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25 July 2012

खुली किताब

समझता हूँ खुद को
एक खुली किताब
जिसका हर पन्ना
रंगा है
आड़ी तिरछी 
स्याह सफ़ेद
लकीरों से
और
बीच बीच में उभरते 
अनाम सा चेहरा बनाते
कुछ छींटे
कुछ धब्बे
खट्टी मीठी
यादों को साथ लिये
घूर रहे हैं
अगले
खाली पन्नों को।


©यशवन्त माथुर©

24 comments:

  1. अगले पन्नों और हर्फ़ के लिए तलाशती जिंदगी , खुबसूरत ही नहीं लाजवाब

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  2. बहुत सुन्दर
    अगले खली पन्ने खुबसूरत यादो और बातो से भरे..
    शुभकामनाये :-)

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  3. कुछ छींटे
    कुछ धब्बे
    खट्टी मीठी
    यादों को साथ लिये
    घूर रहे हैं
    अगले
    खाली पन्नों को।
    वाह बहुत सुन्दर ...बहुत अच्छे भाव संयोजन

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  4. वो जानते हैं कि ये भी यूँ ही रंगे जायेंगे कल..या परसों....

    सस्नेह

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  6. चलना तो निरंतर है ...यादों को साथ रखिए ...

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  7. यादों के बिना भी क्या ज़िन्दगी--- बहुत सुन्दर।

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  8. वाह ... बहुत बढिया।

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  9. जिंदगी की हर किताब में उनका चेहरा ही नज़र आता है अक्सर ...
    यादें जो कभी जाती नहीं ...

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  10. खुली किताब की तरह हो यह जीवन तो बहुत खुशनसीबी है...सुंदर भाव!

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  11. चलते रहिये अगले पन्ने खूबसूरत...
    रंगों के हों ...सुंदर यादों के हों ...शुभकामनायें..

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  12. बहुत खूब, खली पन्ने भी खुबसूरत रचनाओं से भर जायेंगे |

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  13. समय इन पन्नों को भरता चलता है. जिनकी किताब खुली है वहाँ जो भी दिखता है वह साफ और चमकीला होता है. इन पन्नों का कोई अंत नहीं.

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  14. सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई.

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  15. बेहतरीन अभिव्यक्ति,,सुंदर प्रस्तुति,,बधाई यशवंत जी

    RECENT POST,,,इन्तजार,,,

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  16. कोरे पन्ने भी किसी की खुशबू से महकेंगे... :)

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  17. समझता हूँ खुद को
    एक खुली किताब
    जिसका हर पन्ना
    रंगा है
    आड़ी तिरछी
    स्याह सफ़ेद
    लकीरों से.....
    खुली किताब ही दुनिया को रोशन कर पाती है ....आभार

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  18. har kore panne par ek nayi kahani hogi

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  19. यशवंत जी नमस्कार...
    आपके ब्लॉग 'जो मेरा मन कहे' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 29 जुलाई को 'खुली किताब...' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
    धन्यवाद
    फीचर प्रभारी
    नीति श्रीवास्तव

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  20. bahut hi achha likha hai
    shubhkamnayen

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