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08 June 2012

नेता जी गुस्से मे हैं

पड़ोस मे रहने वाले
नेता जी
आज बहुत गुस्से मे हैं 
लड़ रहे हैं
सभासद का चुनाव
अक्सर देते हैं
सफाचट मूछों पर ताव  
आज अचानक वो बोले
आओ बिजली घर पर
हल्ला बोलें
जब तब चली जाती है
देर तक नहीं आती है
ट्रेलर बहुत दिखाती है
हमरा वोट कटवाती है

निकला जब जुलूस
हुई किरपा जे ई जी की
लौट  के जब सब घर को आए
कटिया कटी
नेता जी की

अब सर झुकाए
भन्नाए ,बड़े अनमने  हैं
नेता जी गुस्से मे हैं। 


[सच से कहीं दूर ये पंक्तियाँ पूरी तह काल्पनिक हैं;सच सिर्फ इतना है कि यहाँ लाइट बहुत आ जा रही है ]

©यशवन्त माथुर©

17 comments:

  1. कल्पना में ही शब्द और भाव छिपे हैं ....आभार

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  2. सब जगह यही हाल है.....
    हाल बेहाल हों तो ऐसी कविता का उपजना स्वाभाविक है....

    बहुत बढ़िया.
    सस्नेह.

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  3. वैसे यह जग विदित है ...की जब भी यह कहा जाता या लिखा जाता है ..कि यह कहानी किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से..........सिर्फ एक को-इन्सिडेन्स है...तब वह हमेशा सच होती है .....खैर ....रचना मजेदार है

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  4. बिलकुल सत्य..... परन्तु मनोरंजक ढंग से परोसा गया सत्य.

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  5. जेई तो बड़ा राजनीतिज्ञ निकला.

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  6. जब तब चली जाती है
    देर तक नहीं आती है
    ट्रेलर बहुत दिखाती है
    पटना का बुरा हाल है...
    नेताओं का ही सब चाल है ....

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  7. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना...

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  8. बढ़िया रचना...
    सुंदर कल्पना !!

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  9. बहुत सुन्दर..
    बढ़िया रचना...

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  10. on e-mail

    अब सर झुकाए
    भन्नाए ,बड़े अनमने हैं
    नेता जी गुस्से मे हैं।
    शुभ प्रभात,
    खुश कीता...
    सादर
    यशोदा

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