आज कल वाद और वादी होने का बड़ा चलन है ,लोग सच को स्वीकार करना नहीं चाहते,ज़मीन से जुड़ी बातों को समझना नहीं चाहते। प्रस्तुत पंक्तियाँ एक प्रवासी फेसबुकिया मार्क्सवादी की सोच से प्रेरित हैं और इन शब्दों मे उन्हीं की सोच को दर्शाने का प्रयास किया है; फिर भी पाठकों से अनुरोध है कि इसे सिर्फ एक रचना की तरह से पढ़ें और इसके अर्थों में न जाएँ।
है सोच संकुचित पर निस्संकोच प्रगतिवादी हूँ
शोषकों का हितैषी ,सदोष जनवादी हूँ
वादी हूँ, फरियादी हूँ, लेनिन-मार्क्सवादी हूँ
हूँ एक लकीर का फकीर ,उन्मादी- रूढ़ीवादी हूँ
चाट हूँ कट्टरता की,घनघोर जातिवादी हूँ
जेपी नहीं एपी हूँ ,असली विघटनवादी हूँ
राम राज को गाली देता,फर्जी गांधीवादी हूँ
दूर देश से देता लेक्चर,सच्चा बकवादी हूँ
मानो या न मानो मुझ को,कागजी राष्ट्रवादी हूँ
सिद्धांतों की ऐसी तैसी ,लेकिन मार्क्सवादी हूँ
©यशवन्त माथुर©
वाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteमानो या न मानो मुझ को,कागजी राष्ट्रवादी हूँ
ReplyDeleteसिद्धांतों की ऐसी तैसी ,लेकिन मार्क्सवादी हूँ
समझने वाले समझ गए न समझे वो अनारी हैं . आपने पूरी कथा विस्तार से बतला दी
जैसे भी पढ़ा...उन महाशय की भावनाएँ और उनके लिए तुम्हारे विचार कविता में स्पष्ट झलक रहे हैं...
ReplyDeleteबढ़िया!!!!
सस्नेह
अनु
:)...बढ़िया है !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर क्या बात हैं
ReplyDeleteachchha likha hai ...
ReplyDeleteshubhkamnayen.
बहुत ही बेहतरीन....
ReplyDeleteमानो या न मानो मुझ को,कागजी राष्ट्रवादी हूँ
सिद्धांतों की ऐसी तैसी ,लेकिन मार्क्सवादी हूँ
काम अलग है तो क्या हुआ..
नाम तो मार्क्सवादी का है न...
Think Globally, Act Locally यही सच है आज का ..
ReplyDeleteबहुत सटीक प्रस्तुति
विचारों का आईना... बिल्कुल साफ़ छवि दिखाई दे रही है...
ReplyDeleteबढ़िया !!!
बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteमानो या न मानो मुझ को,कागजी राष्ट्रवादी हूँ
ReplyDeleteसिद्धांतों की ऐसी तैसी ,लेकिन मार्क्सवादी हूँ,,,,,
बहुत बढ़िया सटीक प्रस्तुती,,,,,,
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Badhiya Panktiyan
ReplyDeletesatik vyang hai, aise log bahutayat mein aajkal hain
ReplyDeleteachhi rachna likhte rahiye taki hame padhne ko milta rahe.
shubhkamnayen
यशवन्त जी वाह बहुत सुंदर
ReplyDeleteयशवन्त जी वाह बहुत सुंदर
ReplyDeleteonly one word for this post -GREAT
ReplyDeleteविचारों का सुन्दर आईना..सटीक प्रस्तुति..यशवंत..शुभकामनाएं
ReplyDeleteमानो या न मानो मुझ को,कागजी राष्ट्रवादी हूँ। बहुत खूब।
ReplyDeleteह्म्म्म.....बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeleteक्या बात है यशवंत जी ..... दोगले चेहरे लिए घूम रहे इन नकली प्रगतिवादियों की अच्छी खिंचाई की है आपने.... बहुत खूब.
ReplyDeletebehtreen aur prabhaavshali abhivaykti....
ReplyDeleteबढिया कटाक्ष
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