27 September 2012

'एक'-'दूसरा'

एक के पास -

बड़ी चार पहिया गाड़ी है
ड्राइवर है
आलीशान मकान है
जिसके कोने कोने से
संपन्नता का देसी घी
सबको ललचाता सा गिरता है

महंगा मोबाइल है
लैपटॉप है
दस उँगलियों के इशारे पर
नाचती
ग्लोबल दुनिया है
जिसके चारों ओर
बदसूरत चाँद की तरह
वह  परिक्रमा  करता है

दूसरे के पास -

पैर में टूटी चप्पल है
सूत भर फुटपाथ है
जिसके कोने कोने में गूँजती
डरावनी पदचापों का एहसास
एक जनम मे ही
कई पुनर्जन्मों का होना है

चीख है -पुकार है
मुरझाता यौवन है
एक कपड़े मे सिमटा तन है
वेदना और सूखे आंसुओं की
अनोखी दुनिया में
उसका होना
एलियन का मिलना है

'दूसरे' का घर
'एक' के ठीक सामने है
एक समय पर
अक्सर
दोनों एक दूसरे के सामने होते हैं
'दूसरा' हाथ फैलाता है
और 
उसके ज़ख़्मों से
बेपरवाह 'एक'
काले शीशे वाली कार मे
निकल जाता है
समाजसेवा को।


©यशवन्त माथुर©

24 comments:

  1. समाज की नंगी - कड़वी तस्वीर उकेरती रचना ..... शुभकामनाएं !

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  2. बेहतरीन.....
    सार्थक लेखन यशवंत...
    सस्नेह
    अनु

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  3. bahut hi badhiya bhaw...yashwant jee kabhi samay mile to http://pankajkrsah.blogspot.com pe padharen. apaka swagat hai

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    1. पंकज जी आपका ब्लॉग देखा ....आपकी कुछ पंक्तियों को अपना फेसबुक स्टेटस भी बना दिया है। आप वास्तव मे बहुत अच्छा लिखते हैं ऐसे ही लिखते रहें।

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  4. Vidambana hai!
    Sundar Abhivakti...
    Saadar
    Madhuresh

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  5. यही विडम्बना है समाज की ..... यही विसंगति बढ़ती जा रही है ।

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  6. एक तीखा व्यंग .. आमने-सामने की छोडिये यसवंत ... अपने घर में ही ऐसी कहानी है .. एक भाई समाज सेवा करता है ... दुर्सरा भीख मांगता है

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  7. ये तो इश्वरीय विडंम्बना है,लेकिन समाज द्वारा इसे दूर किया जा सकता है,,,

    RECENT POST : गीत,

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  8. समाज का कटु सत्य उकेरती रचना .....

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  9. 'दूसरे' का घर
    'एक' के ठीक सामने है
    एक समय पर
    अक्सर
    दोनों एक दूसरे के सामने होते हैं
    'दूसरा' हाथ फैलाता है
    और
    उसके ज़ख़्मों से
    बेपरवाह 'एक'
    काले शीशे वाली कार मे
    निकल जाता है
    समाजसेवा को।

    BITTER TRUTH OF LIFE

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  10. .............. क्या कहा जाए यशवंत !
    सार्थक अभिव्यक्ति !

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  11. अच्छी रचना..सोचने को कहती हुई..

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  12. Vyang ki jo dang kar de, Kadva sach behad satik tarike se prastut kiya hai...

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  13. एक सटीक व्यंग.कटु सत्य उकेरती सार्थक रचना .....

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  14. ha sahi kaha....esa hi ho chala he hamara samaj....

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  15. समाज का कटु सत्य उजागर करती रचना...

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  16. यही तो विडंबना है...संवेदनशील रचना

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  17. आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 29/09/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  18. ई मेल पर प्राप्त टिप्पणी--
    indira mukhopadhyay


    ऐसी कविता पढ़ कर मुह से वह तथा दिल से आह निकलती है यशवंतजी. बड़ा समसामयिक तथा सटीक व्यंग है. साधुवाद.

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  19. badi saral bhasha men ek tulnatmak kavita.....achchi lagi.

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  20. यथार्थ का आईना दिखती बहुत ही बढ़िया पोस्ट....

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  21. विरोधी परिस्थितियों की प्रखर अभिव्यक्ति ......शुभकामनाएं !

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  22. पैर में है टूटी चप्पल
    सूत भर फुटपाथ है
    जिस में गूँजा करती
    डरावनी पदचाप है
    एहसास इसी जन्म का
    पुनर्जन्म में होना है
    इसी बात का रोना है

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