पान की दुकान पर
अक्सर दिखते हैं
गुरु शिष्य साथ में
सिगरेट के कश लगाते हुए
और कभी कभी
दिख जाते हैं
शराब के उस ठेके पर
शाम के समय
गलबहियाँ किये हुए
एक को लालच है
अंक पत्र में
बढ़े हुए प्राप्तांकों का
एक को लालच है
मुफ्त की इच्छापूर्ति का
दोनों
आधुनिक हैं -
द्रोणाचार्य
आज कल
अंगूठा नहीं
कैश इन हैंड
मांगते हैं।
©यशवन्त माथुर©
अक्सर दिखते हैं
गुरु शिष्य साथ में
सिगरेट के कश लगाते हुए
और कभी कभी
दिख जाते हैं
शराब के उस ठेके पर
शाम के समय
गलबहियाँ किये हुए
एक को लालच है
अंक पत्र में
बढ़े हुए प्राप्तांकों का
एक को लालच है
मुफ्त की इच्छापूर्ति का
दोनों
आधुनिक हैं -
द्रोणाचार्य
आज कल
अंगूठा नहीं
कैश इन हैंड
मांगते हैं।
©यशवन्त माथुर©
न द्रोणाचार्य जी ही सही थे...न ही आज के ऐसे शिक्षक...!
ReplyDeleteफिर भी.... अगर आदर्श शिक्षक और आदर्श छात्र आज कहीं एक साथ मिल जाएँ....तो दोनों ही पूजने योग्य होंगे... :-)
-:)))
ReplyDeleteबहुत बढ़िया यशवंत....
ReplyDeleteएकदम सच्ची बात कही....
शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं ...
सस्नेह
अनु
द्रोणाचार्य
ReplyDeleteआज कल
अंगूठा नहीं
कैश इन हैंड
मांगते हैं।
..सच आजकल कौन गुरु कौन शिष्य अंतर करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है ..
badaltaa paripeksh ...
ReplyDeletekatu satya ...
bahut badhiya
ReplyDeleteसत्य का अंश ज़रूर लिए है यह रचना .वैसे सखा होना बड़ी बात है अकसर शोषण होता है बहु -बिध छात्र छात्राओं का जिस पर अलग से एक शोध प्रबंध लिखा जा सकता है .यूनिवर्सिटी(सागर ) में पढता था ,मामा प्रोफ़ेसर थे ,घर में अकसर चर्चे चरखे सब रंग लिए होते -एक दिन सुना "जब भी कोई नै रिसर्च स्कोलर झा साहब (नाम काल्पनिक )के घर आती है मिसेज़ झा उसे अलग ले जाके समझातीं हैं ,क्या होने जा रहा है उसके साथ .होता भी वही था लेकिन पी.एचडी .मिल जाती थी हिंदी में .आधुनिक छोडो परम्परा में भी ऐसा क्या है ?जो पूज्य हो ?दुलारे बाज -पाइयों/वर्माओं /नामवरों के दरबार और दरबारी भी खूब देखे ,किशोरावस्था सब बांचती है हमने भी बांचा .
ReplyDeleteram ram bhai
सोमवार, 3 सितम्बर 2012
स्त्री -पुरुष दोनों के लिए ही ज़रूरी है हाइपरटेंशन को जानना
स्त्री -पुरुष दोनों के लिए ही ज़रूरी है हाइपरटेंशन को जानना
What both women and men need to know about hypertension
सेंटर्स फार डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के एक अनुमान के अनुसार छ :करोड़ अस्सी लाख अमरीकी उच्च रक्त चाप या हाइपरटेंशन की गिरिफ्त में हैं और २० फीसद को इसका इल्म भी नहीं है .
क्योंकि इलाज़ न मिलने पर (शिनाख्त या रोग निदान ही नहीं हुआ है तब इलाज़ कहाँ से हो )हाइपरटेंशन अनेक स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं खड़ी कर सकता है ,दिल और दिमाग के दौरे के खतरे के वजन को बढा सकता है .दबे पाँव आतीं हैं ये आफत बारास्ता हाइपरटेंशन इसीलिए इस मारक अवस्था (खुद में रोग नहीं है जो उस हाइपरटेंशन )को "सायलेंट किलर "कहा जाता है .
माहिरों के अनुसार बिना लक्षणों के प्रगटीकरण के आप इस मारक रोग के साथ सालों साल बने रह सकतें हैं .इसीलिए इसकी(रक्त चाप की ) नियमित जांच करवाते रहना चाहिए .
सत्य का अंश ज़रूर लिए है यह रचना .वैसे सखा होना बड़ी बात है अकसर शोषण होता है बहु -बिध छात्र छात्राओं का जिस पर अलग से एक शोध प्रबंध लिखा जा सकता है .यूनिवर्सिटी(सागर ) में पढता था ,मामा प्रोफ़ेसर थे ,घर में अकसर चर्चे चरखे सब रंग लिए होते -एक दिन सुना "जब भी कोई नै रिसर्च स्कोलर झा साहब (नाम काल्पनिक )के घर आती है मिसेज़ झा उसे अलग ले जाके समझातीं हैं ,क्या होने जा रहा है उसके साथ .होता भी वही था लेकिन पी.एचडी .मिल जाती थी हिंदी में .आधुनिक छोडो परम्परा में भी ऐसा क्या है ?जो पूज्य हो ?दुलारे बाज -पाइयों/वर्माओं /नामवरों के दरबार और दरबारी भी खूब देखे ,किशोरावस्था सब बांचती है हमने भी बांचा .
ReplyDeleteram ram bhai
सोमवार, 3 सितम्बर 2012
स्त्री -पुरुष दोनों के लिए ही ज़रूरी है हाइपरटेंशन को जानना
स्त्री -पुरुष दोनों के लिए ही ज़रूरी है हाइपरटेंशन को जानना
What both women and men need to know about hypertension
सेंटर्स फार डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के एक अनुमान के अनुसार छ :करोड़ अस्सी लाख अमरीकी उच्च रक्त चाप या हाइपरटेंशन की गिरिफ्त में हैं और २० फीसद को इसका इल्म भी नहीं है .
क्योंकि इलाज़ न मिलने पर (शिनाख्त या रोग निदान ही नहीं हुआ है तब इलाज़ कहाँ से हो )हाइपरटेंशन अनेक स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं खड़ी कर सकता है ,दिल और दिमाग के दौरे के खतरे के वजन को बढा सकता है .दबे पाँव आतीं हैं ये आफत बारास्ता हाइपरटेंशन इसीलिए इस मारक अवस्था (खुद में रोग नहीं है जो उस हाइपरटेंशन )को "सायलेंट किलर "कहा जाता है .
माहिरों के अनुसार बिना लक्षणों के प्रगटीकरण के आप इस मारक रोग के साथ सालों साल बने रह सकतें हैं .इसीलिए इसकी(रक्त चाप की ) नियमित जांच करवाते रहना चाहिए .
बहुत सही एवं बहुत ही बढ़िया... शुभकामनायें...
ReplyDeleteकटु सत्य...
ReplyDelete:-)
बिलकुल सही... दोनों ही नहीं रहे पहले जैसे, बीच का रास्ता चुन लेते हैं, सरल, सस्ता...
ReplyDeleteशिक्षक दिवस की शुभकामनाएं ...
पता नहीं इसमें मैं आपसे सहमत नहीं हूँ ... शिक्षक ऐसा नहीं कर सकता ..और जो ऐसा करता है वह शिक्षक नहीं व्यापारी है.
ReplyDeleteमैं आपकी असहमति का सम्मान करता हूँ मैम ,लेकिन जो खुद अपनी आँखों से देखा है बस उसे ही इस पोस्ट मे लिखा है।
Deleteसारे गुरु सारे शिष्य एक जैसे नहीं होते यह मैं भी मानता हूँ।
समय मिले तो पिछले वर्ष की इस पोस्ट को भी देखिएगा--http://jomeramankahe.blogspot.in/2011/09/blog-post_05.html
बहुत सुन्दर..शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं ... यशवंत..
ReplyDeleteएकांगी लेख . तस्वीर का दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष भी उजागर करें अन्यथा सुखद सन्देश छुट जाता है जो आप जैसे विद्वान का दायित्व ?
ReplyDeleteसर! अगर मैं खुद को विद्वान मानने की गलती कभी नहीं करूंगा ,न ही जो मैंने लिखा वह हर जगह होता है,लेकिन जो लिखा है ,उसे प्रत्यक्ष देखा है और अक्सर देखता हूँ।
Deleteहम तो ऐसे देश में हैं जहाँ गुरूजी ही शराब पीने को देते हैं.. और मना करने को यहाँ की संस्कृति में बुरा माना जाता है.. भले ही लेकर मत पियो...
ReplyDeleteसमय के साथ बहुत कुछ बदल गया है..... शिक्षा के क्षेत्र में भी यही हो रहा है....
ReplyDeleteसमय के साथ बहुत कुछ बदल गया है..... शिक्षा के क्षेत्र में भी यही हो रहा है....
ReplyDeleteआपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 05/09/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteआज कल के जो हालात हैं ,उस पर सटीक सार्थक कटाक्ष !!
ReplyDeleteआज के समय का कटु सत्य है यह..जितनी भर्त्सना की जाये कम है..
ReplyDeleteVERY TRUE POST .AABHAR
ReplyDeleteWORLD WOMAN BLOGGERS ASSOCIATION
बहुत ही बढ़िया...!!
ReplyDeletesahi kaha...ab guru shishya ki defination hi bdal gayi h....
ReplyDeleteआजकल द्रोण और एकलव्य कैश में विश्वास रखते हैं :))
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