सोच रहा हूँ
कुछ पल को
गायब हो कर
कहीं अपने मे
खो कर
एक कोशिश करूँ
खुद को समझने की
जिसमे असफल रहा हूँ
अब तक
अपने कमरे मे
मैंने बंद कर दिये हैं
रोशन होने वाले रास्ते
कानों मे भर ली है रुई
और आँखें बंद
खुद को सुनने के लिये
खुद को देखने के लिये
ज़रूरी है-
यह विश्राम
क्योंकि
मन की किताब के
हर पन्ने पर लिखे
बारीक अक्षर
मेरी समझ मे
जल्दी नहीं आते।
<<<<यशवन्त माथुर >>>>
कुछ पल को
गायब हो कर
कहीं अपने मे
खो कर
एक कोशिश करूँ
खुद को समझने की
जिसमे असफल रहा हूँ
अब तक
अपने कमरे मे
मैंने बंद कर दिये हैं
रोशन होने वाले रास्ते
कानों मे भर ली है रुई
और आँखें बंद
खुद को सुनने के लिये
खुद को देखने के लिये
ज़रूरी है-
यह विश्राम
क्योंकि
मन की किताब के
हर पन्ने पर लिखे
बारीक अक्षर
मेरी समझ मे
जल्दी नहीं आते।
<<<<यशवन्त माथुर >>>>
बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteअपने आप से मिलने के लिए बाहरी जगत से कुछ पल का विराम आवश्यक है!
ReplyDeleteसारे बारीक अक्षर बांच लें आप अपने मन के!
शुभकामनाएं!
क्योंकि
ReplyDeleteमन की किताब के
हर पन्ने पर लिखे
बारीक अक्षर
मेरी समझ मे
जल्दी नहीं आते।
सुंदर प्रस्तुति,..
my recent post....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....
nice !!!
ReplyDeletemujhe bhi nahin samajh aate ye akshar :)...apne sath samay bitana bahut jaruri hai..bahut achhi rachna :)
ReplyDeleteअपने आप से मिलने की कामना ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
तथास्तु
एक कोशिश करूँ
ReplyDeleteखुद को समझने की
तथास्तु ... अंतर्द्वंद और आत्मनिरीक्षण की जद्दोजहद
par apne liye sabko samay milta hi kaha h....????
ReplyDeleteबहुत ज़रूरी है ....बस यही हम नहीं कर पाते .....
Deleteबहुत जरुरी होता है खुद को सुनना, देखना और कुछ पल का विश्राम देना... सुन्दर रचना
ReplyDeletegayab hona bhi jaruri hai.... behtreen....
ReplyDeleteBehtreen Rachna
ReplyDeleteएकाग्रता जरूरी है ...
ReplyDeleteशुभकामनायें !
खुद से मुलाक़ात कर्ण भी ज़रूरी है ...सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteसार्थक रचना...स्व को समझने के लिए...
ReplyDeleteज़रूरी है-
ReplyDeleteयह विश्राम
क्योंकि
मन की किताब के
हर पन्ने पर लिखे
बारीक अक्षर
मेरी समझ मे
जल्दी नहीं आते।
*दक्ष-दिग्गज-दिग्विजय
किस उलझन-दुविधा-उधेड़बुन में और क्यों*.... ??
गहन पोस्ट....मन पर लिखी बातों को पढ़ने के लिए आँख का विचार रहित होना ज़रूरी है।
ReplyDeleteहर दिन जैसा है सजा, सजा-मजा भरपूर |
ReplyDeleteप्रस्तुत चर्चा-मंच बस, एक क्लिक भर दूर ||
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कभी कभी स्व-चिंतन भी आत्म साक्षात्कार के लिये ज़रूरी है....बहुत सुन्दर
ReplyDeleteकिसी के समझ नहीं आते वो बारीक अक्षर.....
ReplyDeleteआपने समझने चाहे ये ही बहुत है.........
बहुत सुंदर भाव यशवंत
सस्नेह.
bahut sundar rachna ! har kisi ko apne liye samay nikalna chahiye !
ReplyDeleteमन की किताब के
ReplyDeleteहर पन्ने पर लिखे
बारीक अक्षर
मेरी समझ मे
जल्दी नहीं आते।
मन की किताब को पढ़ने की ख्वाहिश ही अपने आप में बहुत सुंदर है...शुभकामनायें!
कभी- कभी खुद को समझने के लिए विश्राम भी जरुरी होता...अपने लिए भी समय चाहिये..सुन्दर अभिव्यक्ति............सस्नेह..
ReplyDeleteअपने को जानने की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजब खुद को जान जायेंगे अपने मन के छोटे छोटे शब्दों को भी पढ़ पाओगे
behad bhaavpurn, badhai.
ReplyDeletesundar prastuti.
ReplyDeleteखुद से मुलाकात भी जरुरी है..
ReplyDeleteसुंदर सार्थक रचना:-)
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ReplyDeleteThis is the best but where can I read sex in urdu I mean urdu kahani or urdukahani in urdu
ReplyDeleteखुद से मिलना बातें करना अच्छा लगता है
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति