आप सभी को मुझ मूर्ख की ओर से मूर्ख दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ :) और चूंकि आज राम नवमी भी है इसलिए उसकी शुभ कामनाएँ भी स्वीकार कीजिये। यह रचना नयी नहीं है बल्कि ठीक एक वर्ष पूर्व इसी ब्लॉग पर प्रकाशित हो चुकी है और आज एक बार पुनः प्रस्तुत है ---
फुटपाथों पर जो रहगुज़र किया करते हैं
सड़कों पर जो घिसट घिसट कर चला करते हैं
हाथ फैलाकर जो मांगते हैं दो कौर जिंदगी के
सूखी छातियों से चिपट कर जो दूध पीया करते हैं
ईंट ईंट जोड़कर जो बनाते हैं महलों को
पत्थर घिस घिस कर खुद को घिसा करते हैं
तन ढकने को जिनको चीथड़े भी नसीब नहीं
कूड़े के ढेरों में जो खुद को ढूँढा करते हैं
वो क्या जानें क्या दीन क्या ईमान होता है
उनकी नज़रों में तो भगवान भी बेईमान होता है
ये जलवे हैं जिंदगी के ,जलजले कहीं तो हैं
जो इनमे भी जीते हैं, मूर्ख ही तो हैं.
-यशवन्त यश ©
-यशवन्त यश ©
बहुत सुन्दर अभियक्ति यशवंत जी, छू गयी दिल को...
ReplyDeleteसादर
गहरी अभिव्यक्ति. हृदयस्पर्शी....
ReplyDeleteरामजी को नमन
यथार्थवादी रचना... रामनवमी की शुभकामनाएं ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....गहन रचना यशवंत.....
ReplyDeleteआपको भी रामनवमी की शुभकामनाएँ......
((और मूर्ख दिवस की शुभकामनाएँ हम क्यों ले भाई?? :-) ))
सस्नेह.
कूड़े के ढेरों में जो खुद को ढूँढा करते हैं ...बहुत गहन अभिव्यक्ति..
ReplyDeletebahut badhia yashwant bhai...
ReplyDeleteबढिया...
ReplyDeletebadhiya kavita.. ek varsh purani to bilkul nahi lag rahi... shubhkaamnayen
ReplyDeleteReceive on mail
ReplyDeleteindira mukhopadhyay ✆ indumukho@gmail.com
3:23 PM (0 minutes ago)
to me
ये जलवे हैं जिंदगी के ,जलजले कहीं तो हैं
जो इनमे भी जीते हैं, मूर्ख ही तो हैं.
bahut khub. Ramnavmi ki shubhkamnayen.
एक कटु यथार्थ का इतना सुन्दर चित्रण वाकई काबिले तारीफ़ है.
ReplyDeletedeep and intense expressions Yash..
ReplyDeletewish u the same !!
गहन अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteरामनवमी की शुभकामनाएँ...मूर्ख दिवस की भी.
वाह ! बहुत ही सुन्दर ढंग से व्यक्त किया है..
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है..
ReplyDeleteगरीबो के दर्द को समझा..
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति है....
वाह!!!!!बहुत सुंदर बेहतरीन मार्मिक भाव अभिव्यक्ति,यशवंत जी
ReplyDeleteMY RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,
असहाय सच .....!
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी कविता....
ReplyDeleteसुभानाल्लाह......बहुत ही खूब पिछले साल का तो याद नहीं हमने तो अभी पढ़ी......बहुत ही शानदार है पोस्ट.........हैट्स ऑफ इसके लिए ।
ReplyDeleteये शब्द चित्र है उस हिन्दुस्तान का जिसकी ग्रोथ रेट के बड़े चढ़े चर्चे हैं .
ReplyDeleteकल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए ,(कचरा बीनते हुए ) मैंने पूछा नाम तो -
बोला के हिन्दुस्तान है .
वो क्या जानें क्या दीन क्या ईमान होता है
ReplyDeleteउनकी नज़रों में तो भगवान भी बेईमान होता है ....
तीखा ..एकदम तल्ख़
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ... आने में कुछ विलम्ब अवश्य हो गया है ... :)
ReplyDeleteमूर्ख दिवस पर एक गम्भीर सोच
ReplyDeletebahut vicharneey kavita...
ReplyDeleteसत्य को कहती अच्छी रचना
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति ...मन उद्वेलित कर गई ....
ReplyDeleteआने में कुछ विलम्ब अवश्य हो गया है ,गहन अभिव्यक्ति .
ReplyDeleteक्या बात है,भगवान भी बेईमान होता है........
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति.
बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteयह हर युग की दास्तान है। जीवन का असली स्पंदन भी इन मूर्खों के पास ही नसीब होता है।
ReplyDeleteप्यारी कविता....
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