तुम से कहा था न
मिलना मुझे
अपने उसी रूप मे
जो तुम्हारा है
पर अफसोस
मैं देख पा रहा हूँ
वही रूप
जिसे तुम
देखते हो
रोज़
आईने के सामने
वो रूप नहीं
भ्रम है
मुखौटा है
जो
काला है
कभी गोरा है
जिसकी कल्पना
कभी
चित्र बन जाती है
और कभी कविता
पर अगर
देख सको
कभी
अपना असली रूप
तो करा देना
पहचान
मुझे भी
मेरे असली रूप की
जिसकी मैं
तलाश मे हूँ ।
मिलना मुझे
अपने उसी रूप मे
जो तुम्हारा है
पर अफसोस
मैं देख पा रहा हूँ
वही रूप
जिसे तुम
देखते हो
रोज़
आईने के सामने
वो रूप नहीं
भ्रम है
मुखौटा है
जो
काला है
कभी गोरा है
जिसकी कल्पना
कभी
चित्र बन जाती है
और कभी कविता
पर अगर
देख सको
कभी
अपना असली रूप
तो करा देना
पहचान
मुझे भी
मेरे असली रूप की
जिसकी मैं
तलाश मे हूँ ।
कौन है जिसने मुखौटा नहीं पहना....
ReplyDeleteसुन्दर रचना..
सस्नेह.
सच! मुखौटे के पीछे छिपा असली चेहरा देखना वाकई मुश्किल है...सुन्दर रचना....
ReplyDeleteसुन्दर आत्म-मंथन!
ReplyDeleteसादर
मुखौटे के पीछे एक और मुखौटा..ये दुनिया ही ऐसी है...बहुत सुन्दर रचना..यशवन्त बहुत बहुत बधाई..
ReplyDeleteकहाँ आज असली चेहरा दिखाई देता है...सभी मुखोटे पहने हैं...सुंदर रचना..
ReplyDeleteपरदे में रहने दो पर्दा न उठाओ पर्दा जो उठ गया तो भेद खुल जायेगा...
ReplyDeleteसुन्दर, सार्थक रचना.....
sunder bahv
ReplyDeletebahut sundar bhavabhivykti.aapko nav samvat bahut shubh v mangalmay ho .हे!माँ मेरे जिले के नेता को सी .एम् .बना दो. धारा ४९८-क भा. द. विधान 'एक विश्लेषण '
ReplyDeleteapna asli chehra to apni antaraatma hi dekh sakti hai chahe mukhota hi kyun na laga ho ,usse kuch nahi chipta.
ReplyDeletebahut achchi abhivyakti.
असली चेहरा हमारी आत्मा से छिपा नहीं रहता... गहन भाव... सुन्दर रचना...
ReplyDeleteकविता दार्शनिक बिंदु पर ठहराव पाती है. बहुत खूब यशवंत जी.
ReplyDeleteवो रूप नहीं
ReplyDeleteभ्रम है
मुखौटा है/तो करा देना
पहचान
मुझे भी
मेरे असली रूप की
जिसकी मैं
तलाश मे हूँ ।
तलाश जब जेहन में आ जाती है तो राह भी मिल जाती है ....सुंदर भाव लिए रचना ...................
वो रूप नहीं
ReplyDeleteभ्रम है
मुखौटा है/तो करा देना
पहचान
मुझे भी
मेरे असली रूप की
जिसकी मैं
तलाश मे हूँ ।
तलाश जब जेहन में आ जाती है तो राह भी मिल जाती है ....सुंदर भाव लिए रचना ...................
सुंदर ...विचारणीय भाव
ReplyDeleteखुद को तलाशती विचारणीय रचना...
ReplyDeleteखुद क तलाशती और खुद में उलझती रचना.....
ReplyDeleteawesome characterization of "Roop"... !!
ReplyDeletebhram ko htana itana aasan nhin hae.sundar post hae bdhai.mere blog par aapka svagat hae.dhanyavad.
ReplyDeleteमुखोटों की भीड़ में ढूंढते चेहरे की कहानी ... संजीदा ...
ReplyDeleteमुखौटों के बाजार में हम अपनी सूरत भुला बैठे...
ReplyDeleteदेख सको
ReplyDeleteकभी
अपना असली रूप
तो करा देना
पहचान....waah bahut achchi abhiwyakti yashwant jee ....aapki aavaj bhi bahut achchi hai thanhs nd aabhar.
अपनी ही पहचान की तलाश में आकुल रचना...... बहुत खूब!
ReplyDeleteएक चेहरे के पीछे,कई चेहरे हैं यारों
ReplyDeleteकब तक कोई बोलें,अपना नकाब तो उतारों...
दार्शनिक भाव का बोध कराती एक रचना...
Har insaan ka alag hi chehra h is duniya me....hum kuch nai kar sakte.... :(
ReplyDeleteयह सच है ....हम सबने इतने मुखौटे पहन रखे हैं ...की कहीं अपनी ही पहचान खो बैठे हैं ...
ReplyDeleteबाद मुद्दतके जो आइना देखा ..तो हुआ महसूस
यह कौन है ?...यह मैं हूँ ? ....यह मैं तो नहीं ...!!!!
सुंदर रचना,यशवन्त जी...
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - बर्गर नहीं ककड़ी खाइए साथ साथ ब्लॉग बुलेटिन पढ़ते जाइए
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
ReplyDeleteचर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्टस पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
बेहतरीन रचना..
ReplyDeleteक्या बात है , बहुत खूब..
ReplyDeleteसटीक शब्द सुन्दर पोस्ट।
ReplyDeleteसुन्दर पोस्ट असली चेहरे की पहचान में... उम्दा
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