शब्दों की उलझी हुई सी
बेतरतीब सी
इमारत -
भावनाओं की उथली
दलदली नींव पर
कब तक टिकेगी
पता नहीं
पर जब तक
अस्तित्व में है
बेढब कलाकारी की
झूठी तारीफ़ों
सच्ची आलोचनाओं
तटस्थ दर्शकों की
चौंधियाती आँखों में
झांक कर
रोज़
कहती है
एक मौन सच-
'मुझे तो ढहना ही है'
©यशवन्त माथुर©
बेतरतीब सी
इमारत -
भावनाओं की उथली
दलदली नींव पर
कब तक टिकेगी
पता नहीं
पर जब तक
अस्तित्व में है
बेढब कलाकारी की
झूठी तारीफ़ों
सच्ची आलोचनाओं
तटस्थ दर्शकों की
चौंधियाती आँखों में
झांक कर
रोज़
कहती है
एक मौन सच-
'मुझे तो ढहना ही है'
©यशवन्त माथुर©
उत्कृष्ट प्रस्तुति सर जी ||
ReplyDeleteएक मौन सच-
ReplyDelete'मुझे तो ढहना ही है'
मन के भावों की सुंदर सम्प्रेषण,,,,
RECENT POST ,,,,फुहार....: न जाने क्यों,
वाह ... बेहतरीन प्रस्तुति ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .....
ReplyDeleteसस्नेह.
बहुत खूबसूरत भाव सुन्दर रचना बहुत पसंद आई
ReplyDeleteगहन और सुन्दर।
ReplyDeleteबेहतरीन ......
ReplyDeleteजिस इमारत की नींव सत्य पर टिकी होती है उसे ढहने का भय नहीं होता...शब्दों के पीछे छिपा है सत्य !
ReplyDeleteबेहतरीन...
ReplyDeleteढहना तो है पर रह जाएँ निशाँ !
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...यशवन्त ..शुभकामनाएं..
ReplyDeleteबेहतरीन रचना...
ReplyDeleteनश्वर है सब ....बस कुछ पल की सांसों का लेखा जोखा है ...ढहना तो है ही एक दिन ...!!!गहन अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteBahut Badhiya....
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति...
ReplyDeleteचट्टानों पर नींव खड़ी कर
ReplyDeleteभवन कभी ना ढह पायेगा
इन पलकों को सीप बना ले
अश्रु कभी ना बह पायेगा ||
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ReplyDelete~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~
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उम्दा लेखन, बेहतरीन अभिव्यक्ति
हिडिम्बा टेकरी
चलिए मेरे साथ
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ पहली बारिश में गंजो के लिए खुशखबरी" ♥
♥सप्ताहांत की शुभकामनाएं♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
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सुंदर और परिपक्व लेखन को दर्शाती सोच। बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteझूठी तारीफ़ों
ReplyDeleteसच्ची आलोचनाओं
तटस्थ दर्शकों की
चौंधियाती आँखों में
झांक कर
रोज़
कहती है
एक मौन सच-
'मुझे तो ढहना ही है'
अंतर्मन को उद्देलित करती पंक्तियाँ, बधाई...
झूठी तारीफ़ों
ReplyDeleteसच्ची आलोचनाओं
तटस्थ दर्शकों की
चौंधियाती आँखों में
झांक कर
रोज़
कहती है
एक मौन सच-
'मुझे तो ढहना ही है'
बहुत गहन बात कह दी है .... सुंदर प्रस्तुति
On mail by--indira mukhopadhyay ji
ReplyDeleteबहुत सच्ची और सुंदर कविता.
सच मे !
ReplyDeleteएक मौन सच-
ReplyDelete'मुझे तो ढहना ही है'
एक निशानी छोड़ते हुए .... !!