घरों की खिड़कियों पर
चश्मों पर
कारों पर
मॉल की दीवारों पर
और न जाने कहाँ कहाँ
काले शीशे
सीना तान कर
शान से जड़े हैं
अड़े हैं
सफेदपोशों से
भ्राता धर्म निभाने का
संकल्प लिये
कैसी है
इन काले शीशों के पीछे की
वास्तविक दुनिया
क्या काली है
या
कुछ उजलापन बाकी है ?
बड़ी उलझन मे हूँ
इन शीशों से
परावर्तित होता
अपना अक्स देख कर
दिन की तेज़ धूप
और रात में
इन शीशों पर
चौंधियाने वाली
कृत्रिम रोशनी देख कर
डर रहा हूँ
कहीं
मेरे चश्मे के सफ़ेद शीशे
इच्छा न कर बैठें
काला होने की
और फिर
आईने में
खुद को देख कर
मैं ही न देख सकूँ
खुद के उस पार ....
तब क्या होगा ?
©यशवन्त माथुर©
चश्मों पर
कारों पर
मॉल की दीवारों पर
और न जाने कहाँ कहाँ
काले शीशे
सीना तान कर
शान से जड़े हैं
अड़े हैं
सफेदपोशों से
भ्राता धर्म निभाने का
संकल्प लिये
कैसी है
इन काले शीशों के पीछे की
वास्तविक दुनिया
क्या काली है
या
कुछ उजलापन बाकी है ?
बड़ी उलझन मे हूँ
इन शीशों से
परावर्तित होता
अपना अक्स देख कर
दिन की तेज़ धूप
और रात में
इन शीशों पर
चौंधियाने वाली
कृत्रिम रोशनी देख कर
डर रहा हूँ
कहीं
मेरे चश्मे के सफ़ेद शीशे
इच्छा न कर बैठें
काला होने की
और फिर
आईने में
खुद को देख कर
मैं ही न देख सकूँ
खुद के उस पार ....
तब क्या होगा ?
©यशवन्त माथुर©
आईने में
ReplyDeleteखुद को देख कर
मैं ही न देख सकूँ
खुद के उस पार ....
तब क्या होगा ?
........इन पंक्तियों का सच बहुत ही गहरे उतर गया...सुन्दर और स्पष्ट भाव सुन्दर रचना यशवंत भाई
@ संजय भास्कर
तब क्या होगा ?
ReplyDeleteBhagwan hi jane??
होता क्या मन कोयला होगा .हाथ काले ,कोंग्रेस वाले .
ReplyDeleteram ram bhai
मंगलवार, 11 सितम्बर 2012
देश की तो अवधारणा ही खत्म कर दी है इस सरकार ने
पूरा सच बोलना मना नहीं है यहाँ ,लेकिन लोग स्वेच्छया "आधा सच "बोलतें हैं लिखतें हैं ब्लोगियातें हैं .क्या कीजिएगा ? .
ReplyDeleteram ram bhai
मंगलवार, 11 सितम्बर 2012
देश की तो अवधारणा ही खत्म कर दी है इस सरकार ने
गहरी अभिव्यक्ति..... कहाँ आसान है खुद के पार देख पाना
ReplyDeleteगहन भाव लिए सुन्दर रचना...शुभकामनाएं..यशवन्त..
ReplyDeleteबहुत खूब यशवंत जी,,
ReplyDeleteभावों को बड़ी खूबशूरती से उकेरा है अपनी रचना में,,,बधाई
RECENT POST - मेरे सपनो का भारत
बहुत सुन्दर यशवंत....
ReplyDeleteबहुत वज़नदार बात कह डाली...
सस्नेह
अनु
nice blog realy nice
ReplyDeleteबड़ा कठिन और दुखद होता है खुद को बिना लिबास देखना ,यूँ तो कुछ भी लिखा और कहा जा सकता है किन्तु सच का सामना करना बड़ा दूभर हो जाता है . अनसुलझे प्रश्न जिनका उत्तर बहुत मुश्किल . खुबसूरत भावों से सजी रचना कह दूँ अच्छी लगी?
ReplyDeleteये तो बड़ा गंभीर प्रश्न है.....................
ReplyDeleteवाह यशवंत ...बस वाह ...!!!!
ReplyDeleteमन को छूती, मन को झंक्झोरती रचना....
ReplyDeleteबहुत मुश्किल प्रश्न है.... गहन भाव...शुभकामनायें
ReplyDeleteयस काला पन लील लेता है आत्मा को .. नज़र नहीं आता इसको चढ़ा लेने के बाद ... गहरी अभिव्यक्ति है ...
ReplyDeleteडर रहा हूँ
ReplyDeleteकहीं
मेरे चश्मे के सफ़ेद शीशे
इच्छा न कर बैठें
काला होने की
और फिर
आईने में
खुद को देख कर
मैं ही न देख सकूँ
खुद के उस पार ....
तब क्या होगा ?
very deep and profound...sach mein...tab kya hoga??????
बहुत गहरी बात..काले रंग से आजकल सभी भयभीत हैं..
ReplyDeleteबहुत गहन अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteआपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 15/09/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteगहन भाव लिए रचना....
ReplyDeleteबहुत मुश्किल है खुद को काले रंग के पार देखना
इसलिए काले रंग से सभी बचकर रचना..
:-)...........
गहन भाव लिए रचना....
ReplyDeleteबहुत मुश्किल है खुद को काले रंग के पार देखना
इसलिए काले रंग से सभी बचकर रहना....
:-)...........
bahut sundar yashwantji
ReplyDeletebadhai...
कैसी है
ReplyDeleteइन काले शीशों के पीछे की
वास्तविक दुनिया
क्या काली है
या
कुछ उजलापन बाकी है ?
हमारे अंतर्मन काला है या उजलापन लिए?? बेहतरीन सवाल, बौद्धिक रचना।
चेहरे की हकीकत को समझ जाओ तो अच्छा है
ReplyDeleteतन्हाई के आलम में ये अक्सर बदल जाता है..
simply superb.
अपना चश्मा ही बाद में सवाल न करने लगे. बहुत बढ़िया तरीके से बयाँ हुई है काले शीशों की हकीकत.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteभावों को व्यक्त करते हुए शब्द और उनकी रचनाधर्मिता सराहनीय !
ReplyDeleteअच्छी रचना !
ReplyDeleteघबराओ मत ! तुम्हारे चश्मे का शीशा तभी काला होगा, जब तुम अपनी मर्ज़ी से Sun glasses पहनोगे... :)
वाह, बहुत खूब
ReplyDeleteडर रहा हूँ
ReplyDeleteकहीं
मेरे चश्मे के सफ़ेद शीशे
इच्छा न कर बैठें
काला होने की
बहुत खूब ।