कभी कभी
लगता है
जैसे
अपने जाल मे फंसा कर
भूख वक़्त
कर रहा हो शिकार
भावनाओं का
और कभी कभी
ऐसा भी लगता है
जैसे
बुढ़ाती भावनाएँ
आत्महंता बन कर
खुद को फंसा रही हैं
वक़्त के फंदे में
अंत सुनिश्चित है
आज नहीं तो कल।
अति सुन्दर बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति... सार्थक दिनेश पारीक मेरी नई रचना कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: माँ की वजह से ही है आपका वजूद: http://vangaydinesh.blogspot.com/2012/03/blog-post_15.html?spref=bl
अंत तो सुनिश्चित ही है ..
ReplyDeleteसुन्दर
aapne accha likha hain.
ReplyDeletevakt kitana daravana hota hai...koi bachaav nahi ...:(
ReplyDeleteअंत तो सुनिश्चित है... मगर राह के काँटों संग खुशियाँ भी सुनिश्चित हैं! शुभकामनाएं!
ReplyDeleteअंत सुनिश्चित है... इसे ही तो कहते है culmination
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
अंत सुनिश्चित देह का, कहते श्री यशवंत ।
ReplyDeleteअजर-अमर है आत्मा, ग्यानी गीता संत ।।
क्षमा करें महोदय / महोदया ।
अनर्गल भाव न निकालें इस तुरंती का ।
मैंने ध्यान से पढ़ा आपकी उत्कृष्ट रचना ।
बस यही ।।
वाह !!!!! बहुत सुंदर रचना,बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति,
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,
कुछ दिनों से अपनी उपस्थिति नहीं दे पा रही हूँ ,कंप्यूटर खराब हो गया है ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है आपने..बेहतरीन भाव..
kalamdaan.blogspot.in
सच है हमारी भावनाएं आत्महंता बन कर वक्त के फंदे में खुद उलझ जाती है और फिर अंत तो अवश्यम्भावी है... सारगर्भित रचना, बधाई.
ReplyDeleteअंत तो निश्चित ही है ...फिर भी सब उलझते रहते हैं ... गहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteSach hai....Sateek Panktiyan
ReplyDeleteअति सुन्दर बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति...
ReplyDeleteसार्थक
दिनेश पारीक
मेरी नई रचना
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: माँ की वजह से ही है आपका वजूद:
http://vangaydinesh.blogspot.com/2012/03/blog-post_15.html?spref=bl
गहन भाव लिए ..बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeletevery nice
ReplyDeleteकभी कभी
ReplyDeleteलगता है
जैसे
अपने जाल मे फंसा कर
भूख वक़्त
कर रहा हो शिकार
भावनाओं का...gahan bhaav vykt karti rachna
भावनाओ का ये फंदा अपनी ही गर्दन पर कसता चला जाता है ।
ReplyDeleteअंत सुनिश्चित है, आज नहीं तो कल...
ReplyDeleteफिर भी जीवन के हर रंग सुन्दर हैं, बहुत सुन्दर... शुभकामनाएं
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति भी है,
ReplyDeleteआज चर्चा मंच पर ||
शुक्रवारीय चर्चा मंच ||
charchamanch.blogspot.com
गहन भावनाएं ....आत्महंता बन अंत कि ओर देखने लगाती हैं ...
ReplyDeleteसटीक अभिव्यक्ति ...!!
सच कहा आपने।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति...
गहराई भरी बात,वो भी सरलता से...बधाई...
ReplyDeleteगहन भावो को बहुत ही सरलता और सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है....सुन्दर..
ReplyDeleteवाह यशवंत भाई ... एक सम्पूर्ण काव्य
ReplyDeleteजैसे
ReplyDeleteबुढ़ाती भावनाएँ
आत्महंता बन कर
खुद को फंसा रही हैं
वक़्त के फंदे में
अंत सुनिश्चित है
आज नहीं तो कल।
sunder bhav
rachana