जुलाई का महीना
बस्ते के बोझ का महीना
फीस और किताबों की
कीमत से पस्त
मगर भविष्य को देख कर
खुशी से मुसकुराती
जेब का महीना
आशा का महीना
अभिलाषा का महीना
ऊंची महत्वाकांक्षा का महीना
मगर इस महीने में
जब धरती बहाती है
खुशी और गम के आँसू
कंक्रीट ,पत्थर और
शीशे के महलों के भीतर
बसने वाले
कृत्रिम वायु मण्डल ने
कर दिया है चेतना हीन
जुलाई का महीना
यौवन पर इठलाने वाली
धरती की
झुर्रियां देख कर
रो रहा है
मन ही मन।
©यशवन्त माथुर©
बस्ते के बोझ का महीना
फीस और किताबों की
कीमत से पस्त
मगर भविष्य को देख कर
खुशी से मुसकुराती
जेब का महीना
आशा का महीना
अभिलाषा का महीना
ऊंची महत्वाकांक्षा का महीना
(धरती की झुर्रियां)हिंदुस्तान-लखनऊ-02/जुलाई/2012 |
जब धरती बहाती है
खुशी और गम के आँसू
कंक्रीट ,पत्थर और
शीशे के महलों के भीतर
बसने वाले
कृत्रिम वायु मण्डल ने
कर दिया है चेतना हीन
जुलाई का महीना
यौवन पर इठलाने वाली
धरती की
झुर्रियां देख कर
रो रहा है
मन ही मन।
©यशवन्त माथुर©
:( :(
ReplyDeletePehle schools reopen hote the barish k sath...par ab :(:( dharti par jhuriyaa hi dekhne ko milti h :(
सार्थकता लिए सटीक अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteअच्छा लिखा है यशवंत जी, जुलाई के माह में मेघों के आगमन को तरसती ..... धरती की प्यास...... और अब कितना इंतज़ार ?
ReplyDeleteजुलाई को ध्यान में रखकर बहुत बढियां लिखा है...
ReplyDeletebahut sundar likha hai....bs ab intjaar khtm hone wala hai....
ReplyDeleteसटीक ।
ReplyDeleteआपकी रचना हमेशा सच का आईना दिखलाती है .... !
ReplyDeleteबिहार का भी यही हालात है .... !!
सच्ची ! अभी के मौसम और हालात को देखते हुए.......बहुत बढ़िया यशवंत जी !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
ReplyDelete:-)
बहुत सार्थक और सटीक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सामायिक रचना..
ReplyDeleteसस्नेह.
जुलाई का महीना
ReplyDeleteयौवन पर इठलाने वाली
धरती की
झुर्रियां देख कर
रो रहा है
मन ही मन।
आज धरती प्यासी है, बढ़ते जा रहे हैं कंक्रीट के जंगल... सटीक अभिव्यक्ति...
सटीक अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteअरे यशवंतजी यह तो इतेफाक हो गया की इस साल उत्तर प्रदेश में वर्षा नहीं हुई वरना तो जुलाई सावन की झड़ी का मौसम होता है .....खुशियाँ बिखेरने का मौसम होता है ...क्यों है न !
ReplyDeleteजुलाई का महीना
ReplyDeleteयौवन पर इठलाने वाली
धरती की
झुर्रियां देख कर
रो रहा है
मन ही मन।
वाह ,बहुत सुन्दर.........
कल 04/07/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
ReplyDeleteआपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
'' जुलाई का महीना ''
जुलाई का महीना
ReplyDeleteयौवन पर इठलाने वाली
धरती की
झुर्रियां देख कर
रो रहा है
मन ही मन। .....इस बार की जुलाई सब को रुला रही है..बहुत सुन्दर यशवंत
सच कहा है .. जुलाई तो ऐसी कभी न होती थी ...
ReplyDeleteजल्दी ही ये भी ऐसी नहीं रहेगी ...
जुलाई में सावन की मनभावन फुहार
ReplyDeleteबहुत उम्दा सार्थक अभिव्यक्ति,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST...:चाय....
सुन रहे हो मेघ ,इनकी पुकार -बरसो न !
ReplyDeleteये महीना भी भीगेगा
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उम्दा प्रस्तुति के लिए आभार
प्रवरसेन की नगरी प्रवरपुर की कथा
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ पहली फ़ूहार और रुकी हुई जिंदगी" ♥
♥शुभकामनाएं♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
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जुलाई का महीना
ReplyDeleteयौवन पर इठलाने वाली
धरती की
झुर्रियां देख कर
रो रहा है
मन ही मन।
kya bat hai...
सत्य हैं जी .....सादर
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