सूई से चुभते फूल
अब सुहाते नहीं है
कोमल से शूल
कुछ सुनाते नहीं हैं
मुंह फुला कर बैठा है
गमले मे गुलाब
गेंदा और बेला
नज़र उठाते नहीं हैं
न जाने क्या हुआ कि
क्यारियाँ भी सूख गयीं
गुलशन जो थे हलक
अब कुछ कह पाते नहीं हैं।
>>>>यशवन्त माथुर <<<<
अब सुहाते नहीं है
कोमल से शूल
कुछ सुनाते नहीं हैं
मुंह फुला कर बैठा है
गमले मे गुलाब
गेंदा और बेला
नज़र उठाते नहीं हैं
न जाने क्या हुआ कि
क्यारियाँ भी सूख गयीं
गुलशन जो थे हलक
अब कुछ कह पाते नहीं हैं।
>>>>यशवन्त माथुर <<<<
waah behad khubsurat shayad mausam ka asar hai
ReplyDeleteन जाने क्या हुआ कि
ReplyDeleteक्यारियाँ भी सूख गयीं
गुलशन जो थे हलक
अब कुछ कह पाते नहीं हैं ,
*बस यूँ ही कुछ होता नहीं
जो होता है अच्छे के लिए होता ,सुहाता नहीं.... !!
वाह ...बहुत खूब लिख्खा है आपने ...
ReplyDeleteन जाने क्या हुआ कि
ReplyDeleteक्यारियाँ भी सूख गयीं
गुलशन जो थे हलक
अब कुछ कह पाते नहीं हैं।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति, सुंदर रचना,.....
MY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
बढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteबधाई यशवंत जी ||
अति सुन्दर....
ReplyDeleteprabhavshali kavita...
ReplyDeleteवाह ....बिलकुल अलग सी ...बहुत प्रभावी रचना ...!!
ReplyDeleteसुन्दर रचना | उम्दा प्रस्तुति के लिए बधाई |
ReplyDeletevaah!barhiya prastuti...
ReplyDeleteवाह वाह ज आप तो गमलों और गुलाबों से बतिया रहे हैं , खूबसूरत पंक्तियां
ReplyDeleteन जाने क्या हुआ कि
ReplyDeleteक्यारियाँ भी सूख गयीं
गुलशन जो थे हलक
अब कुछ कह पाते नहीं हैं। behtreen rachna....
We can learn many things from nature.....1 of the best examples... good work :)
ReplyDeleteहै ज़रूरी नहीं कि
ReplyDeleteबयां हो हर तमाशा
मिल के पूछो कभी
क्यूं बताते नहीं हैं!
मुंह फुला कर बैठा है
ReplyDeleteगमले मे गुलाब
गेंदा और बेला
नज़र उठाते नहीं हैं!
फूलों को क्या हुआ जो मुंह फुला के बैठ गए हैं.....ज़रूर कुछ आपकी ही नादानी होगी....
सुन्दर पंक्तियां...
ReplyDeleteमुंह फुला कर बैठा है
ReplyDeleteगमले मे गुलाब...
बेहतरीन पंक्तियाँ हैं,सुन्दर रचना...
वाह.....................
ReplyDeleteबहुत सुंदर यशवंत............
प्यारी सी रचना के लिए तुम्हें बधाई.
सस्नेह.
अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत प्रभावी रचना के लिए तुम्हें बधाई.
ReplyDeletehmmm.. aisa bhi hota hai kabhi ...sundar rachna
ReplyDeleteबहुत सुंदर.... प्यारी सी रचना यशवंत........ ..
ReplyDelete.
कोमल पंक्तियां....
ReplyDeleteकभी - कभी इन गुलाब, गेंदों से बतियाना भी अच्छा लगता है, और इनका मुंह फुलाकर रूठ जाना भी... सुन्दर पंक्तियाँ... शुभकामनाएं
ReplyDeleteजब फूल सुयीं से चुभने लगेंगे तो कैसे भाएंगे ? दिल की बात कहती अच्छी रचना
ReplyDeleteवाह ... बहुत खूब ... लाजवाब पंक्तियाँ ...
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंडिया दर्पण की ओर से शुभकामनाएँ।
करुणा केसर जी का ई मेल से कहना है--
ReplyDeleteफूलों के नखरे उठाएगें तो वो बस यूं ही चुभना छोड़ दें |
नि:शब्द कर गयी ये रचना ........ खुश रहो !!!
ReplyDeleteबहुत खूब||||
ReplyDeleteसुन्दर रचना है जी..