अर्थ के अर्थों में
डूबकी लगा कर
अनर्थ का व्यर्थ प्रपंच
किस अर्थ की
करेगा व्याख्या
कौन जानता है ?
परिदृश्य में वही है
जो सदृश्य है
श्वेत रंगीनी के पीछे
अदृश्य कालिमा की कथा
कब बांचेगा कोई
कौन जानता है ?
भद्रता की मिसरी बन कर
अभद्रता का अर्धसत्य
पूर्णविराम की प्रत्याशा में
कब तक सहेगा अल्प विराम
कौन जानता है ?
तर्क का कुतर्क रूप
अपने अस्थायित्व में
घिस घिस कर कलम की नोंक
कब तक करेगा छलनी
कागज के वक्ष को
कौन जानता है ?
अनर्थ का व्यर्थ प्रपंच
कब तक छुपा सकेगा
भीतर का रंज
अर्थ का सार्थक अर्थ
किस क्षण हो उठे प्रकट
कौन जानता है ?
©यशवन्त माथुर©
डूबकी लगा कर
अनर्थ का व्यर्थ प्रपंच
किस अर्थ की
करेगा व्याख्या
कौन जानता है ?
परिदृश्य में वही है
जो सदृश्य है
श्वेत रंगीनी के पीछे
अदृश्य कालिमा की कथा
कब बांचेगा कोई
कौन जानता है ?
भद्रता की मिसरी बन कर
अभद्रता का अर्धसत्य
पूर्णविराम की प्रत्याशा में
कब तक सहेगा अल्प विराम
कौन जानता है ?
तर्क का कुतर्क रूप
अपने अस्थायित्व में
घिस घिस कर कलम की नोंक
कब तक करेगा छलनी
कागज के वक्ष को
कौन जानता है ?
अनर्थ का व्यर्थ प्रपंच
कब तक छुपा सकेगा
भीतर का रंज
अर्थ का सार्थक अर्थ
किस क्षण हो उठे प्रकट
कौन जानता है ?
©यशवन्त माथुर©
अनर्थ का व्यर्थ प्रपंच
ReplyDeleteकब तक छुपा सकेगा
भीतर का रंज
अर्थ का सार्थक अर्थ
किस क्षण हो उठे प्रकट
कौन जानता है ?
समय सब जानता है ,
जबाब भी देता है .... !!
वाह...
ReplyDeleteभद्रता की मिसरी बन कर
अभद्रता का अर्धसत्य
पूर्णविराम की प्रत्याशा में
कब तक सहेगा अल्प विराम
कौन जानता है ?
बहुत बढ़िया यशवंत...
जियो...
सस्नेह
अनु
अनर्थ का व्यर्थ प्रपंच
ReplyDeleteकब तक छुपा सकेगा
भीतर का रंज
अर्थ का सार्थक अर्थ
किस क्षण हो उठे प्रकट
कौन जानता है ?
बहुत सुन्दर विचारों का प्रवाह
अनर्थ का व्यर्थ प्रपंच
ReplyDeleteकब तक छुपा सकेगा
भीतर का रंज
अर्थ का सार्थक अर्थ
किस क्षण हो उठे प्रकट
कौन जानता है ?
beautiful lines very near to my heart ful of emotins and feelings YASHWANT MATHUR JI VERY GOOD MORNING.
प्रकट और अप्रकट के बीच का अंतर कौन जानता है ...
ReplyDeleteकई बार महसूस होता है यही !
बहुत ही गह्वर और सारगर्भित रचना !
ReplyDeleteशब्द सृजन और शिल्प सराहनीय!
भद्रता की मिसरी बन कर
ReplyDeleteअभद्रता का अर्धसत्य
पूर्णविराम की प्रत्याशा में
कब तक सहेगा अल्प विराम
कौन जानता है ?
गहरी अभिव्यक्ति.... बेहतरीन रचना
अर्थ का सार्थक अर्थ
ReplyDeleteकिस क्षण हो उठे प्रकट
कौन जानता है ?....bahut pasand aayee.....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteअद्भुत विरोधाभास को दर्शाती एक प्रभावशाली अभिव्यक्ति... बधाई!
ReplyDeleteअनर्थ का व्यर्थ प्रपंच
ReplyDeleteकब तक छुपा सकेगा
भीतर का रंज
अर्थ का सार्थक अर्थ
किस क्षण हो उठे प्रकट
कौन जानता है ?
सुंदर प्रस्तुति |
मेरी नई पोस्ट में आपका स्वागत है |
मेरा काव्य-पिटारा:बुलाया करो
गहन सोच, सुंदर अभिव्यक्ति... गंभीर रचना...
ReplyDelete~ बढ़िया प्रस्तुति यशवंत !
अनर्थ का व्यर्थ प्रपंच
ReplyDeleteकब तक छुपा सकेगा
भीतर का रंज
अर्थ का सार्थक अर्थ
किस क्षण हो उठे प्रकट
कौन जानता है ?.....भावो को बहुत सुन्दर शब्दो में प्रस्तुत कर विरोधाभास की खुबसूरतअभिव्यक्ति...
गहनता लिए रचना...
ReplyDeleteयशवंत जी...
गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाये...
:-)
गहन अभिव्यक्ति ... आंदोलित करती है ये रचना ...
ReplyDeleteबधाई ...
बहुत सटीक .... आज कल ब्लॉग जगत में भी अर्थ के अनर्थ देखे जा रहे हैं .... सशक्त अभिव्यक्ति
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