चित्र साभार:- http://www.facenfacts.com/ |
लिखे हुए अक्षर
कभी नहीं मिटते
पर आज
जब देखा
गले हुए पन्नों वाली
एक पुरानी किताब को
जगह जगह धुंधली पड़ती
स्याही
दे रही थी गवाही
मैं गलत था
अक्षरों का जीवन भी
इन्सानों जैसा होता है
कुछ समय चलता है
चमकता है
और फिर
फीका हो जाता है
अक्षरों का जीवन
निर्भर है
किताब के आवरण की
चमक के टिकाऊपन पर
कागज और स्याही के
समन्वय पर
वर्तमान और भविष्य पर
और अंततः
लकड़ी की अलमारी के
कोने मे छुपी दीमक
की पहुँच पर
अक्षर मिटते हैं
क्योंकि सृजनकर्ता की
मेहनत पर
पानी फिरना ही होता है
एक दिन !
<<<< यशवन्त माथुर >>>>
आया है सो जायेगा लिखा है तो मिटेगा भी जीवन क्षणभंगुर है ्फिर अक्षर हों या ज़िन्दगी
ReplyDeleteबहुत ही सही कहा है आपने ... बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआपने सही कहा,,,,,,,यशवंत जी
ReplyDeleteअक्षरों का जीवन भी
इन्सानों जैसा होता है
कुछ समय चलता है
चमकता है
और फिर
फीका हो जाता है,..
बहुत सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति
MY RECENT POSTकाव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
MY RECENT POSTफुहार....: बदनसीबी,.....
यथार्थ को कहती सुंदर अभिव्यक्ति .... हर चीज़ को एक न एक दिन नष्ट होना ही है ...
ReplyDeleteअक्षर मिटते हैं
ReplyDeleteक्योंकि सृजनकर्ता की
मेहनत पर
पानी फिरना ही होता है
एक दिन !
शायद हाँ, शायद नहीं, क्योंकि सृजन कर्ता की मेहनत तब तक सफल हो चुकी होती है किसी पढ़ने वाले की आँखों से गुजर कर..हाँ किताब की एक उम्र जरूर होती है.
सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteअक्षरों का जीवन भी
ReplyDeleteइन्सानों जैसा होता है
कुछ समय चलता है
चमकता है
और फिर
फीका हो जाता है.... वाह: बहुत सुन्दर प्रस्तुति...यशवन्त..शुभकामनाएं
वाह! अक्षरों को हमारे जीवन से जोड़ कर देखने का अच्छा तरीक है..
ReplyDeleteसही में.. अक्षर और जीवन एक जैसे से ही हैं.. पहल खूब चमक के साथ सब को लुभाते हैं और फिर फीके पड़ कर गुमनाम हो जाते हैं!
बहुत सुंदर
ReplyDeleteआमंत्रित सादर करे, मित्रों चर्चा मंच |
ReplyDeleteकरे निवेदन आपसे, समय दीजिये रंच ||
--
शुक्रवारीय चर्चा मंच |
बहुत खूब....
ReplyDeleteआपके इस पोस्ट की चर्चा आज रात ९ बजे ब्लॉग बुलेटिन पर प्रकाशित होगी... धन्यवाद.... अपनी राय अवश्य दें...
http://bulletinofblog.blogspot.in/
पर आज
ReplyDeleteजब देखा
गले हुए पन्नों वाली
एक पुरानी किताब को
जगह जगह धुंधली पड़ती
स्याही
दे रही थी गवाही
मैं गलत था...
bahut sundar rachna...
.
बहुत खूब.... आपके इस पोस्ट की चर्चा आज रात ९ बजे ब्लॉग बुलेटिन पर प्रकाशित होगी... धन्यवाद.... अपनी राय अवश्य दें...
ReplyDeleteसही कहा है आपने यशवंत जी
ReplyDeleteसुन्दर रचना....
यही सत्य है..चाहे जितना भी संजो लो..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...!
ReplyDeleteजो 'है' ,उसे एक दिन तो 'नहीं' होना ही है |
ReplyDeleteGahan Vichar..... Bahut Sunder
ReplyDeletesahi bat ......par apni chap to chod hi jati hai...
ReplyDeleteअक्षर मिटते हैं
ReplyDeleteक्योंकि सृजनकर्ता की
मेहनत पर
पानी फिरना ही होता है
एक दिन !
सत्य अभिव्यक्ति .... !!
गहन बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...!
ReplyDeleteकिन्तु इस तत्थ्य को स्वीकारने का मन नहीं होता ...मुझे लगता है कुछ तो है जो फिर भी बचा रह जाता है ...!!कहीं न कहीं ...
akshar sirf kitaabo se mit sakte hain
ReplyDeletedil par jo chap jaate hain alfaaz
unahe to maut bhi nahi mita paati
एक यथार्थ को दर्शाती अप्रतिम रचना ...बहुत खूब
ReplyDeletekavita bahut achchi hai..par man par likhe kuch shabd kabhi nhi mitte....
ReplyDeleteउम्दा !
ReplyDeleteअच्छी रचना है भाई साहब .
ReplyDeleteशब्दों की जो छाप दिल पर पड़ती है वो अमिट है.....हाँ किताब की तो एक उम्र होती है ।
ReplyDeletekya khoob likha hai aapne
ReplyDeleteबहुत खूब ...हां अक्षर भी फीके पड़ते हैं ...बढिया
ReplyDeleteजीवन की क्षणभंगुरता जतलाती सुन्दर रचना. स्नेह .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना !
ReplyDeleteसादर.....
जीवन का सच बताती बहुत अच्छी रचना ......... शुभकामनाएं !
ReplyDeletewah yashwant jee...kya kamal kee soch hai..nayapan..tajgi..sadar badhayee aaur sadar amantran ke sath
ReplyDeleteअक्षर मिटते हैं
ReplyDeleteक्योंकि सृजनकर्ता की
मेहनत पर
पानी फिरना ही होता है
एक दिन !
बहुत ही अर्थपूर्ण व् सटीक अभिव्यक्ति यशवंत जी |