इन्हें शब्दों के बिखरे टुकड़े कहना सही रहेगा । अलग अलग समय पर अलग अलग मूड मे लिखे कुछ शब्दों को एक करने की कोशिश कर के यहाँ प्रकाशित कर रहा हूँ--
जनता त्रस्त है,पार्षद मस्त है
मेयर व्यस्त है,विधायक भ्रष्ट है
सांसद को कष्ट है ,मौसम भी पस्त है
कहीं गरज है, छींटे हैं ,बौछारें हैं
कहीं सूखा है,बाढ़ है ,कातिल फुहारें हैं
दरवाजों के बाहर , कहीं जूठन फिक रही है
कहीं कुलबुलाती आँतें,और आँखें सिसक रही हैं
कहीं सड़ता गेहूं -चावल, बह कर के बारिश में
फिर भी 'वो' समझते हैं,फैले हाथ मोबाइल की फरमाइश मे
अब क्या कहें कि गहराते अँधेरों में
सच का उजाला तो गहरी नींद में हसीन सपना है
सोच रहा हूँ परायों की रंगीन बस्ती में
किस मुखौटे के पीछे कौन सा चेहरा अपना है
है यही सच कि कोई माने या न माने -
पस्त है कष्ट, और भ्रष्ट व्यस्त है
मस्त है खुद में 'आम',त्रस्त है ,अभ्यस्त है
©यशवन्त माथुर©
जनता त्रस्त है,पार्षद मस्त है
मेयर व्यस्त है,विधायक भ्रष्ट है
सांसद को कष्ट है ,मौसम भी पस्त है
कहीं गरज है, छींटे हैं ,बौछारें हैं
कहीं सूखा है,बाढ़ है ,कातिल फुहारें हैं
दरवाजों के बाहर , कहीं जूठन फिक रही है
कहीं कुलबुलाती आँतें,और आँखें सिसक रही हैं
कहीं सड़ता गेहूं -चावल, बह कर के बारिश में
फिर भी 'वो' समझते हैं,फैले हाथ मोबाइल की फरमाइश मे
अब क्या कहें कि गहराते अँधेरों में
सच का उजाला तो गहरी नींद में हसीन सपना है
सोच रहा हूँ परायों की रंगीन बस्ती में
किस मुखौटे के पीछे कौन सा चेहरा अपना है
है यही सच कि कोई माने या न माने -
पस्त है कष्ट, और भ्रष्ट व्यस्त है
मस्त है खुद में 'आम',त्रस्त है ,अभ्यस्त है
©यशवन्त माथुर©
यूँ ही सोच के अधीन अस्त-पस्त रहे आप :)))
ReplyDeleteसच कहा...त्रस्त है...अभ्यस्त है...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर यशवंत....
सस्नेह
वाह बहुत जबरदस्त कटाक्ष शब्द शब्द जोड़ कर सुन्दर ईमारत कड़ी की आपने बहुत बधाई
ReplyDeleteजनता की कौन चिंता करता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (12-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
आज मन प्रसन्न और दिल बाग़-बाग़ हो गया .... :)
ReplyDeleteशब्द जोड़-जोड़ कर बुलंद किला तैयार हुआ है .... !!
बढिया...
ReplyDeleteACHHI RACHNA
ReplyDeleteसही कहा ..पस्त है कष्ट, और भ्रष्ट व्यस्त है..लेकिन रचना मस्त मस्त है ..यशवन्त.शुभकामनाएं
ReplyDeleteविस्तृत विचारों को खूब्सूर्र्ती से पिरोया लिखते रहो अच्छा अच्छा .
ReplyDeleteबहुत खूब ... "हो कहीं भी आग ... पर आग जलनी चाहिए !"
ReplyDeleteपूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम और आप सब की ओर से अमर शहीद खुदीराम बोस जी को शत शत नमन करते हुये आज की ब्लॉग बुलेटिन लगाई है जिस मे शामिल है आपकी यह पोस्ट भी ... और धोती पहनने लगे नौजवान - ब्लॉग बुलेटिन , पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
अलग-अलग मूड में ही आपने तो क्या करारा कटाक्ष
ReplyDeleteबना दिया है सर जी..
शानदार...
:-)
aapke vichaar teekhe, durust aur mast hai...
ReplyDeleteसटीक....
ReplyDeletenice..प्रोन्नति में आरक्षण :सरकार झुकना छोड़े
ReplyDeleteमन की स्वाभाविक अभ्व्यक्ति अपने उद्श्य में सफल है ...बहुत सुन्दर ..
ReplyDeleteवर्तमान परिप्रेक्ष्य में कही गई सच्ची बातें कहें या कटाक्ष
ReplyDeleteसटीक लिखा है आपने .बधाई
ReplyDeletebilkul sahi kaha aapne Yashwant bhai.. ye sthiti dekhkar bahut hi dukh hota hai.. kya karen ki parivartan ho paaye.. ye bhi nahi soojhta...
ReplyDeleteहै यही सच कि कोई माने या न माने -
ReplyDeleteपस्त है कष्ट, और भ्रष्ट व्यस्त है
मस्त है खुद में 'आम',त्रस्त है ,अभ्यस्त है..shat prtishat sacchi baat.....
यही तो देश का कष्ट है
ReplyDeleteकि सारे नेता भ्रष्ट है
राजनीती तो अब नष्ट है
तब भी नेता स्वस्थ्य है
वे घोटालो के अभ्यस्त है
और आम जनता त्रस्त है
सारे मौका परस्त है
सब अपने में मस्त है
वतन कि हालत पस्त है
खुशहाली अस्त-व्यस्त है
यही तो देश का कष्ट है
कि अब सब ध्रतराष्ट्र है
- मुकेश पाण्डेय 'चन्दन'
Bilkul sahi kaha yashwant ji :)
ReplyDeleteअब क्या कहें कि गहराते अँधेरों में
ReplyDeleteसच का उजाला तो गहरी नींद में हसीन सपना है
सोच रहा हूँ परायों की रंगीन बस्ती में
किस मुखौटे के पीछे कौन सा चेहरा अपना है
...लाज़वाब ! सच का आईना दिखाती बहुत सटीक प्रस्तुति..
पूरे सिस्टम की तस्वीर आपने बना दी है. अनाज सड़ने दिया जाता है. मोबाइल दिया जाता है. किस कंपनी का मोबाइल दिया जाएगा? अब यही देखने वाली बात होगी कि घोटाला कितने का होगा.
ReplyDeleteशब्दों का खुबसूरत संयोजन ...
ReplyDeleteगेहूं सड़ते रहे गोदामों में , हाथो में मोबाइल ...
ReplyDeleteवे मस्त रहे , जनता त्रस्त रहे !
सभी क्षणिकाएं लाजवाब है !
वाह ... बेहतरीन
ReplyDeletewaah, uttam bhaav liye rachna, bilkul sahi kataksh.
ReplyDeleteshubhkamnayen