झूठ की मधुशाला में
जहां सच के जाम छलकते हैं
एक मेज पर प्रजा और राजा
वहाँ सबके सब बहकते हैं
सोच रहा हूँ मैं भी आज
एक बार वहाँ हो कर आऊँ
झूठ कपट चढ़ा बांह पर
सच की छांह मे सो कर आऊँ
'बार' के सामने खड़ी कार में
बापू तुम्हारा चित्र देख कर
अरब-खरब सब खप जाते हैं
पेटी खोखा चोखा बन कर
सोच रहा हूँ वहाँ से लौट कर
उस फुटपाथ पर टहल कर आऊँ -
जहां तुम्हारे 'वैष्णव जन'
अधनंगे हाथ फैलाते हैं
घिसट -घिसट रामधुन को गाते
दाना -पानी पाते हैं
झूठ की मधुशाला मे जो
सच के जाम टकराते हैं
आज देखना राजघाट पर
वे ही सर झुकाते हैं !
©यशवन्त माथुर©
Bapu ke janmdin par sundar rachna.. aur haan background music blog ki bahut achhi hai.. :)
ReplyDeleteMadhuresh
Nice post.
ReplyDeleteSee
http://mushayera.blogspot.in/2012/10/anjum-rahbermp4.html
वाह ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना यशवंत....
बहुत सार्थक सोच...
सस्नेह
अनु
झूठ की मधुशाला मे जो
ReplyDeleteसच के जाम टकराते हैं
आज देखना राजघाट पर
वे ही सर झुकाते हैं !
सत्य को उजागर करती
विद्व जन तो तेने कहिये जेब में बापू रक्खें जो .....|
ReplyDeleteझूठ की मधुशाला मे जो
ReplyDeleteसच के जाम टकराते हैं
आज देखना राजघाट पर
वे ही सर झुकाते हैं !
कड़वी हकीक़त बड़ी विनम्रता से बयाँ हो गई !
शुभकामनायें !
सार्थक सोच के साथ बहुत सुन्दर रचना..यशवंत..शुभकामनाएं
ReplyDeleteखूबसूरत बेहद सटीक रचना बधाई यशवंत
ReplyDeleteसत्य को उजागर करती बापू के जन्म दिन पर सुंदर श्रद्धांजली,,,,
ReplyDeleteRECECNT POST: हम देख न सके,,,
झूठ की मधुशाला मे जो
ReplyDeleteसच के जाम टकराते हैं
आज देखना राजघाट पर
वे ही सर झुकाते हैं !
बहुत खूब ... व्यंगात्मक रचना ।
झूठ की मधुशाला मे जो
ReplyDeleteसच के जाम टकराते हैं
आज देखना राजघाट पर
वे ही सर झुकाते हैं !
,..बोलबाला उन्हीं का जो है ...
बहुत बढ़िया सामयिक चिंतनशील प्रस्तुति
सुंदर अभिव्यक्ति... यशवंत !
ReplyDelete~God Bless!!!
जहां तुम्हारे 'वैष्णव जन'
ReplyDeleteअधनंगे हाथ फैलाते हैं
घिसट -घिसट रामधुन को गाते
दाना -पानी पाते हैं
आज का कटु सत्य जो दुखद है हम सबके लिए
बापू को नमन ....
ReplyDeleteबापू को नमन ...
ReplyDeleteझूठ की मधुशाला मे जो
ReplyDeleteसच के जाम टकराते हैं
आज देखना राजघाट पर
वे ही सर झुकाते हैं !
सटीक!
झूठ की मधुशाला मे जो
ReplyDeleteसच के जाम टकराते हैं
आज देखना राजघाट पर
वे ही सर झुकाते हैं !
wah, bahut khub likha hai Yashwantji.
satik, vyang mehsoos karane wala hai
ReplyDeleteझूठ की मधुशाला मे जो
ReplyDeleteसच के जाम टकराते हैं
आज देखना राजघाट पर
वे ही सर झुकाते हैं !
आज की सच्चाई यही है... सार्थक रचना