बुद्धिजीवियों की
कालोनी से गुजरते
उस रस्ते पर
मैंने देखा
कोलतार की
वह सड़क
चौड़ी
की जा रही थी
बूढ़े पेड़ों को
उनकी
औकात बताई जा रही थी
और उस किनारे
पार्क से
आ रही थी आवाज़--
सड़क के
सामने वाले घर मे
गुज़र करने वाले
सज्जन
माइक पर
कर रहे थे आह्वान
पृथ्वी को बचाने का
पृथ्वी दिवस मनाने का।
कालोनी से गुजरते
उस रस्ते पर
मैंने देखा
कोलतार की
वह सड़क
चौड़ी
की जा रही थी
बूढ़े पेड़ों को
उनकी
औकात बताई जा रही थी
और उस किनारे
पार्क से
आ रही थी आवाज़--
सड़क के
सामने वाले घर मे
गुज़र करने वाले
सज्जन
माइक पर
कर रहे थे आह्वान
पृथ्वी को बचाने का
पृथ्वी दिवस मनाने का।
पृथ्वी को बचाने का
ReplyDeleteपृथ्वी दिवस मनाने की
सुंदर प्रस्तुति,बहुत बढ़िया रचना.....
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...
आपकी रचना ने वास्तविक स्थितियों पर कटाक्ष करते हुए सुन्दर सन्देश प्रेषित किया है!
ReplyDeleteपर्यावरण सुरक्षा के प्रति सवेंदनशील बनाती एक अच्छे कविता है |
ReplyDeleteपृथ्वी को बचाने का आह्वान आप से बेहतर कौन कर सकता है
ReplyDeleteपृथ्वी दिवस की सुभ कामनाएं , सामयिक समीचीन प्रसंग ....
ReplyDeleteपेड़ कटे तालाब पटे,
ReplyDeleteअब जंगल से सटते जाते |
कंक्रीट की दीवारों में,
पल पल हम पटते जाते |
आबादी का बोझ नही जब,
सह पाती छोटी सड़कें -
कुर्बानी पेड़ों की होती
बार बार कटते जाते ||
दिखावे का ज़माना है...स्वार्थी लोगों के बोझ से पृथ्वी के कंधे झुके जा रहे हैं....
ReplyDeleteसार्थक रचना यशवंत.....
सस्नेह.
बस भाषण में ही धरती बचाने की गुहार होती है असलियत तो कुछ और ही होती है ... अच्छी रचना ॥
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने...सब कुछ भाषणबाजी तक ही सीमित है.
ReplyDeleteठीक वैसे ही जैसे वृक्षारोपण होता है इन लोगों का ...फोटो खिंचाई पौधे के साथ और फिर पौधे रामभरोसे !
ReplyDeleteSach Kaha...Sunder rachna
ReplyDeletevilkul sahi kaha Yashvant.aaj kal yahi horaha hai..sundar rachana..
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही बढि़या।
ReplyDeletehmmm..katu satya
ReplyDeletewaah yashwant bahut hi accha.
ReplyDeleteकथनी और करनी में हमेशा फर्क होता है। भाषण देना तो बहुत आसान है मगर कही गयी बात पर अमल करना शायद भाषण देने वालों के लिए बहुत मुश्किल होता है। सार्थक रचना....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/
ReplyDeleteye lines....save trees ka add ban sakti h.... bohot pyara likha h :)
ReplyDeleteसुन्दर कटाक्ष...
ReplyDeleteपूर्ण सहमत हूँ नुपूर जी की टिप्पणी से..
सादर
काश वह 'बुद्धजीवी ' अपनी ही बात का मर्म समझ पाते.....काश !!!!!!
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