यह पंक्तियाँ एक प्रयास है गर्भ में पल रहे स्त्री भ्रूण के मन की बात को कहने का -
बहुत अनिश्चित मेरा भाग
दुर्भाग से गहरा नाता है
यूं तो दुनिया मुझ से चलती
मुझ पर ही खंजर चल जाता है
माँ बचा ले मुझको तेरी
गोद में पलना भाता है
आँचल की छांव मुझे भी दे दे
क्यों तुझे समझ न आता है ?
बड़ी बड़ी बातों मे सबकी
देवी, लक्ष्मी, सरस्वती हूँ
हूँ पूजनीया नौ दुर्गों में
मैं फिर भी त्यागी जाती हूँ
है बहुत अनिश्चित मेरा भाग
दुर्भाग मानव जात तुम सुन लो
खंजर है अधिकार तुम्हारा
बस भविष्य के अंत को चुन लो।
©यशवन्त माथुर©
बहुत अनिश्चित मेरा भाग
दुर्भाग से गहरा नाता है
यूं तो दुनिया मुझ से चलती
मुझ पर ही खंजर चल जाता है
माँ बचा ले मुझको तेरी
गोद में पलना भाता है
आँचल की छांव मुझे भी दे दे
क्यों तुझे समझ न आता है ?
बड़ी बड़ी बातों मे सबकी
देवी, लक्ष्मी, सरस्वती हूँ
हूँ पूजनीया नौ दुर्गों में
मैं फिर भी त्यागी जाती हूँ
है बहुत अनिश्चित मेरा भाग
दुर्भाग मानव जात तुम सुन लो
खंजर है अधिकार तुम्हारा
बस भविष्य के अंत को चुन लो।
©यशवन्त माथुर©
samajh me nahi ata hai ki logon ko ladkiyon se itni nafrat kyun hai ... sundar rachna !
ReplyDeleteतुझको तो मैं लूँ बचा, मुझको कौन बचाय |
ReplyDeleteमैं भी बच जाऊं मगर, मारें गला दबाय |
मारें गला दबाय, दूध का बड़ा कठौता |
देंगे चटा अफीम, करे न ये समझौता |
काट रहे ये डाल, नहीं चेतें हैं अब तक |
रही इन्हें जो पाल, काटते उसका मस्तक ||
अकथ व्यथा को लिख गयी आपकी कलम!
ReplyDeleteगहन भाव लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteaane vali nari jati ke dard ko bahut hi achchhe dhang se ukera hai. kash isa dard ko har vo maanav samajhane kee koshish kare jo inhen mitane ke liye baitha hua hai.
ReplyDeletetouchy ..nicely written
ReplyDeleteसशक्त और सार्थक प्रस्तुति!
ReplyDeleteशनिवार 30/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. आपके सुझावों का स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteबेटियों से ही दुनिया चलती है
ReplyDeleteऔर बेटियों को दुनिया में आने के लिए
गुहार लगानी पड़ती है..
ये दुर्भाग्य ही तो है हमारा...
भावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteमार्मिक प्रस्तुति
ReplyDeleteगर्भ में पल रहे बच्चे से स्त्री ...वैसे ही बहुत बाते करती हैं ......
ReplyDeleteएक माँ ने कभी अपने गर्भ में पल रहे भूर्ण पर भेद भाव नहीं किया
इस पीड़ा को न जाने कितनी बार ..कितनी तरह से ...कितने लोगों ने साँझा किया है ...फिर भी हर बार वही टीस महसूस होती है ...बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत अच्छी मार्मिक अभिव्यक्ति ,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,
बड़ी बड़ी बातों मे सबकी
ReplyDeleteदेवी, लक्ष्मी, सरस्वती हूँ
हूँ पूजनीया नौ दुर्गों में
मैं फिर भी त्यागी जाती हूँ
Dukhad...Vicharniy bhi...
Heart touching verses yash...
ReplyDeletevery beautifully written !!!
ek bachche ke antarman se nikli pukaar ----shayad
ReplyDeleteabhi bhi waqt rahte log sun sake---
man ko jhakjhor dene wali prastuti------
poonam
माँ बचा ले मुझको तेरी
ReplyDeleteगोद में पलना भाता है ...बहुत सुन्दर भाव ....
बड़ी बड़ी बातों मे सबकी
ReplyDeleteदेवी, लक्ष्मी, सरस्वती हूँ
हूँ पूजनीया नौ दुर्गों में
मैं फिर भी त्यागी जाती...
Waah Yashwant... Beautifully expressed...
.
है बहुत अनिश्चित मेरा भाग
ReplyDeleteदुर्भाग मानव जात तुम सुन लो
खंजर है अधिकार तुम्हारा
बस भविष्य के अंत को चुन लो।
कडवी सच्चाई को सभी जानते हैं
आँखे बंद कर बैठे , क्यों नहीं समझते हैं .... ?
आपकी सार्थक अभिव्यक्ति शायद मदद कर दे .... !!
गहन भाव लिए सुन्दर पोस्ट।
ReplyDeleteon mail by-indira mukhopadhyay ji
ReplyDeleteबहुत दिल को छूने वाला प्रयास है, इस विषय पर कितना भी कहो कम है. फिर भी समझने वाले भी हैं, साधुवाद.
सबको पता है...मगर फिर भी...--भ्रष्टबुद्धि इंसान कब समझेंगे...पता नहीं !
ReplyDeleteदिल को छू गयीं ये पंक्तियाँ, यशवंत जी !
बेटी हो या बेटा दोनों का
ReplyDeleteमाँ की गोद से नाता है
बेटी ही माँ होती है
क्यों कोई समझ ना पाता है??
ह्रदय स्पर्शी रचना...
बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या बात है
bahut hi khoobsurat rachna, stri kar roop pujniya hai par dasha bhi utni hi dayniya hai.
ReplyDeleteshubhkamnayen
लड़कियाँ कम हो गईं हैं यह बुरी बात है. लड़कियाँ अगर ज़्यादा हो गईं तो क्या होगा. संतुलन बनाए रखना क्या इंसान के हाथ में है या प्रकृति इसका खुद ही प्रबंध कर लेगी जैसा प्राचीन काल में होता था? बढ़िया विषय पर बढ़िया कविता.
ReplyDeleteबड़ी बड़ी बातों मे सबकी
ReplyDeleteदेवी, लक्ष्मी, सरस्वती हूँ
हूँ पूजनीया नौ दुर्गों में
मैं फिर भी त्यागी जाती हूँ
....सच जब कभी समझदार समझे जाने वाले लोग भी नारी के प्रति बहुत भेदभाव करते दीखते हैं तो फिर यह सब संबोधन बेमानी है, मन रो उठता है.. ..
..बहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति
है बहुत अनिश्चित मेरा भाग
ReplyDeleteदुर्भाग्य मानव जात तुम सुन लो
खंजर है अधिकार तुम्हारा
बस भविष्य के अंत को चुन लो।
परिणाम जानकर भी तो चेत जाएँ सब...सशक्त अभिव्यक्ति !!
बहुत मार्मिक..ह्रदय स्पर्शी रचना...दिल को छू गयीं ये पंक्तियाँ, यशवंत.. शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत मार्मिक रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है यशवंत.....
ReplyDeleteदिल को छू गयी और व्यथित भी कर गयी.....
सस्नेह
बहुत मर्मस्पर्शी रचना...
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