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27 June 2012

मेरी भी सुन लो -

यह पंक्तियाँ एक प्रयास है गर्भ में पल रहे स्त्री भ्रूण के मन की बात को कहने का -

बहुत अनिश्चित मेरा भाग
दुर्भाग से गहरा नाता है
यूं तो दुनिया मुझ से चलती
मुझ पर ही खंजर चल जाता है

माँ बचा ले मुझको तेरी
गोद में पलना भाता है 
आँचल की छांव मुझे भी दे दे
क्यों तुझे समझ न आता है ?

बड़ी बड़ी बातों मे सबकी
देवी, लक्ष्मी, सरस्वती हूँ
हूँ पूजनीया नौ दुर्गों में
मैं फिर भी त्यागी जाती हूँ

है बहुत अनिश्चित मेरा भाग
दुर्भाग मानव जात तुम सुन लो
खंजर है अधिकार तुम्हारा
बस भविष्य के अंत को चुन लो। 

 ©यशवन्त माथुर©

33 comments:

  1. samajh me nahi ata hai ki logon ko ladkiyon se itni nafrat kyun hai ... sundar rachna !

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  2. तुझको तो मैं लूँ बचा, मुझको कौन बचाय |
    मैं भी बच जाऊं मगर, मारें गला दबाय |
    मारें गला दबाय, दूध का बड़ा कठौता |
    देंगे चटा अफीम, करे न ये समझौता |
    काट रहे ये डाल, नहीं चेतें हैं अब तक |
    रही इन्हें जो पाल, काटते उसका मस्तक ||

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  3. अकथ व्यथा को लिख गयी आपकी कलम!

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  4. गहन भाव लिए उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ..

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  5. aane vali nari jati ke dard ko bahut hi achchhe dhang se ukera hai. kash isa dard ko har vo maanav samajhane kee koshish kare jo inhen mitane ke liye baitha hua hai.

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  6. शनिवार 30/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. आपके सुझावों का स्वागत है . धन्यवाद!

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  7. बेटियों से ही दुनिया चलती है
    और बेटियों को दुनिया में आने के लिए
    गुहार लगानी पड़ती है..
    ये दुर्भाग्य ही तो है हमारा...

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  8. गर्भ में पल रहे बच्चे से स्त्री ...वैसे ही बहुत बाते करती हैं ......

    एक माँ ने कभी अपने गर्भ में पल रहे भूर्ण पर भेद भाव नहीं किया

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  9. इस पीड़ा को न जाने कितनी बार ..कितनी तरह से ...कितने लोगों ने साँझा किया है ...फिर भी हर बार वही टीस महसूस होती है ...बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति

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  10. बड़ी बड़ी बातों मे सबकी
    देवी, लक्ष्मी, सरस्वती हूँ
    हूँ पूजनीया नौ दुर्गों में
    मैं फिर भी त्यागी जाती हूँ

    Dukhad...Vicharniy bhi...

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  11. Heart touching verses yash...
    very beautifully written !!!

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  12. ek bachche ke antarman se nikli pukaar ----shayad
    abhi bhi waqt rahte log sun sake---
    man ko jhakjhor dene wali prastuti------
    poonam

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  13. माँ बचा ले मुझको तेरी
    गोद में पलना भाता है ...बहुत सुन्दर भाव ....

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  14. बड़ी बड़ी बातों मे सबकी
    देवी, लक्ष्मी, सरस्वती हूँ
    हूँ पूजनीया नौ दुर्गों में
    मैं फिर भी त्यागी जाती...

    Waah Yashwant... Beautifully expressed...

    .

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  15. है बहुत अनिश्चित मेरा भाग
    दुर्भाग मानव जात तुम सुन लो
    खंजर है अधिकार तुम्हारा
    बस भविष्य के अंत को चुन लो।

    कडवी सच्चाई को सभी जानते हैं
    आँखे बंद कर बैठे , क्यों नहीं समझते हैं .... ?
    आपकी सार्थक अभिव्यक्ति शायद मदद कर दे .... !!

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  16. गहन भाव लिए सुन्दर पोस्ट।

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  17. on mail by-indira mukhopadhyay ji

    बहुत दिल को छूने वाला प्रयास है, इस विषय पर कितना भी कहो कम है. फिर भी समझने वाले भी हैं, साधुवाद.

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  18. सबको पता है...मगर फिर भी...--भ्रष्टबुद्धि इंसान कब समझेंगे...पता नहीं !
    दिल को छू गयीं ये पंक्तियाँ, यशवंत जी !

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  19. बेटी हो या बेटा दोनों का
    माँ की गोद से नाता है
    बेटी ही माँ होती है
    क्यों कोई समझ ना पाता है??
    ह्रदय स्पर्शी रचना...

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  20. बहुत सुंदर
    क्या बात है

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  21. bahut hi khoobsurat rachna, stri kar roop pujniya hai par dasha bhi utni hi dayniya hai.
    shubhkamnayen

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  22. लड़कियाँ कम हो गईं हैं यह बुरी बात है. लड़कियाँ अगर ज़्यादा हो गईं तो क्या होगा. संतुलन बनाए रखना क्या इंसान के हाथ में है या प्रकृति इसका खुद ही प्रबंध कर लेगी जैसा प्राचीन काल में होता था? बढ़िया विषय पर बढ़िया कविता.

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  23. बड़ी बड़ी बातों मे सबकी
    देवी, लक्ष्मी, सरस्वती हूँ
    हूँ पूजनीया नौ दुर्गों में
    मैं फिर भी त्यागी जाती हूँ
    ....सच जब कभी समझदार समझे जाने वाले लोग भी नारी के प्रति बहुत भेदभाव करते दीखते हैं तो फिर यह सब संबोधन बेमानी है, मन रो उठता है.. ..
    ..बहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति

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  24. है बहुत अनिश्चित मेरा भाग
    दुर्भाग्य मानव जात तुम सुन लो
    खंजर है अधिकार तुम्हारा
    बस भविष्य के अंत को चुन लो।

    परिणाम जानकर भी तो चेत जाएँ सब...सशक्त अभिव्यक्ति !!

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  25. बहुत मार्मिक..ह्रदय स्पर्शी रचना...दिल को छू गयीं ये पंक्तियाँ, यशवंत.. शुभकामनाएं

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  26. बहुत मार्मिक रचना

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  27. बहुत सुन्दर रचना है यशवंत.....
    दिल को छू गयी और व्यथित भी कर गयी.....

    सस्नेह

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  28. बहुत मर्मस्पर्शी रचना...

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