कितना अजीब होता है
मन का पंछी
पल मे यहाँ
पल मे वहाँ
पल मे नजदीक
पल मे मीलों दूर
भर सकता है उड़ान
आदि से अंत तक की
मन का पंछी !
बोल सकता है
मौन मे भी
जी सकता है
निर्वात मे भी
कल्पना के उस पार
जा कर
खोज सकता है
रच सकता है
नित नए शब्द
नित नये चित्र
मन का पंछी !
मेरे मन का पंछी
अक्सर
ले चलता है मुझको
अपनी असीमित
उड़ान के साथ
शीत ,ग्रीष्म और वर्षा मे
करने को सैर
अनगिनत मोड़ों वाली
उस राह की
जिस पर छिटके हुए हैं
विचारों के
कुछ फूल और
कुछ कांटे!
<<<<यशवन्त माथुर>>>>
मन का पंछी
पल मे यहाँ
पल मे वहाँ
पल मे नजदीक
पल मे मीलों दूर
भर सकता है उड़ान
आदि से अंत तक की
मन का पंछी !
बोल सकता है
मौन मे भी
जी सकता है
निर्वात मे भी
कल्पना के उस पार
जा कर
खोज सकता है
रच सकता है
नित नए शब्द
नित नये चित्र
मन का पंछी !
मेरे मन का पंछी
अक्सर
ले चलता है मुझको
अपनी असीमित
उड़ान के साथ
शीत ,ग्रीष्म और वर्षा मे
करने को सैर
अनगिनत मोड़ों वाली
उस राह की
जिस पर छिटके हुए हैं
विचारों के
कुछ फूल और
कुछ कांटे!
<<<<यशवन्त माथुर>>>>
अनगिनत मोड़ों वाली
ReplyDeleteउस राह की
जिस पर छिटके हुए हैं
विचारों के
कुछ फूल और
कुछ कांटे!
जीवन की उड़ान भरता .. मन का पंछी ...!!
सुंदर रचना ...!
शुभकामनायें ...!
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteमन का पंछी
ReplyDeleteएक पल इधर
तो दुसरे पल न जाने किधर
सुन्दर रचना ... :)
मन का पंछी अपने में दर्द भी समेटे रहता है भाई
ReplyDeleteविचारों के फूल और कांटे चुनते हुए बढ़ते रहें बस हम!
ReplyDeleteमन का पंछी !
ReplyDeleteबोल सकता है
मौन मे भी
जी सकता है
निर्वात मे भी
कल्पना के उस पार
उम्दा सोच की अद्धभुत अभिव्यक्ति .... !!
जिस पर छिटके हुए हैं
ReplyDeleteविचारों के
कुछ फूल और
कुछ कांटे!
मन के पंछी की उड़ान का सटीक दृश्य ...सुंदर अभिव्यक्ति
मन का पंछी
ReplyDeleteपल मे यहाँ
पल मे वहाँ
पल मे नजदीक
पल मे मीलों दूर
भर सकता है उड़ान
आदि से अंत तक की
बहुत सुंदर.....
"जिस पर छिटके हुए हैं
ReplyDeleteविचारों के
कुछ फूल और
कुछ कांटे!"
मन का पंछी है ही निराला, यही साक्ष्य है, यही साक्षी भी...!!
सुन्दर अभिव्यक्ति यशवंत भाई!
सादर
निर्झर झरने सी बहती कविता
ReplyDeleteमन पाखी उड़ता जाए...
ReplyDeleteसुंदर रचना.
अच्छा है आप अपने मन के पंछी के साथ उड़ते रहिये..
ReplyDeleteविचारो के फुल -काँटों को सहेजकर इसी तरह अच्छी रचनाये लिखे .....
सुन्दर रचना:-)
on mail by-indira mukhopadhyay
ReplyDeleteमन का पंछी, अद्भुत कल्पना,सटीक
अनुपम भावों का संगम ... बहुत अच्छा लिखा है आपने ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर....................
ReplyDeleteमन के पंछी के परों को बचाए रखना काँटों से.......और स्वार्थी बहेलियों से भी.......
उड़ान जारी रखना.....
ऊंची...और ऊंची....
सस्नेह.
एक मन ही तो है जिसकी उड़ान सबसे तेज़ है ..एक पल में वोह सबसे ऊँची पहाड़ की चोटी पर पहुँच जाता है ...दूसरे ही पल महासागर की अतल गहराईओं में .....यही तो उसकी खासियत है
ReplyDeleteजिस पर छिटके हुए हैं
ReplyDeleteविचारों के
कुछ फूल और
कुछ कांटे!
बहुत सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
बहुत सुन्दर और मासूम कविता. स्नेह.
ReplyDeleteसुंदर रचना....
ReplyDeleteMan ka panchi.... bilkul sahi...esa hi hota h...jiski alag hi duniya h... :)
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 17 -05-2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....ज़िंदगी मासूम ही सही .
असीमित होती है मन के पंछी की उड़ान. बहुत प्यारी रचना.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना.....
ReplyDeleteवृहत आसमान... स्वच्छंद उड़ान...
ReplyDeleteबढ़िया रचना के लिए हार्दिक बधाई।
यशवंत...इतनी सुन्दर रचना हेतु ढेर सी बधाई .
ReplyDeleteकितना अजीब होता है
ReplyDeleteमन का पंछी
पल मे यहाँ
पल मे वहाँ
पल मे नजदीक
पल मे मीलों दूर
भर सकता है उड़ान
आदि से अंत तक की
........
मेरो मन अनंत कहाँ सुख पावे
जैसे उडी जहाज को पंछी पुनि जहाज पर आवे
..सच मन की चंचलता पर किसी का जोर नहीं ..
बहुत सुन्दर रचना
bahut sundar
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