कभी कभी राह चलते स्मृति पटल पर हमेशा के लिये अंकित हो जाने वाले दृश्य दिख जाते है। प्रस्तुत पंक्तियाँ 4-5 दिन पूर्व देखे ऐसे ही एक दृश्य को शब्द देने का प्रयास मात्र हैं---
गहराती उस
आधी रात को
हनुमान सेतु* के
सन्नाटे में
ऊंची जलती स्ट्रीट लाइट्स
और नीचे गोमती के शीशे में
खुद को ताकता
काला आसमान
शायद देख रहा होगा
मेरी तरह मौन साधे
रेलिंग के सहारे
दो कपड़ों में सिमटा
गहरी नींद में खोया
एक मानव शरीर
जिसके सिर के बालों को
संवार रहा था एक श्वान
अपनी जीभ से।
दिन भर की थकान के बाद
इस सुखद एहसास को
महसूस न कर पाने का मलाल
टूट कर गिरते
उस तारे को भी हुआ होगा
जिसे देखा मैंने
बेपरवाह दौड़ते टेम्पो की
गद्देदार सीट पर बैठ कर
तेज़ आवाज़ में गूँजता
"जीना यहाँ मरना यहाँ "
सुनते हुए।
©यशवन्त माथुर©
*हनुमान सेतु लखनऊ का एक प्रसिद्ध पुल है जिसे कभी मंकी ब्रिज भी कहा जाता था ।
(हनुमान सेतु ) |
आधी रात को
हनुमान सेतु* के
सन्नाटे में
ऊंची जलती स्ट्रीट लाइट्स
और नीचे गोमती के शीशे में
खुद को ताकता
काला आसमान
शायद देख रहा होगा
मेरी तरह मौन साधे
रेलिंग के सहारे
दो कपड़ों में सिमटा
गहरी नींद में खोया
एक मानव शरीर
जिसके सिर के बालों को
संवार रहा था एक श्वान
अपनी जीभ से।
दिन भर की थकान के बाद
इस सुखद एहसास को
महसूस न कर पाने का मलाल
टूट कर गिरते
उस तारे को भी हुआ होगा
जिसे देखा मैंने
बेपरवाह दौड़ते टेम्पो की
गद्देदार सीट पर बैठ कर
तेज़ आवाज़ में गूँजता
"जीना यहाँ मरना यहाँ "
सुनते हुए।
©यशवन्त माथुर©
*हनुमान सेतु लखनऊ का एक प्रसिद्ध पुल है जिसे कभी मंकी ब्रिज भी कहा जाता था ।
बहुत प्रभावी भावपूर्ण रचना..
ReplyDeletewah,bahut umda prastuti.........!!
ReplyDeleteहनुमान सेतु को जीवंत कर दिया! खूब बहुत! :)
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना....
सस्नेह
अनु
सुंदर :)
ReplyDeleteउदास सी रचना..... शायद...ज़िंदगी का आईना...
ReplyDelete~God Bless !!!
ह्रदय स्पर्शी अभिव्यक्ति ....भाग दौड की इस जिंदगी में उतर कर देखने का वक्त ही कहाँ रहा....?? मन को झकझोरती रचना.....शुभ कामनाएं !!!
ReplyDeleteगोमती के शीशे में
ReplyDeleteखुद को ताकता
काला आसमान
वाह कितनी खूबसूरत उपमा ...
दृश्य को शब्द बहुत खूबी से दिये हैं .... संवेदनशील अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसशक्त ...संवेदनशील रचना
ReplyDeleteहनुमान पुल .. भी दिलों को जोड़ता है ..ठीक आपकी कविता की तरह
ReplyDeleteगोमती के शीशे में
ReplyDeleteखुद को ताकता
काला आसमान
नदी,पुल, आसमान, का बहुत ही प्रभावी और सटीक सहज,सरल मानवीकरण ने चित्र सहित आपके भावों को जीवंत कर जिवानौर मृत्यु को एक सूत्र में पिरो दिया है.क्या कहूँ लाजवाब.......
लाजवाब
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर शब्द चित्रों के साथ सशक्त भावपूर्ण रचना,,शुभकामनाएं यशवंत.
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना... शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत सुन्दर . . . आपके इन ब्लॉग्स को पढ़ते-पढ़ते मेरे मन में कई प्रश्न उठते हैं। यह सब मेरे लिये अत्यन्त चिन्तनीय विषय है।
ReplyDeleteस्वामी विवेकानन्द के 150 वेँ जन्म वर्ष को सम्पूर्ण भारत में विवेकानन्द सार्ध शती समारोह वर्ष के रूप में मनाया जायेगा यह ब्लॉग इस भारत जागो! विश्व जगाओ!! विश्व-व्यापी महाभियान की विभिन्न गतिविधियों को जन-सामान्य तक पहुँचाने के उद्देश्य से बनाया गया है, कृपया अपना मार्गदर्शन अवश्य देवें।
वास्तविक जीवन का यथार्थ चित्रण
ReplyDeleteहोता है आपकी रचनाओ में...
प्रभावित करती रचना...
:-)
वाह वाह यशवंत ...सुन्दर !!!
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