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28 March 2012

कभी कभी .........


कभी कभी
लगता है
जैसे
अपने जाल मे फंसा कर
भूख वक़्त
कर रहा हो शिकार
भावनाओं का
और कभी कभी
ऐसा भी लगता है
जैसे
बुढ़ाती भावनाएँ
आत्महंता बन कर
खुद को फंसा रही हैं
वक़्त के फंदे में
अंत सुनिश्चित है
आज नहीं तो कल।

24 comments:

  1. अंत तो सुनिश्चित ही है ..
    सुन्दर

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  2. vakt kitana daravana hota hai...koi bachaav nahi ...:(

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  3. अंत तो सुनिश्चित है... मगर राह के काँटों संग खुशियाँ भी सुनिश्चित हैं! शुभकामनाएं!

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  4. अंत सुनिश्चित है... इसे ही तो कहते है culmination
    सुन्दर अभिव्यक्ति

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  5. अंत सुनिश्चित देह का, कहते श्री यशवंत ।
    अजर-अमर है आत्मा, ग्यानी गीता संत ।।

    क्षमा करें महोदय / महोदया ।
    अनर्गल भाव न निकालें इस तुरंती का ।
    मैंने ध्यान से पढ़ा आपकी उत्कृष्ट रचना ।
    बस यही ।।

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  6. वाह !!!!! बहुत सुंदर रचना,बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति,

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,

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  7. कुछ दिनों से अपनी उपस्थिति नहीं दे पा रही हूँ ,कंप्यूटर खराब हो गया है ..
    बहुत सुन्दर लिखा है आपने..बेहतरीन भाव..
    kalamdaan.blogspot.in

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  8. सच है हमारी भावनाएं आत्महंता बन कर वक्त के फंदे में खुद उलझ जाती है और फिर अंत तो अवश्यम्भावी है... सारगर्भित रचना, बधाई.

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  9. अंत तो निश्चित ही है ...फिर भी सब उलझते रहते हैं ... गहन अभिव्यक्ति

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  10. अति सुन्दर बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति...
    सार्थक
    दिनेश पारीक
    मेरी नई रचना
    कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: माँ की वजह से ही है आपका वजूद:
    http://vangaydinesh.blogspot.com/2012/03/blog-post_15.html?spref=bl

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  11. गहन भाव लिए ..बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  12. कभी कभी
    लगता है
    जैसे
    अपने जाल मे फंसा कर
    भूख वक़्त
    कर रहा हो शिकार
    भावनाओं का...gahan bhaav vykt karti rachna

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  13. भावनाओ का ये फंदा अपनी ही गर्दन पर कसता चला जाता है ।

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  14. अंत सुनिश्चित है, आज नहीं तो कल...
    फिर भी जीवन के हर रंग सुन्दर हैं, बहुत सुन्दर... शुभकामनाएं

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  15. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति भी है,
    आज चर्चा मंच पर ||

    शुक्रवारीय चर्चा मंच ||

    charchamanch.blogspot.com

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  16. गहन भावनाएं ....आत्महंता बन अंत कि ओर देखने लगाती हैं ...
    सटीक अभिव्यक्ति ...!!

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  17. सच कहा आपने।
    सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  18. गहराई भरी बात,वो भी सरलता से...बधाई...

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  19. गहन भावो को बहुत ही सरलता और सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है....सुन्दर..

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  20. वाह यशवंत भाई ... एक सम्पूर्ण काव्य

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  21. जैसे
    बुढ़ाती भावनाएँ
    आत्महंता बन कर
    खुद को फंसा रही हैं
    वक़्त के फंदे में
    अंत सुनिश्चित है
    आज नहीं तो कल।
    sunder bhav
    rachana

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