बारिश के पहले
बारिश होने से पहले
सूखे की संभावना के साथ
दोनों हाथ ऊपर फैलाए
अन्नदाता मांग रहा था भीख
झुलसती क्यारियों में
नये जीवन की।
बारिश होने से पहले
हरियाली हीन
सड़कों पर
चलते हुए
मेरे चटकते तलवे
चाह में थे
ठंडक की।
बारिश के बाद
बारिश होने के बाद
अन्नदाता खुश है
तृप्त क्यारियों की
अनकही चमक देख कर
झरते मोतियों की
बिखरती माला देख कर
मानो मन के मनके
खुश हों
नये जीवन में
बेसुध हो कर।
बारिश होने के बाद
अब मैं फिर से चाहता हूँ
पहले जैसा सब कुछ
तलवों पर लगी
काई और कीचड़ देख कर
उतरे चेहरे के साथ
सोच रहा हूँ
ये क्या हो गया ?
अन्नदाता =किसान
मेरा /मैं =आम शहरी नागरिक
©यशवन्त माथुर©
बारिश होने से पहले
सूखे की संभावना के साथ
दोनों हाथ ऊपर फैलाए
अन्नदाता मांग रहा था भीख
झुलसती क्यारियों में
नये जीवन की।
बारिश होने से पहले
हरियाली हीन
सड़कों पर
चलते हुए
मेरे चटकते तलवे
चाह में थे
ठंडक की।
बारिश के बाद
बारिश होने के बाद
अन्नदाता खुश है
तृप्त क्यारियों की
अनकही चमक देख कर
झरते मोतियों की
बिखरती माला देख कर
मानो मन के मनके
खुश हों
नये जीवन में
बेसुध हो कर।
बारिश होने के बाद
अब मैं फिर से चाहता हूँ
पहले जैसा सब कुछ
तलवों पर लगी
काई और कीचड़ देख कर
उतरे चेहरे के साथ
सोच रहा हूँ
ये क्या हो गया ?
अन्नदाता =किसान
मेरा /मैं =आम शहरी नागरिक
©यशवन्त माथुर©
दोनों दृश्य और सम्बद्ध भाव/मानसिकता का सफल चित्रण!
ReplyDeleteबिल्कुल सही ... गहन भाव लिए बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteसच कहा.....
ReplyDeleteमानव स्वभाव ही ऐसा है...
सुन्दर लिखा यशवंत
सस्नेह
चाहे बारिश के पहले हो या चाहे बारिश के बाद,
ReplyDeleteहर हांल होती परेशानी,चाहे करो जितनी फ़रियाद,,,,,
MY RECENT POST...:चाय....
चर्चा मंच पर आपकी पोस्ट पर यह टिप्पणी भी आई -
Deleteबारिश से पहले घटा, नहीं कभी भी धीर |
बारिश की देखे घटा, होता धीर अधीर ||
बारिश पर विद्वान ने, लिया सही स्टैंड |
मन को समझाना कठिन, समझो मेरे फ्रेंड ||
बारिश होने के बाद
ReplyDeleteअब मैं फिर से चाहता हूँ
पहले जैसा सब कुछ
तलवों पर लगी
काई और कीचड़ देख कर
उतरे चेहरे के साथ
सोच रहा हूँ
ये क्या हो गया ?
सुबह - सुबह जब मैं बाहर निकली तो यही भाव थे ..... लेकिन शब्दों में ढाल ना सकी .... !
अभी शब्दों में ढाला देख अच्छा लग रहा है ... आभार .... मन प्रफुलित हो गया .... !!
हर तरह से परेशानी .... किसी तरह चैन नहीं ... बारिश हो तो और न हो तो भी ... :):)
ReplyDeletewaah ..sundar bhaav man ke ...
ReplyDeleteshubhkamnayen .
बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteशेअर करने के लिए आभार!
बेहतरीन प्रस्तुति ... आभार
ReplyDeleteयह है शुक्रवार की खबर ।
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति चर्चा मंच पर ।।
dono bahv satik...sunder
ReplyDeleteइंसान की फितरत ही ऐसी है..कभी संतुष्ट ही नही होपाता..सुन्दर भाव है यशवंत..
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति ... आभार
ReplyDeleteयशवंत जी , एकदम सही चित्रण किया है आपने... बारिश के पहले और बाद का..! :-)
ReplyDeleteक्या बात है ... बहुत खूब यशवंत ... जय हो !
ReplyDeleteआपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है क्रोध की ऊर्जा का रूपांतरण - ब्लॉग बुलेटिन के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
Again beautiful post... :)
ReplyDeleteमानव स्वभाव है ही ऐसा
ReplyDeleteसंतुष्ट ही नहीं होता...
क्या करे..
यथार्थ कहती रचना..
बहुत सुन्दर:-)
पल पल बदले मन के भाव...... सुंदर
ReplyDeletegarmi me hriday barish ke liye kis kadar vyathit hota hai is bhav ko sundarta se chitrit kiya hai aapne.badhai.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया....
ReplyDeleteअपने मन से बारिश का मन मिलाना
ReplyDeleteवाकई काम बहुत मुश्किल है
उतना ही मुश्किल है मनों को समझाना !!!
भिन्न परिस्तिथियाँ भिन्न आयाम....सुन्दर।
ReplyDeletebahut badhiya...
ReplyDeleteसुखी धरती को भी बारिश का हम इंसानों से ज्यादा इंतज़ार रहता है ..
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया रचना ..
हो तो परेशानी न हो तो परेशानी इंसान वक़्त को प्रकृति को भी कैद करना चाहता है असफल होने पर शिकायत करता है बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया गहन भावभिव्यक्ति....
ReplyDeletesarthak abhivaykti...........
ReplyDeletejo hamein mil jata hai, humein khush nahin rakh pata
ReplyDeletevery nice :)
ReplyDeleteबहुत खूब..
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