है
किसी को भी
मोहने के लिए
वो छुटकी
दोस्त है मेरी
हर बार
मैं
उससे यही कहता हूँ-
कभी बड़ी मत होना
और वो
मेरी आँखों मे
अपनी नासमझ
आँखें डाल
मेरी गोद मे
इठलाती हुई
झूमती है
अपनी मस्ती मे
जैसे कह रही हो
मुझे ये सब
नहीं पता ।
(काल्पनिक)
रोज़ की तरह
आज भी
वो खेल रही थी
अपने घर के बाहर
मैं उसे रोज़ देखता हूँ
कभी कभी छेड्ता हूँ
और वो जब दौड़ती है
'अंकल' को मारने के लिये
उन पलों का आनंद
ताज़ा रहता है
जेहन मे
काफी समय तक
उसका नटखटपन
उसकी तुतलाहट
उसकी खीझ और
खुशी
काफी है
किसी को भी
मोहने के लिए
वो छुटकी
दोस्त है मेरी
हर बार
मैं
उससे यही कहता हूँ-
कभी बड़ी मत होना
और वो
मेरी आँखों मे
अपनी नासमझ
आँखें डाल
मेरी गोद मे
इठलाती हुई
झूमती है
अपनी मस्ती मे
जैसे कह रही हो
मुझे ये सब
नहीं पता ।
(काल्पनिक)
bahut hi komal si rachna,ek shukhad ahasaas kara gayee....:)
ReplyDeleteबहुत कोमल अहसास ....सुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteकोमल अहसास... नन्ही को देखकर मन तो यही कहता है कभी बड़ी मत होना लेकिन समय कहाँ मानता है, आखिर उसे बड़ा कर ही देता है...
ReplyDeleteबहुत ही मासूम और कोमल भाव लिये प्यारी सी भोली सी सुन्दर रचना..
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन सटीक रचना,......
ReplyDeletemy resent post
काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.
मासूमियत का भाव संजोए सुंदर रचना!
ReplyDeleteबहुत ही कोमल और भावपूर्ण एहसास...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
बहुत सुंदर प्रस्तुति ..
ReplyDeleteपर बडी होना भी तो आवश्यक है ..
कौन संभालेगा जीवनभर बचपन को !!
आपकी पोस्ट कल 22/3/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.com
चर्चा - 826:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
bahut hi sundar bhav liye sukhad rachna.....
ReplyDeletebahut sundar kalpana.हिन्दू नव वर्ष की शुभकामनायें .
ReplyDeleteBahut pyaari kavita! sach hai.. bachchon man ke sachche, saari jag ke aankh ke taare!!
ReplyDeletebahut sundar kalpana.हिन्दू नव वर्ष की शुभकामनायें .
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने
बहुत सुन्दर कल्पना.....
ReplyDeleteआज उससे कुछ पता नहीं.....बड़ी होना भी चाहेगी....मगर फिर जब सब पता चल जाएगा तब वापस नन्ही सी बन जाने की जिद्द करेगी....
बहुत कुछ कह गयी ये रचना यशवंत.
सस्नेह.
bahut sundar v pyari abhivyakti .badhai .
ReplyDeleteye hai mission london olympic-support this ...like this page
जिंदगी के मासूम पलों से रूबरू कराती एक मासूमियत भरी रचना.... सुन्दर!
ReplyDeleteउससे यही कहता हूँ-
ReplyDeleteकभी बड़ी मत होना
और वो
मेरी आँखों मे
अपनी नासमझ
आँखें डाल
मेरी गोद मे
इठलाती हुई
झूमती है
अपनी मस्ती मे
जैसे कह रही हो
मुझे ये सब
नहीं पता ।
wah bhai mathut ji bahut bahut badhai ...vakai bahut hi sargrbhit rachana likhi hai ap ne .
कोमल भावों से परिपूर्ण भावपूर्ण रचना.....
ReplyDeleteमेरी आँखों मे
ReplyDeleteअपनी नासमझ
आँखें डाल
मेरी गोद मे
इठलाती हुई
झूमती है
अपनी मस्ती मे
जैसे कह रही हो
मुझे ये सब
नहीं पता ।
सही कहा... ...
हम लड़कियां उसी उम्र में ठहर जातीं तो अच्छा होता हमारे लिए भी....!
सुंदर भाव .... गहरी सोच लिए
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है आपने!
ReplyDeleteइन्नोसेंस और नॉलेज की सनातन कथा. बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeletewah......bhawbhini.....
ReplyDeleteman ko chhu jaane wali rachna ,bdhaai aap ko
ReplyDeletebahut hi khubsurat rachna hai ,acha lga padh kar
ReplyDeleteumda,bahut hi umda!
ReplyDeleteKitna aacha hota..jo hum sab bhi kbi bde na hue hote....
ReplyDeleteआपकी ये दुआ लग जाए उसे!
ReplyDeleteकभी बड़ी मत होना..
वाह ....अनुपम भाव संयोजन ...
ReplyDeleteखूबसूरत कल्पना ...
ReplyDeleteकोमल भाव ...पर वक़्त रुकता कहाँ है ?
ReplyDeleteखूबसूरत भावों में सजी सुन्दर रचना |
ReplyDeleteप्यारी सी रचना...
ReplyDeleteहार्दिक बधाई.
वो छुटकी
ReplyDeleteदोस्त है मेरी
हर बार
मैं
उससे यही कहता हूँ-
कभी बड़ी मत होना
और वो
मेरी आँखों मे
अपनी नासमझ
आँखें डाल
मेरी गोद मे
इठलाती हुई
झूमती है
अपनी मस्ती मे
जैसे कह रही हो
मुझे ये सब
नहीं पता ।
humen pata hai, esiliye to hamara man kahata hai ki badi mat hona
यशवन्त जी, नव संवत्सर की ढेर सारी शुभकामनाएं आपको भी। नव देवियों की शक्ति से सिंचित आप पूरे साल ऊ र्जा और उत्साह से सक्रिय रहें। मेरी सुझाव आमंत्रित करने के लिए स्वागत और आपको धन्यवाद!
वो छुटकी
ReplyDeleteदोस्त है मेरी
हर बार
मैं
उससे यही कहता हूँ-
कभी बड़ी मत होना
और वो
मेरी आँखों मे
अपनी नासमझ
आँखें डाल
मेरी गोद मे
इठलाती हुई
झूमती है
अपनी मस्ती मे
जैसे कह रही हो
मुझे ये सब
नहीं पता ।
lekin hame pata hai esiliye to kahate hain ki kabhi badi mat hona, chhutaki! यशवन्त जी, नव संवत्सर की ढेर सारी शुभकामनाएं आपको भी। नव देवियों की शक्ति से सिंचित आप पूरे साल ऊ र्जा और उत्साह से सक्रिय रहें। मेरी सुझाव आमंत्रित करने के लिए स्वागत और आपको धन्यवाद!
और देखते देखते वो बचपन बीत जाता है .... भोला बचपन जगह ले लेता है समय में पके हुवे चरित्र की ... खूबसूरत एहसास ...
ReplyDeletebahut hi sundar kalpana hai tumhari...... ise to haqiqat me hona chahiye tha..
ReplyDeleteये नहीं पता होना ही बाल सुलभ है जो बना रहे..सुन्दर रचना.
ReplyDeleteबचपन जैसी सरल रचना ........
ReplyDeleteन जाने कितनी बार इस तरह के भाव उठते हैं ......अनजान होते हुए भी ...रोज़ देखना ..फिर मुस्कुराना ...फिर बातें..कालोनी के बच्चे ...कोई नाता न होते हुए भी एक डोर बंध जाती है ..एक रिश्ता बन जाता है ..बहुत ही सहज ..सच्ची प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.
Deleteकहीं न कहीं हम में भी ये बचपन मौजूद है ।
ReplyDeletebahut sundar kavita
ReplyDeleteबचपन के दिन बहुत ही प्यारे और बेफिक्री के दिन होते है...
ReplyDeleteकोमल अहसास लिए बहुत ही सुन्दर कल्पना है.....
जब उसे देखता हूँ
ReplyDeleteउसमें अपने को पाता हूँ
वह मुझ जैसी ही दिखती है
उसके चंचल शोखी में
मैं भी अपने बचपन में
टहल आता हूँ
सुनीता
आपकी यह कविता अपनी-अपनी सी लगी...
सादर !!!
sneh avum jeevan ki sachchai ke dar se bhari rachna, achha likha hai
ReplyDeleteshubhkamnayen