24 May 2012

बात बन गयी

सोचना है कुछ
कुछ लिखना है
करनी है ईमेल
और जल्दी से भेजना है
संपादक को छापने की जल्दी है
और मुझे छपने की
अपना नाम देखने की
जल्दी है ,बहुत जल्दी है
सच मे क्या करूँ
लाइनें लिखता हूँ
मिटाता हूँ
बार बार दोहराता हूँ
और डालता  हूँ
आस पास एक नज़र
कोई विषय मिल जाए
तो बात बन जाए
दोनों की 
छपने वाले की भी
छापने वाले की भी
और बनती जा रही हैं
यह पंक्तियाँ
जो आप पढ़ रहे हैं
अपना सिर पकड़ के

भौहों को तान के
झेल रहे हैं
यह हल्की फुलकी नज़्म (?)
कविता (?)
या कुछ और
जो भी हो
मेरी तो बात बन गयी
पर  आपकी ?  :)
www.nazariya.in पर पूर्व प्रकाशित

<<<<यशवन्त माथुर>>>>

19 comments:

  1. बात बनाती कविता... सुन्दर

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  2. अजी ..बात तो ऐसे ही बनती है..

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  3. हमारी भी बात बन गयी.............
    :-)

    सस्नेह.

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  4. बहुत सुन्दर यशवन्त....सस्नेह..

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  5. ......क्या कहने यशवंत भाई बहुत सुंदर

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  6. सोचता हूं कि‍ मैं भी संपदक से बदला ले ही लूं

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  7. बस बात बननी ही चाहिए ...

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  8. मुझे तो पढ़ कर मज़ा आया ... स्नेह :-)

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  9. वाह ...बेहतरीन

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  10. यह हल्की फुलकी नज़्म (?)
    कविता (?)
    या कुछ और
    जो भी हो
    मेरी तो बात बन गयी
    पर आपकी ? :)
    मेरी भी बनी *हलचल* के लिये .... :)

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  11. bani ya bana li gayi :-)

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  12. बस ऐसे ही तो बात बनती है ....हमें देखो..अभी तक मुँह में कला दबाये बैठे हैं .....

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  13. बहुत ही अच्छा लिखा है आपने यशवंत जी...
    सुन्दर रचना....:-)

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  14. यूँही बातों बातों में .... देखो फ़साना बन गया अच्छा !

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  15. बहुत हीं अच्छी बात बनाई है यशवंत जी...बहुत हीं सुन्दर,अपने रौ में बहती जाती रचना...

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  16. क्या बात !!!!!मज़ा आ गया ....बढ़िया

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  17. hehe,, so cute one,, humari bhi baat ban gayi,, nica..

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