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28 August 2012

खड़ा हूँ

पिछली कई सदियों से
खड़ा हूँ
इस चौराहे पर
चकाचौंध पर
सैकड़ों दिन
सैकड़ों रातें बीत चुकीं
मैं
बस यूं ही खड़ा हूँ

चेतना रहित तो नहीं हूँ
उस पार देख रहा हूँ
दाएँ कभी बाएँ देख रहा हूँ

इस चौराहे पर
कोई बाधा नहीं है
लोग आ रहे हैं
जा रहे हैं
अपनी राह
अराजकता है
फिर भी दुर्घटना नहीं

मेरे कदमों मे कंपन है
एक पल की सोच
बढ़ जाऊँ
एक पल की सोच
रुक जाऊँ
उलझन है
क्या करूँ ?

मैं यूं ही रहूँ
या चलने लगूँ
इस अर्ध जड़त्व का
कुछ तो असर होना ही है

पर क्या यह संभव है
गिरूँ तो मैं गिरूँ
पर
चोट धरती को न लगे

सोच रहा हूँ
बस इसीलिये खड़ा हूँ। 

©यशवन्त माथुर©

27 comments:

  1. पर क्या यह संभव है
    गिरूँ तो मैं गिरूँ
    पर
    चोट धरती को न लगे

    सोच रहा हूँ
    बस इसीलिये खड़ा हूँ। ...वह: क्या सोच है ...सुन्दर भाव.. यशवन्त

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  2. लाजवाब …………बेहद गहन अभिव्यक्ति है।

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  3. पर क्या यह संभव है
    गिरूँ तो मैं गिरूँ
    पर
    चोट धरती को न लगे
    काश ऐसा सोच हर में होता !

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  4. इस पसोपेश का नाम ही जीवन है ... वैसे ये सम्भव ही नहीं कि गिरने पर धरती चोटिल न हो इसीलिये सम्हल कर कदम रखना है ...... शुभकामनाएं !

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  5. kash itna sab soch lete is dharti k liye...

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  6. कोमलता से भरे सुन्दर भाव, यही भाव माँ के मन में भी रहता है "मुझे चाहे जो हो बेटे को चोट न लगने पाए"... काश की हर बेटे की सोच यही हो...

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  7. भावनात्मक .शानदार प्रस्तुति.बधाई.तुम मुझको क्या दे पाओगे?

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  8. चोट धरती को न लगे
    सोच रहा हूँ
    बस इसीलिये खड़ा हूँ...
    बहुत ही भाव पूर्ण रचना ...

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  9. बहुत खूब ... कितना कुछ देखा होगा यूं ही खड़े खड़े ...भावमय रचना ...

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  10. पर क्या यह संभव है
    गिरूँ तो मैं गिरूँ
    पर
    चोट धरती को न लगे

    ...बहुत खूब!बेहतरीन अभिव्यक्ति...

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  11. सही कहा है..एक जगह खड़े होना ज्यादा देर तक संभव नहीं जहाँ सब कुछ गतिमय है..सुंदर भाव !

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  12. शब्दों के सहारे मन के अंतरद्वन्द को बखूबी उकेरा है आपने,,,
    बहुत ही खूब,लाजवाब |

    मेरा ब्लॉग आपके इंतजार में,समय मिलें तो बस एक झलक-"मन के कोने से..."
    आभार..|

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  13. बहुत ही बढ़िया ....कहाँ हैं आजकल बहुत दिनों से आपसे बात भी नहीं हुई। नाराज़ हैं क्या ?? :)समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

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  14. किंकर्तव्यविमूढ़ हो , खड़े हुए यशवंत
    उलझन में उलझो नहीं,सम्मुख कई बसंत
    सम्मुख कई बसंत,सँभलकर कदम बढ़ाना
    नहीं ठहरता वक़्त , दूर तुमको है जाना
    रखो हौसला हृदय , हमेशा बढ़ते जाओ
    है आशीष तुम्हें ,सफलता हर पग पाओ ||

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  15. गहराइयों से महसूस करके लिखते हैं आप .......

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  16. बहुत सुन्दर रचना

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  17. संवेदना के भाव लिए पंक्तियाँ

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  18. संवेदना के भाव लिए पंक्तियाँ

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  19. आप जैसे कवियों को पढ़ना भी हम जैसों का सौभाग्य है। मैं आप की ये कविता पढ़कर सोच रहा हूं कि मैं अब तक क्यों दूर था।

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  20. सुन्दर भाव शानदार प्रस्तुति

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  21. धरती के बारे में सोचते हैं आप, लोग धरती में छेद करते हैं.

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