05 April 2012

इस राह पर.....

कभी कभी मैं बहुत कुछ अजीब सोचता हूँ। यह पंक्तियाँ मेरे सिरफिरे मन मे आए कुछ विचारों का परिणाम हैं। और चूंकि अब लिख गयी हैं तो आप भी झेलिए :)















इस राह पर
हुआ करती थी
कभी चहल पहल
तन का चोला ओढ़े
84 करोड़ आत्माएँ
भेदती थीं
धरती का सीना
अपनी पदचापों से

आज
ये राह सुनसान है
जीवन की
कल्पना से परे
गहन,बेचैन
और
भावशून्य निर्वात
भीतर ही भीतर
सिसक रहा है

इस राह पर
अक्सर दिखता है
आसमान मे
चमकता चाँद 
बादलों से
अठखेलियाँ करता चाँद
बेढब बेडौल
मगर
मुसकुराता सा चाँद-
इस राह को
ऐसे देखता है
जैसे उसे
पता हो सब
भूत और
भविष्य का विधान

इस राह पर
निर्जन राह पर
टिकी हुई है
मेरी दृष्टि
समय के उस पार से
चाँद के उस पार से
तिलिस्मी
आकाश गंगा की
अनंत गहराइयों के
भीतर से
ताक रहा हूँ
एकटक 
प्रकाश वर्षों के
इस पार
इस एक
अकेली
राह पर!

34 comments:

  1. भीतर से
    ताक रहा हूँ
    एकटक
    प्रकाश वर्षों के
    इस पार
    इस एक
    अकेली
    राह पर!

    सुन्दर अनुभूति!
    सादर

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  2. भीतर से
    ताक रहा हूँ
    एकटक
    प्रकाश वर्षों के
    इस पार
    इस एक
    अकेली
    राह पर!
    और मैं जहां से देख रहा हूँ दिखती हैं अनुभूतियों की बारात और अंतर्द्वंद

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  3. आकाश गंगा की
    अनंत गहराइयों के
    भीतर से
    ताक रहा हूँ
    एकटक
    प्रकाश वर्षों के
    इस पार
    इस एक
    अकेली
    राह पर!

    ....बेहतरीन प्रस्तुति....

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  4. बहुत सुन्दर यशवंत.............
    तुम्हारा सर पूरी तरह फिर जाये तो कविता में क़यामत आ जाये...
    :-)
    बेहतरीन..

    सस्नेह.

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  5. बहुत सही |
    आभार आपका ||

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  6. बेवजह नहीं उठते भाव... कुछ तो सम्बन्ध होता है इनका सच्चाई से, जैसे कहते हैं ना बिना आग के धुंआ नहीं उठता... चिंता है धरती भविष्य के लिए... सार्थक रचना... शुभकामनाएं

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  7. भीतर से
    ताक रहा हूँ
    एकटक
    प्रकाश वर्षों के
    इस पार
    इस एक
    अकेली
    राह पर!

    वाह !! क्या बात है ... !!

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  8. अकेली राह और उस पर पसरा सन्नाटा .... कभी कभी जीवन से साम्य सा लगने लगता है ... गहन अभिव्यक्ति ...

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  9. बहुत कुछ कह गयी ये राह....... बहतरीन......

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  10. मेल पर प्राप्त -

    yashoda agrawal ✆

    9:07 AM

    to me
    अत्यन्त सुन्दर व रम्य रचना

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  11. वाह: यशवन्त !सिरफिरे मन का कमाल बेमिसाल है..बहुत सुन्दर भावो को संजोया है...सुन्दर...

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  12. मुसकुराता सा चाँद-
    इस राह को
    ऐसे देखता है
    जैसे उसे
    पता हो सब
    भूत और
    भविष्य का विधान !

    अनुभूति......
    सुन्दर ....
    बहुत सुन्दर...!!

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  13. आकाश गंगा की
    अनंत गहराइयों के
    भीतर से
    ताक रहा हूँ
    एकटक
    प्रकाश वर्षों के
    इस पार
    इस एक
    अकेली
    राह पर!
    .......जहांसे कभी मैं गुज़रा था........!

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  14. अनंत के यात्रियों का इस पार होना ही उन्हें उस पार की याद दिलाता है. सुंदर रचना.

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  15. सारगर्भित रचना..

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  16. bahut sundar abhivyakti. man kabhi kabhi yoon hi bhatakate bhatakate bahut kuchh kah deta hai gahan aur gambheer............

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  17. एकटक
    प्रकाश वर्षों के
    इस पार..

    loved that expression !!

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  18. भीतर से
    ताक रहा हूँ
    एकटक
    प्रकाश वर्षों के
    इस पार
    इस एक
    अकेली
    राह पर!
    Wah...Gahan Bhav..

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  19. सारगर्भित विचार

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  20. भाव -भरी रचना हार्दिक बधाई .........

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  21. समय के उस पार से
    चाँद के उस पार से
    तिलिस्मी
    आकाश गंगा की
    अनंत गहराइयों के
    भीतर से
    ताक रहा हूँ
    bahut badhiyaa yashwant jee tinon kalon ko smahit krti rachana....

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  22. सुनते हैं इस अकेली राह पे हर किसी को कभी न कभी तो चलना ही होता है ...
    लाजवाब अभिव्यक्ति ...

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  23. आकाश गंगा की,अनंत गहराइयों के ,
    भीतर से ताक रहा हूँ , एकटक ,
    प्रकाश वर्षों के इस पार ,
    इस एक अकेली राह पर .... !

    कभी लगते एक नटखट बच्चे से ,

    कभी हो जाते इतने सयाने ,रच डालते ,

    समझ से परे सारगर्भित-गूढ़ बातें .... !!

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  24. ... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

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  25. सुंदर सारगर्भित रचना.....
    बेहतरीन प्रस्तुती....

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  26. इस राह पर
    हुआ करती थी
    कभी चहल पहल
    तन का चोला ओढ़े
    84 करोड़ आत्माएँ
    भेदती थीं
    धरती का सीना
    अपनी पदचापों से
    iss rah ki adbhut baat.
    pyari rachna...

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