22 August 2012

कुछ

अभी तक
कुछ नहीं है मन में 
फिर भी
मन हो रहा है
कुछ करने का
कुछ कहने का
यह आदत है
मजबूरी है
या नौकरी
नहीं पता
बस
बाहर होती
रिमझिम को देख कर
नहा धो कर
ताजगी से 
खिलखिलाती घास-
फूल-पत्तियों को देख कर
सोच रहा हूँ
लौट जाऊं
फिर से बचपन की ओर
और कौतूहल से
निहारता रहूँ
आते -जाते,
बिखरते-सिमटते
काले बादलों को
उन कुछ पलों तक
जब तक
मन न भरे।  


©यशवन्त माथुर©

38 comments:

  1. badhiya kavita yashvant bhai... bachpan hamare bhitar taaumr jinda rahta hai

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  2. लौट जाऊं
    फिर से बचपन की ओर
    और कौतूहल से
    निहारता रहूँ
    आते -जाते,
    बिखरते-सिमटते
    काले बादलों को
    चलो साथ चलते हैं
    बहुत दिनों से
    मेरा भी मन कर रहा है .... :)

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  3. badi sundar panktiyan hai yaswant jee....

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  4. lout jau fir bachpan ki aur....

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  5. जो मन कहे वो करो.....
    और बच्चा बनना अच्छा है...
    अपने भीतर के बच्चे को कभी बड़ा न होने देना यशवंत...
    सस्नेह
    अनु

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  6. बड़े हो गए हैं, लोग क्या कहेंगे यह सोचकर हम स्वयं को कितने सहज-सुलभ सुख से वंचित कर लेते हैं।

    सुंदर प्रस्तुति

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  7. अच्छा तो यह होगा कि बाल-मन के साथ बरसात में नहाने निकला जाए. बचपन की याद दिला गई कविता.

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  8. बहुत सुन्दर रचना यशवंत जी..

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  9. मन बच्चा है
    इसलिए सच्चा है
    कभी कभी बच्चा होना भी
    बहुत अच्छा है..
    :-) :-)

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  10. रिमझिम को देख कर रुकना नहीं चाहिए ..
    बाहें खोल कर समां लेना चाहिए उन बेहिसाब बरसती बूंदों को ..
    जाने ये पल फिर आये न आये..
    आखिर एक बचपना हम सभी के मन में है ..

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  11. बहुत ही सुन्दर कविता भाई यशवंत जी |

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  12. जब मन कहे जी लेना चाहिए बचपन के उन पलों को जब तक मन न भरे... बहुत सुन्दर भाव...

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  13. काश कि हम सब लौट पाते फिर ...जीवन की व्यस्तताओं को छोड़कर ....

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  14. यशवंत जी नमस्ते ,
    कुछ समय पूर्व मेरे छोटे भाई के निधन से विचलित हो कर ब्लोगिंग भी भूल गई थी |आज आपकी पोस्ट ने आशा दिखाई

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    1. आदरणीया संगीता जी
      बहुत दुख हुआ यह जान कर । ईश्वर से कामना है कि दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें।

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  15. Aur yaswant Bhai Kaise ho. Tumhe pad kar aur dekhkar achaa lag.(devendra Singh Mehta)

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    1. बस भाई बढ़िया हैं। आप कैसे हो ?
      पसंद करने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया।

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  16. लौट जाऊं
    फिर से बचपन की ओर
    और कौतूहल से
    निहारता रहूँ
    आते -जाते,
    बिखरते-सिमटते
    काले बादलों को
    उन कुछ पलों तक
    जब तक
    मन न भरे।

    बालक मन जितना सोचे कम

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  17. बचपन की याद दिलाती प्यारी रचना,,,,,

    RECENT POST ...: प्यार का सपना,,,,

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  18. बचपन तो बचपन ही होता है ..फिर कौन बड़ा होना चाहता है..?सुन्दर भाव ...शुभकामनाएं यशवन्त..

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  19. बहुत बढिया ।

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  20. बचपन में लौटना सबको अच्छा लगता है !
    कोमल भाव से सजी अच्छी रचना !
    आभार !

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  21. बहुत सुन्दर भाव ... बधाई :)

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  22. बहुत सुन्दर भाव ... बधाई :)

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  23. आपकी ख्वाहिशों को पंख लग जाएँ...

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  24. बादलों को देखो, रिम-झिम बौछारों को देखो,
    घर की छत पर हर नाली को बंद कर...
    एक नदी बना लो...
    फिर उसमें खुद भी तैर लो.....
    और काग़ज़ की कश्ती भी तैराओ... :-)
    ~God Bless !!!

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  25. बचपन के दिन भी क्या दिन थे .... सुंदर अभिव्यक्ति

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  26. निहारता रहूँ
    आते -जाते,
    बिखरते-सिमटते
    काले बादलों को
    उन कुछ पलों तक
    जब तक
    मन न भरे।
    बरसात मे बचपन ज़रूर याद आता है ...!!
    मधुर यादें भी दे जाता है ...!!
    शुभकामनायें यशवंत ...!!

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  27. बहुत अच्छा लिखा है यशवंत जी!

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  28. मन यूँ ही क्या क्या चाह लेता है... सुन्दर रचना, बधाई.

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  29. पढ कर हर किसी का मन एक बार तो बचपन के उस आंगन को जरूर झाँक आया होगा जिसके किसी कोने में आज भी हमारी शरारतें हमारा इन्तजार कर रही हैं , और यही इस कविता के सफलता है

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  30. बिखरते-सिमटते
    काले बादलों को
    उन कुछ पलों तक
    जब तक
    मन न भरे।....

    सुन्दर रचना, बधाई....

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  31. बादलों और फुहारों को निहारते हुए कभी मन नहीं भरता...
    सुंदर रचना!!

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  32. bachpan ko hum abhi bhi jinda rakh sakte hai :) Very Nice Poetry :)

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  33. बचपन की यादें ताज़ा कराती हुई ,,,बहतरीन रचना...

    मेरा ब्लॉग आपके इन्जार में,समय निकाल कर पधारिएगा-
    "मन के कोने से..."
    आभार..!

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  34. बहुत प्यारी-सी कविता

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